दुनिया एक और युद्ध के दहलीज पर खड़ी है, ईरान और इजरायल के बीच में तनाव बढ़ता जा रहा है। ईरान की तरफ से तो 300 ड्रोन मिसाइल भी दागी गई हैं। अमेरिका की धमकी भी सामने आ गई है, दो टूक कहा गया है कि अगर ईरान ने हमला किया तो इजरायल को बचाने के लिए USA आगे आएगा। यानी कि नई जंग की सुगबुगाहट है, अलग-अलग फ्रंट भी बनते दिख रहे हैं। लेकिन इस बीच दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी मौसम भी चल रहा है। भारत में लोकसभ चुनाव के सियासी रण का शंखनाद हो चुका है। सवाल ये है कि क्या भारत में भी ईरान-इजरायल का तनाव कोई मुद्दा बनने वाला है? क्या चुनाव में ये इस तनाव का कोई असर पड़ सकता है?
ईरान-इजरायल में क्यों तनाव?
अब इन्हीं सवालों का जवाब खोजेंगे, लेकिन सबसे पहले सरल शब्दों में समझते हैं कि ईरान और इजरायल के बीच में ये तनाव क्यों शुरू हुआ है। असल में कुछ दिन पहले सीरिया में ईरान के एक बड़े सैन्य कमांडर को मौत के घाट उतार दिया गया, ईरान के ही एक दूतावास को भी भारी नुकसान पहुंचा। अब उस हमले का आरोप ईरान ने इजरायल पर लगाया, कहा गया कि जानबूझकर तनाव बढ़ाने के लिए नेतन्याहू ने ये हमला करवा दिया। ऐसे में उस हमले के तुरंत बाद ही ईरान ने कहा था कि प्रतिकार होगा, अगर उसके हितों को नुकसान पहुंचाया जाएगा तो जवाबी कार्रवाई भी की जाएगी।
अब वो जवाबी कार्रवाई रविवार को हुई है, उसमें 300 मिसाइलें इजरायल की तरफ दाग दी गईं। उस हमले में इजरायल का दावा है कि उसे ना के बराबर नुकसान हुआ है और ज्यादातर मिसाइलों को नष्ट कर दिया गया। यहां समझने वाली बात ये है कि अभी जो हो रहा है, वो सिर्फ एक बहाना है फिर तनाव को बढ़ाने का। असल में पिछले कई सालों से ये दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ चल रहे हैं। तनाव की एक वजह ये भी है कि ईरान उन लोगों का समर्थन करता है जो इजरायल को फूंटी आंख भी नहीं सुहाते हैं। उदाहरण के लिए ईरान, सीरिया की सरकार की लगातार मदद करता है, उसकी तरफ से हिजबुल्लाह को संसाधन दिए जाते हैं। वहीं हिजबुल्लाह इजरायल के खिलाफ साजिशे रचता है।
इन दोनों देशों के तनाव को समझने का एक पहलू ये भी है कि ऐसा कम ही देखा गया है कि ये दोनों खुद आमने-सामने कभी एक दूसरे पर हमला करते हों। ये दोनों ही देश पीछे रहकर एक दूसरे की दुश्मनों की मदद कर बढ़त हासिल करने की कोशिश हैं। ईरान, सीरिया की सरकार की मदद करता है, इजरायल उन संगठनों को मदद पहुंचता जिनकी तरफ से सरकार के खिलाफ आवाज उठाई जाती है। तो इस तरह से दी दोनों देश कूटनीतिक हमले करते रहते हैं।

चुनावी मौसम में होगी महंगाई डायन की वापसी
अब सबसे जरूरी सवाल, जब इजरायल-ईरान के बीच में तनाव बढ़ रहा है, क्या भारत पर इसका कोई असर होगा, क्या यहां के चुनाव प्रभावित हो सकते हैं? अब इसका जवाब हां है, आर्थिक नजरिए से देखें तो भी और राजनीतिक चश्मा लगाकर स्थितियों का विश्लेषण करें, तो भी। अब आर्थिक नजरिए से समझें तो इस युद्ध का सीधा असर महंगाई पर पड़ने वाला है। अगर दोनों देश जंग शुरू कर देते हैं, पूरी दुनिया के लिए सप्लाई चेन बाधित हो जाएगी, क्रूड ऑयल के दाम आसमन पर पहुंच जाएंगे और उसकी वजह से सबसे पहले पेट्रोल-डीजल के दामों में आग लगेगी। ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत अभी चुनावी मौसम में है, यहां पर महंगाई एक बड़ा मुद्दा है। केंद्र सरकार के लिए राहत की बात ये है कि कुछ दिन पहले ही महंगाई का जो आंकड़ा सामने आया है, उससे पता चलता है कि ये 10 महीने के निचले स्तर पर पहुंच चुकी है।
