राजस्थान विधानसभा चुनाव अब करीब आ गया है। ऐसे में तमाम सियासी समीकरणों पर चर्चाओं का दौर जारी है। इस बीच चर्चा का एक अहम मुद्दा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी हैं। यह तय है कि भाजपा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोमवार को जयपुर की रैली में दिए गए भाषण के बाद यह पुख्ता हो गया है। जहां पीएम ने कहा था, “मैं हर बीजेपी कार्यकर्ता से कहना चाहता हूं कि हमारी पहचान और शान कमल ही है।” हालांकि कयास यह लगाए जा रहे थे कि पीएम वसुंधरा राजे का नाम आगे कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ना बोलने दिया गया, ना पीएम ने नाम लिया
पीएम मोदी की जयपुर सभा में बड़ी तादाद में महिलाएं पहुंची थीं। वसुंधरा राजे भी यहां मौजूद थीं, उन्हें ठीक से बोलने तक का मौका नहीं दिया गया, ना पीएम ने अपने आधे घंटे के संबोधन के दौरान एक बार भी उनकी सरकार का जिक्र किया।
भाजपा सांसद दीया कुमारी और भाजपा की राष्ट्रीय सचिव अलका गुर्जर ने कार्यक्रम की एंकरिंग की, माना यह गया कि पार्टी नई महिला नेताओं को चेहरा बनाना चाहती है।
दरकिनार की जा रही हैं वसुंधरा राजे?
ऐसी भी चर्चाएं हैं कि वसुंधरा राजे को भाजपा ने पार्टी के नेताओं की सहमति से दरकिनार किया है। राजे विरोधी खेमे का कहना है कि उन्हें पिछले साढ़े चार साल में पार्टी के लिए के लिए कुछ नहीं किया जबकि उनके करीबी लोगों का कहना है कि जिन कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने का उन पर आरोप है, उनमें उन्हें कभी आमंत्रित नहीं किया गया। यह कार्यक्रम प्रदेश के 9 उपचुनावों, पिछले साल जन आक्रोश यात्रा और हाल ही में परिवर्तन संकल्प यात्रा आदि थे।
वसुंधरा राजे को दरकिनार किए जाने की क्या हो सकती है वजह?
अगर वसुंधरा राजे को पार्टी द्वारा दरकिनार किए जाने के कारणों को खंगालने की कोशिश की जाए तो बहुत से मजबूत कारण दिखाई देते हैं। जैसे वसुंधरा राजे के मोदी-शाह नेतृत्व के साथ कभी भी बहुत मधुर संबंध नहीं रहे हैं, और सीएम के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान संघ के साथ उनकी अनबन देखी गई थी। उनके करीबी युनूस खान को पार्टी ने बुरी तरह दरकिनार किया था जिसके बाद यह अनबन खास तौर पर सामने आई थी।
पिछले कुछ सालों में भाजपा ने वसुंधरा राजे के वफादारों रोहिताश शर्मा और देवी सिंह भाटी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था और हाल ही में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल को भी निलंबित कर दिया था। जिसपर मेघवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “वसुंधराजी के समर्थकों को अलग कर दिया गया, हटा दिया गया अब अगर वह सहमत नहीं हैं और फिर भी बैठकों में भाग लेती हैं, तो मैं क्या कर सकता हूं?”
क्या वसुंधरा राजे को दरकिनार करना भारी पड़ सकता है?
इस पूरी बहस और अटकलों के दौर के बीच कहीं ना कहीं भाजपा वसुंधरा राजे को लेकर सावधान दिखाई दी है। उदाहरण के लिए हम समझ सकते हैं कि राजे के आलोचक गुलाब चंद कटारिया को राजस्थान से बाहर ले जाया जाना असम का राज्यपाल बना दिया जाना, राजे विरोधी खेमे के एक अन्य नेता सतीश पूनिया की जगह सीपी जोशी को राज्य भाजपा प्रमुख बनाया जाना, यह इशारे हैं जिन्हें वसुंधरा के पक्ष में माना जाता है।
पार्टी के एक नेता ने कहा, ”नेतृत्व ने जानबूझकर वसुंधरा मामले को खींचा है, फिलहाल उनके पास कोई चाल चलने के लिए समय नहीं बचा है, अगर है भी तो… कांग्रेस के पास शरद पवार, ममता बनर्जी और वाईएस जगन मोहन रेड्डी जैसे उदाहरण हैं, जिन्होंने पार्टी छोड़ दी और बाहर अच्छा प्रदर्शन किया है, इसलिए पार्टी को सतर्क रहना चाहिए।”
भाजपा के 70 विधायकों में से 40 से ज़्यादा पहले राजे के करीबी माने जाते थे। लेकिन भाजपा में कुछ लोगों को लगता है कि हवा का रुख किस तरफ होगा, इसके आधार पर वे पाला बदल सकते हैं।
अब सबकी नजर टिकट बंटवारे पर है, अगर राजे के समर्थकों को नजरअंदाज किया जाता है, तो राजे ज्यादा से ज्यादा उन्हें निर्दलीय के रूप में प्रचारित कर सकती हैं। यह एक मुश्किल चुनाव कहा जा रहा है, ऐसे में वसुंधरा की भूमिका बहुत ज़्यादा है और भाजपा उन्हें आसानी से किनारे नहीं लगा सकती।