कर्नाटक चुनाव में लिंगायत के बाद अगर किसी समुदाय की सबसे ज्यादा चर्जा होती है तो वो वोक्कालिगा समाज है. राज्य में 11 फीसदी के करीब वोक्कालिगा वोटर कई सीटों पर जीत-हार तय कर जाता है. अब कांग्रेस के पास इस समुदाय को लुभाने के लिए एक बड़ा कद्दावर नेता है, नाम है डीके शिवकुमार. 1400 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति रखने वाले शिवकुमार कांग्रेस के लिए कर्नाटक में काफी मायने रखते हैं. उन्हें संकटमोचक के तौर पर भी जाना जाता है, उनकी सियासत ऐसी रही है जहां पर समीकरणों के साथ-साथ मसल पॉवर का भी पूरा इस्तेमाल देखने को मिला है.

डीके की बड़ी चुनावी जीतें

डीके शिवकुमार कांग्रेस की तरफ से भी पिछले कई सालों से कनकपुरा सीट से ताल ठोंक रहे हैं. बड़ी बात ये है कि उनका जीत का मार्जिन भी काफी ज्यादा रहा है, एक तरह से इस सीट पर उन्होंने अपना पूरा दबदबा कायम रखा हुआ है. एक बार फिर पार्टी ने डीके शिवकुमार को इसी सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. सबसे पहले साल 2008 में शिवकुमार रामनगरम जिले के कनकपुरा विधानसभा सीट से विधायक चुनकर आए थे. इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में फिर उन्होंने कनकपुरा से ही चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड वोटों से जीत दर्ज की. वे 30 हजार वोटों के बड़े अंतर से चुनाव जीते थे. फिर जीत की हैट्रिक लगाते हुए 2018 में भी उन्होंने कांग्रेस को ये सीट उनकी झोली में लाकर दी.

सियासी सूझबूझ से कई बार किया हैरान

वैसे डीके शिवकुमार की सियासी पारी में कई ऐसे बड़े नाम शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने चुनावी मैदान में धूल चटाई है. 1990 के चुनाव में डीके शिवकुमार को कांग्रेस से टिकट नहीं मिला था तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव में उतरने का फैसला किया और पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा को हरा दिया. इसके ठीक 10 साल बाद साल 2000 में डीके ने देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी को भी हार का मुंह दिखा दिया. इन बड़ी जीतों ने बता दिया था कि कर्नाटक में एक कद्दावर नेता खड़ा हो चुका है, जो महत्वकांक्षी भी है और हर मुश्किल स्थिति से निपटना भी बखूबी जानता है. उनके सियासी अनुभव का पहला बड़ा प्रमाण साल 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिल गया था. उस चुनाव में डीके ने कनकपुरा लोकसभा सीट से अनुभवहीन तेजस्विनी को टिकट दिलवा दिया, देवगौड़ा से सीधा मुकाबला था. नतीजा हैरान करने वाला रहा, अनुभवहीन तेजस्विनी ने देवगौड़ा को मात दे दी और चुनाव में जीत दर्ज हुई.

कांग्रेस के वफादार, 2018 में निभाई अहम भूमिका

अब डीके शिवकुमार को लेकर एक बात और कही जाती है, वे कांग्रेस के एक वफादार सिपाही हैं, उनकी निजी तल्खी किसी के साथ भी रह सकती है, लेकिन सियासत को समझते हुए उन्होंने कई बड़े कदम उठाए हैं. ऐसा ही एक कदम साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भी देखने को मिला था. साल 2018 में कर्नाटक में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, तब कांग्रेस ने जेडीएस से हाथ मिलाया और राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई. बताया जाता है कि तब डीके ने ही इस डील को भी पूरा करने में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी. ये अलग बात है कि एक बार फिर कांग्रेस चुनावी मैदान में अकेले उतर रही है और जेडीएस से हाथ मिलाने से उसने साफ मना कर दिया है.

अमित शाह से ली थी सीधी टक्कर

वैसे डीके शिवकुमार ने इससे पहले भी अपनी सियासी सूझबूझ का प्रमाण दिया था. जब 2017 में गुजरात राज्यसभा के चुनाव होने जा रहे थे, तब डीके को अंदेशा था कि पार्टी के कुछ नेता बीजेपी में जा सकते हैं. ये भी संभव था कि बीजेपी अपनी तरफ से उन नेताओं को अपनी पार्टी में लाने की कोशिश करती. ऐसे में उस समय डीके ने कांग्रेस हाईकमान से अपील की थी कि कांग्रेस नेताओं को कुछ समय के लिए गुजरात से बेंगलुरु उनके रिजॉट में भेज दिया जाए. अब अपनी सियासी समझ की वजह से तो डीके कांग्रेस के लिए हमेशा काम आए, लेकिन उन पर समय-समय पर भ्रष्टाचार के भी गंभीर आरोप लगे. मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी से जुड़े एक मामले में तो 3 सितंबर, 2019 को ईडी ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया था.

डीके शिवकुमार के निजी जीवन की बात करें तो उनका जन्म 15 मई 1962 को कर्नाटक के मैसूर में हुआ था. उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन तक शिक्षा ले रखी है और सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि शुरुआत से ही देखने को मिली. साल 1993 में उनकी उषा शिवकुमार से शादी हुई थी. उस शादी से डीके को दो बेटियां और एक बेटा है.