लेकिन ये एक युद्ध उस मेहनत पर पानी फेर सकता है। अभी तो पेट्रोल-डीजल के दाम नियंत्रण में दिखाई दे रहे हैं, अगर इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ा, भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम में तेजी आ सकती है। आंकड़ों से समझें तो अभी पूरी दुनिया में क्रूड का दाम 91 डॉलर प्रति बैरल चल रहा है, अगर स्थिति बिगड़ती तो ये दाम किसी भी वक्त 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो कितनी भी कूटनीति लगा लें, मोदी सरकार को चुनावी मौसम में भी महंगाई का दंश झेलना पड़ेगा।
इंडिया गठबंधन को मिलेगा ये बड़ा मुद्दा
बड़ी बात ये है कि अगर महंगाई बढ़ेगी, इंडिया गठबंधन इसे बड़ा मुद्दा बनाएगा। अभी इस समय भी तमाम नेता महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेरने का काम कर रहे हैं, ऐसे में अब अगर ये युद्ध पेट्रोल-डीजल के दाम में भी आग लगा दे, बैठे-बिठाए विपक्ष को बड़ी संजीवनी मिल जाएगी। ये भी नहीं भूलना चाहिए कि मोदी सरकार के कार्यकाल में पेट्रोल-डीजल के दाम कई मौकों पर आसमान पर पहुंचे हैं, लोगों से 100 रुपये प्रति लीटर तक दे रखे हैं, ऐसे में अगर फिर वैसी स्थिति बनी, बीजेपी के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी।
राष्ट्रवाद की पिच पर बीजेपी की खाद
वैसा ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ विपक्ष को ही इस युद्ध से कोई मुद्दा मिलने वाला है, बीजेपी को भी अपनी पिच मजबूत करने का पूरा मौका मिलेगा। असल में अभी ईरान और इजरायल में कई भारतीय नागरिक रह रहे हैं। उनको लेकर विदेश मंत्रालय ने पहले ही एडवाइजरी जारी कर दी है, कहा गया है कि वे कम से कम बाहर निकलें और अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें। अब अगर युद्ध शुरू होता है, इन भारतीयों का रेसक्यू होना जरूरी है। रेस्क्यू के लिए मोदी सरकार को फिर आगे आना पड़ेगा, विदेश मंत्री एस जयशंकर को एक्शन प्लान बनाना होगा। उस पूरी प्रक्रिया की वजह से फिर भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र की बनेगी जो मुश्किल समय में अपने नागरिकों को अकेला नहीं छोड़ता है। वो छवि ही फिर चुनावी मौसम में राष्ट्रवाद की एक अलग लहर चलाती और बीजेपी वो दिखा वोट मांगती है।
ईरान को समर्थन और तुष्टीकरण राजनीति
यहां पर एक दूसरा एंगल भी समझना जरूरी है। कहने को धर्म के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए, लेकिन भारत जैसे देश में इससे जुदा भी नहीं रहा जा सकता। जब मटन-मछली को लेकर मुगल राजनीति बीजेपी को रास आ सकती है तो यहां तो एक इस्लामिक देश (ईरान) की बात हो रही है। ये नहीं भूलना चाहिए कि मोदी सरकार ने इससे पहले भी इजरायल का समर्थन किया था, तब वहां पर फिलिस्तीन मुस्लिम देश था। अब उस समय बीजेपी ने फिलिस्तीन के समर्थन में उठी आवाज को मुस्लिम तुष्टीकरण से जोड़ दिया था। अब भारत जैसे देश में तो इस बार भी लोगों की राय बंटेगी, कोई इजरायल तो कोई ईरान के साथ जाएगा। ऐसे में फिर ध्रुवीकरण की उम्मीद बीजेपी के लिए बनती दिख रही है।
एक मुद्दा हावी, बदल जाएगा नेरेटिव
एक और तरह से वैसे ईरान-इजरायल भारत के चुनाव पर असर डाल सकता है। जब भी कोई बड़ी घटना होती है, कई दूसरे मुद्दे दब जाते हैं। 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक ने मोदी सरकार के लिए वो माहौल बनाने का काम किया था, कई दूसरे मुद्दे दब गए थे। एक बार फिर अगर ये तनाव युद्ध में तब्दील होता है, कई दूसरे मुद्दे दब जाएंगे और बीजेपी पूरी तरह राष्ट्रवाद की पिच पर खेलने को तैयार दिखेगी। इसके ऊपर अगर विपक्ष ने कोई सवाल उठाया तो उसे सीधे-सीधे देश विरोधी गतिविधियां बता दिया जाएगा। यानी कि एक युद्ध भारत के चुनाव पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ने की पूरी क्षमता रखता है।