मई 2015 में देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी थी। ये तस्वीर नेताओं के बारे में बनी सभी आम धारणाओं को तोड़ रही थी। तस्वीर में गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और रक्षा मंत्री पर्रिकर पुणे में एक शादी समारोह में आम लोगों के साथ आम आदमी की तरह लाइन में खड़े दिख रहे थे। हमेशा साधारण कपड़े पहनने वाले पर्रिकर की ये तस्वीर किसी पीआर एजेंसी या पार्टी के प्रचार विभाग ने नहीं खींची थी। बल्कि एक आम आदमी ने खींच कर फेसबुक पर शेयर कर दी थी जिसके बाद देखते ही देखते तस्वीर इंटरनेट पर छा गयी। इस तस्वीर में वो राज छिपा है जिसकी वजह से गोवा में कोई भी लाइन वहीं से शुरू होती है जहाँ पर्रीकर खड़े हों। यही नजारा 12 मार्च को एक बार फिर तब देखने को मिला जब गोवा विधान सभा चुनाव का नतीजा आया।
40 सीटों वाली गोवा विधान सभा में सत्ताधारी भाजपा को महज 13 सीटें मिलीं। मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को 17 सीटों पर जीत मिली। बाकी 10 सीटों दो छोटी-छोटी पार्टियों और निर्दलियों को मिलीं। राज्य में त्रिशंकु विधान सभा के बादल अभी छाये ही थे कि गोवा चुनाव में तीन-तीन सीटें जीतने वाली गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी ने लिखित रूप में दे दिया कि अगर भाजपा मनोहर पर्रिकर को राज्य का सीएम बनाए तो वो उसे समर्थन दे सकते हैं। निर्दलीय विधायकों ने भी इसी शर्त के साथ भाजपा को लिखित समर्थन दे दिया।
ऐसा नहीं है कि पर्रिकर पुणे वाली तस्वीर में पहली बार आम लोगों के बीच आम आदमी की तरह नजर आए हों। नवंबर 2014 में देश के रक्षा मंत्री बने पर्रिकर उससे पहले दो बार गोवा के सीएम रह चुके थे। आईआईटी बॉम्बे से बीटेक और एमटेक देश के किसी भी राज्य का सीएम बनने वाले पहले आईआईटी स्नातक हैं। सीएम रहने के दौरान भी उनकी साधारण जीवनशैली चर्चा के विषय रहती थी। वो सीएम बनने के बाद भी अपने पुश्तैनी साधारण घर में रहते थे। साधारण कपड़े पहनते थे। अपने संग मुख्यमंत्रियों वाला लाव-लश्कर लेकर नहीं चलते थे।
राजनीति में पर्रिकर का कद जहां हर रोज बढ़ता जा रहा था वहीं निजी जीवन में उन्हें गहरा आघात तब लगा जब उनकी पत्नी मेधा का कैंसर से निधन हो गया। दो किशोर बेटों को पिता उसके चंद महीनों बाद ही पहली बार राज्य के सीएम बने थे। सीएम रहने के दौरान भी उन्होंने एकल अभिभावक के रूप में अपने बेटों पर पूरा ध्यान दिया। रक्षा मंत्री बनने पर भी उन्होने एक बार ध्यान दिलाया था कि वो एकल अभिभावक हैं और उनका परिवार गोवा में रहता है इसलिए उन पर दोहरी जिम्मेदारी है। 2014 में जब सीएम रहने के दौरान उनके बेटे की शादी हुई तो वो उसमें हमेशा की तरह साधारण कपड़ों में ही नजर आए। इतना ही नहीं शादी की ्गली सुबह ही वो सीएम कार्यालय में समय पर पहुंचकर अपना दायित्व पूरा करते नजर आए।

गोवा में पर्रिकर को किसी आम चाय की दुकान पर स्कूटर खड़ा करके चाय पीते दिख जाना कोई बड़ी बात नहीं है। वो हमेशा एक आधी बांह वाली कमीज और साधारण पैंट में नजर आते हैं। वीआईपी और वेरी-वीआईपी के तामझाम से त्रस्त देश में ऐसे नेता को आम जनता साधुस्वभाव समझकर उसकी मुरीद हो जाए तो क्या आश्चर्य। गोवा के मापुसा में जन्मे पर्रीकर की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय लॉयोला हाई स्कूल में हुई। स्कूल के बाद उन्हें आईआईटी मुंबई में बीटेक में दाखिला मिला। 1978 में आईआईटी मुंबई से उन्होंने एमटेक करके निकले। आईआईटी से निकलते ही पर्रीकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए।
संघ में पर्रिकर की प्रतिभा को पूरा सम्मान मिला। 26 साल की उम्र में वो संघचालक बन गए थे। राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान उत्तरी गोवा में प्रमुख संगठनकर्ता रहे। 1994 में वो पहली बार विधायक बने और फिर राज्य की राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1999 में वो गोवा विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष बने। 24 अक्टूबर 2000 में पहली बार भाजपा की सरकार बनी और पर्रिकर पहली बार राज्य के सीएम बने। 2002 में राज्य में विधान सभा चुनाव हुए तो उनके नेतृत्व में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और पर्रिकर राज्य के सीएम बने। पर्रिकर को जनवरी 2005 में तब बड़े राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ा जब उनके चार विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और उनकी सरकार गिर गई। राज्य में हुए अगले विधान सभा चुनाव में पर्रिकर के नेतृत्व में भाजपा को दिगंबर कामत के नेतृत्व वाली कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन साल 2012 के चुनाव में पर्रीकर ने 24 सीटें जीतकर एक बार राज्य में भगवा फहराया और गोवा के सीएम बने।
मई 2014 में हुए लोक सभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही राजनीतिक हलक़ों में पर्रीकर की काबिलियत और बेदाग छवि को देखते हुए केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी देने की मांग होने लगी। आखिरकार नवंबर 2014 में उन्हें देश का रक्षा मंत्री बनाया गया। रक्षा मंत्री रहते हुए वो अगस्तावेस्टलैंड खरीद घोटाले और फिर नियंत्रण रेखा (एलओसी) पारकर पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की गयी सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े बयानों के कारण विवादों में आए लेकिन उन पर कोई बड़ा आरोप नहीं लगा। उनके कार्यकाल में भारत ने कई बड़े रक्षा सौदे किए।
रक्षा मंत्री बनने के बाद भी गोवा में पर्रीकर की मांग बराबर बनी रही। उनकी लोकप्रियता इसी से समझी जा सकती है कि विधान सभा चुनाव से पहले भाजपा को कई बार ये आश्वासन देना पड़ा कि अगर जनता चाहेगी तो पर्रिकर को केंद्र से राज्य के सीएम के रूप में वापस भेजा सकता है। चुनाव में भाजपा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर के हार जाने के बाद ये बात और साफ हो गयी कि गोवा में पर्रिकर ही पार्टी हैं, पर्रिकर ही पार्टी समर्थकों के नेता हैं।
मंगलवार (14 मार्च) को वो एक बार फिर गोवा के सीएम के रूप में शपथ लेने वाले हैं। कांग्रेस ने उनके शपथ ग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिस पर आज ही सुनवाई होनी है। इस राजनीतिक और अदालती खींचतान को चाहे जो भी अंजाम हो इतना तय है कि भाजपा के पास गोवा में मनोहर पर्रीकर को कोई विकल्प नहीं है। लोकप्रिय जुमले में कहें तो गोवा को पर्रीकर पसंद है।