समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ना-ना कर के कन्नौज से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए। अखिलेश ने एक बार फिर लोगों का भरोसा जीतने के लिए कन्नौज से चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। कन्नौज की लोकसभा सीट 1999 से समाजवादी पार्टी के खाते में रही। वर्ष 2012 के लोकसभा उपचुनाव में कन्नौज से डिंपल यादव निर्विरोध चुनाव जीतीं।
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भारतीय जनता पार्टी के सुब्रत पाठक ने करारी शिकस्त दी और इस सीट को भाजपा के खाते में डाल दिया। कन्नौज का उदय महान शासक हर्षवर्धन की राजधानी के रूप में हुआ। कान्यकुब्ज ब्राह्मण का उद्गम स्थान होने की वजह से इसे कन्नौज कह कर पुकारा जाने लगा। गंगा नदी के दोआब पर बसे इस जिले में समाजवादी विचारधारा का झंडा सदैव बुलंद रहा।
अपनी सुगंध की वजह से दुनिया में अलग पहचान बनाने वाले कन्नौज में सपा का कब्जा रहने के दौरान विकास उतना नहीं हुआ, जितना लोगों की अपेक्षा थी। कन्नौज में इस वक्त इत्र बनाने के लगभग ढाई सौ कारखाने हैं। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद उसका मुखिया बनने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फ्रांस का दौरा किया था। वहां से लौटने के बाद उन्होंने कन्नौज में अंतरराष्ट्रीय इत्र संग्रहालय और इत्र पार्क बनवाने का एलान किया था।
बावजूद इसके कन्नौज की जनता ने उन्हें नापसंद किया जिसका खामियाजा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें डिंपल यादव की हार की शक्ल में चुकाना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर अखिलेश यादव चुनाव मैदान में उतरे थे। कन्नौज में एक चुनावी सभा के दौरान अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिम्पल यादव से मायावती के पांव छुआ दिए। जिससे कन्नौज का यादव मतदाता अखिलेश यादव से खासा नाराज हो गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि मायावती की सरकार के दौरान दलित उत्पीड़न के सर्वाधिक मुकदमें यादवों के विरुद्ध दर्ज हुए थे।