कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत तो हो गई है, लेकिन एक यक्ष प्रश्न खड़ा हुआ है, अगला मुख्यमंत्री कौन बनने वाला है। सिद्धारमैया दिल्ली के लिए कूच कर चुके हैं, उनके साथ कई समर्थक भी हैं, दूसरी तरफ खड़े हैं डीके शिवकुमार जो अभी तक कर्नाटक से बाहर भी नहीं निकले हैं और उनके मन में एक असमंजस की स्थिति भी बनती दिख रही हैं। अटकलें हैं कि शाम तक वे दिल्ली जा सकते हैं, लेकिन अभी उनका ना जाना भी काफी कुछ बता रहा है।
ये बात तो किसी से नहीं छिपी है डीके शिवकुमार इस बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, जिस तरह से उनके समर्थक जमीन पर नारेबाजी कर माहौल बना रहे हैं, वो भी काफी कुछ बता रहा है। लेकिन इस बीच सिद्धारमैया का दिल्ली पहुंचना और डीके का पीछे छूट जाना मायने रखता है। जानकार मानते हैं कि डीके शिवकुमार कांग्रेस के लिए एक मजबूत सीएम चेहरा बन सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसी मजबूरियां भी खड़ी हैं जो निकट भविष्य में परेशान कर सकती हैं।
मजबूरी नंबर 1
डीके शिवकुमार को लेकर कांग्रेस की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि वे कई मामलों में फंसे हुए हैं। ये सभी भ्रष्टाचार से जुड़े हुए हैं, एक बार जेल भी जा चुके हैं, रेड तो समय-समय पर होती रही है। ऐसे में अगर उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कभी ऐसी कार्रवाई हुई तो पार्टी की पूरे देश में ज्यादा किरकिरी होगी। वैसे भी 2014 के बाद से बीजेपी भ्रष्टाचार के मुद्दे को अलग ही अंदाज में उठाती है जिसका सीधा फायदा पार्टी को कई चुनावों में मिल चुका है।
इस सबके ऊपर सीबीआई के जो नए डायरेक्टर बने हैं- प्रवीण सूद, उनका डीके शिवकुमार के साथ छत्तीस का आंकड़ा माना जाता है। खुद डीके शिवकुमार भी उनको लेकर ऐसे बयान दे चुके हैं कि दोनों की तल्खी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मजबूरी नंबर 2
प्रशासन में अनुभव की कमी भी डीके शिवकुमार को इस बार मुख्यमंत्री की रेस में पीछे कर रही है। सिद्धारमैया तो कई बार राज्य की कमान संभाल चुके हैं, उनके पास कई सालों का अनुभव है। वहीं बात जब डीके शिवकुमार की आती है, उन्होंने पार्टी को तो कई बार मुश्किल स्थिति से बचाया है, लेकिन बात जब राज्य की स्थिति की आएगी, जब उस पर कोई संकट आएगा, वे कैसे हैंडल करेंगे, ये सवाल पार्टी के मन में भी आ रहा है। वैसे भी कर्नाटक बहुत बड़ा राज्य है, मिनी देश भी कहा जा सकता है। इस राज्य में कांग्रेस को सिर्फ प्रचंड जीत नहीं मिली है, बल्कि इस जीत के साथ एक बड़ी जिम्मेदारी भी आ गई है। ये जिम्मेदारी ही अब डीके शिवकुमार की राह में बड़ी अड़चन का काम कर रही है।
मजबूरी नंबर 3
कांग्रेस की एक बड़ी मजबूरी ये भी चल रही है कि सिद्धारमैया की डीके की तुलना में कर्नाटक में लोकप्रियता ज्यादा मानी जाती है। कहने को 80 के दशक ने राज्य की सियासत में डीके भी सक्रिय चल रहे हैं, लेकिन सिद्धारमैया वाला करिश्मा मिसिंग है। कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस दो सबसे बड़े नेता माने जाते हैं- बीएस येदियुरप्पा और सिद्धारमैया, यानी कि इस लिस्ट में डीके शिवकुमार का नाम कोई नहीं लेता है। इसक सब के ऊपर सिद्धारमैया के पास डीके की तुलना में ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल है, ऐसे में बात जब सीएम रेस की आएगी तो डीके का पक्ष कुछ कमजोर पड़ सकता है।
सब कमजोरियों पर भारी संकटमोचक छवि?
वैसे मजबूरियां तो है, लेकिन कुछ बातें डीके शिवकुमार के पक्ष में भी जाती हैं। पहली बात ये है कि पॉलिटिकल के साथ मनी पावर भी उनके पास है। कई राज्यों में अभी चुनाव हैं, फंड्स की जरूरत तो पड़ने ही वाली है, ऐसी स्थिति में डीके की इच्छा को पूरा कर उनका बाद में कई दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा डीके शिवकुमार कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक माने जाते हैं, उन्होंने ही कई मौकों पर मुश्किल में फंसी पार्टी की नैया को पार लगाया है, फिर चाहे वो कभी विधायकों को होटलों में शिफ्ट करने की बात हो या फिर चुनाव में रणनीति बनाने की, उनका कोई जवाब नहीं।
अब कांग्रेस पार्टी किन तर्कों को ज्यादा तवज्जो देती है, इस पर ही निर्भर करेगा कि कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री कौन होने वाला है। वैसे विधायक दल की बैठक के बाद ये फैसला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पाले में छोड़ दिया गया है। खड़गे कह रहे हैं कि कांग्रेस हाईकमान ही सीएम का फैसला करने वाला है। यानी कि रेस दिलचस्प है, राज्य बड़ा है, ऐसे में फैसला दो से तीन दिन में आ सकता है।