कर्नाटक चुनाव में बीजेपी इस बार बिना बीएस येदियुरप्पा के उतरी है। कुछ महीने पहले ही पूर्व सीएम ने चुनावी संन्यास का ऐलान कर दिया था, यानी कि उन्होंने चुनाव ना लड़ने की बात कही थी। अब इस समय बीजेपी के लिए राज्य में अभी भी प्रचार की कमान जरूर येदियुरप्पा ने संभाल रखी है, लेकिन जब लोगों से जमीन पर बात की गई तो पता चला कि उनका चुनाव ना लड़ना बीजेपी को नुकसान भी पहुंचा सकता है। इस समय बीजेपी की जरूरत से ज्यादा निर्भरता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की योजनाओं पर टिका हुआ है।

बीजेपी के लिए येदियुरप्पा फैक्टर

तुमकुरु जिले के सिद्धगंगा मठ के एक अधिकारी बताते हैं कि चाहे लिंगायत हों, वोक्कालिगा हों या हो अनुसूचित जाति, यहां पर सभी के लिए सिर्फ एक नेता हैं- बीएस येदियुरप्पा। बीजेपी में उनके जैसा कोई नेता नहीं है और पार्टी इस वजह से उन्हें काफी मिस भी कर रही है। इसी कड़ी में दावणगेरे जिले के दुकानदार नंदन कुमार भी कहते हैं कि कर्नाटक में तो येदियुरप्पा और पीएम मोदी से ही बीजेपी बनती है। अगर येदियुरप्पा इस बार भी चुनावी राजनीति में सक्रिय रहते तो बीजेपी के लिए चीजें और आसान हो सकती थीं। लेकिन शायद पार्टी को भी अब आगे बढ़ने की जरूरत है।

अब बीजेपी बिना येदियुरप्पा के आगे बढ़ने की कोशिश तो कर रही है, लेकिन एक ट्रेंड पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहा है। पिछले 38 सालों से राज्य में किसी भी पार्टी ने सरकार में रहने के बाद फिर वापसी नहीं की है। ऐसे में इस बार जब बीजेपी भी सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है, उसे पीएम मोदी से किसी बड़े करिश्मे की उम्मीद है। अभी के लिए राज्य में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को लेकर कोई संदेह नहीं है, लेकिन जिस तरह से पार्टी ने अचानक से अपना मुख्यमंत्री बदला, बसवराज बोम्मई को सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया, लोगों में ज्यादा अच्छा संदेश नहीं गया है। इसी वजह से अब लोकप्रियता से ज्यादा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू हो गई है। दावणगेरे जिले की ही एक महिला बताती हैं कि सिलेंडर के दाम बढ़ते जा रहे हैं। बढ़ते दाम के बीच बीजेपी की सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। कांग्रेस के समय हमे 10 किलो तक महीने का फ्री चावल मिलता था, लेकिन बीजेपी सरकार ने इसे घटाकर पांच किलो कर दिया है।

महंगाई, बेरोजगारी बन रहे बड़े मुद्दे

अब ये तो सिर्फ एक बयान है, कई ऐसे ही लोग बेरोजगारी का मुद्दा भी उठा रहे हैं। ऐसे में पार्टी के लिए ये चुनावी मौसम में एक चुनौती बन रही है। कुछ जिलों में जरूर पार्टी को अपने विधायकों के विकास कार्यों का फायदा मिल सकता है। उदाहरण के लिए विधायक जीबी ज्योति गणेश के काम से स्थानीय लोग खुश नजर आ रहे हैं। लेकिन वे खुद इच्छा जताते हैं कि येदियुरप्पा को आगे से आकर अभी भी लीड करना चाहिए था। इस समय बीजेपी के लिए एक चुनौती ये भी खड़ी हो रही है कि जिन जिलों में पिछले चुनाव में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था, इस बार वो डगर मुश्किल लग रही है। उदाहरण के लिए चित्रदुर्ग में बीजेपी ने पिछली बार 6 में से 5 सीटें जीत ली थीं। लेकिन इस बार कांग्रेस यहां कड़ी टक्कर दे रही है। इलाके के फाइनेंस कलेक्टर बताते हैं कि किसी एक पार्टी के प्रति कोई वफादारी नहीं है, जिसने काम किया, उसे वोट दिया जाता है।

तुमकुरु जिले की बात करें तो यहां पर पिछली बार बीजेपी ने 11 में से पांच सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार पार्टी मान रही है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, कैंसर अस्पताल की वजह से लोगों का वोट उन्हें मिलेगा और उनका प्रदर्शन बेहतर होगा। अभी के लिए बीजेपी को भरोसा है कि विकास कार्यों की वजह से उन्हें चुनाव में फायदा मिलेगा और लिंगायत के साथ-साथ दूसरे समुदायों का भी उन्हें वोट मिलेगा।