गौतमबुद्ध नगर सीट पर होने वाला चुनाव कई मायनों में देश की अन्य जगहों से अलग है। यहां विकास के मुद्दे पर जातिवाद लहर हावी होने से ज्यादा प्रभावी शहरी बनाम ग्रामीण मतों का अंतर हार-जीत में निर्णायक साबित होगा। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, ग्रेनो वेस्ट, दादरी का बड़ा क्षेत्र अब शहरी क्षेत्र में परिवर्तित हो चुका है।

साथ ही पुराने कस्बे जैसे रबूपुरा, बिलासपुर, दनकौर और खुर्जा शहर आदि में भी शहरी और ग्रामीण मतदाता, दोनों की प्राथमिकताओं में अंतर है। ऐसे में इस सीट पर चुनावी दंगल में तीन प्रमुख उम्मीदवारों ने अपने- अपने समर्थकों की गोलबंदी कर ली है। जानकारों का मानना है कि पूर्व में हुए चुनावों की तर्ज पर यदि गौतमबुद्ध नगर सीट पर 60 फीसद के आसपास मतदान होना संतोषजनक माना जा सकता है।

दो बार भाजपा, एक बार बसपा को मिली जीत

गौतमबुद्ध नगर सीट के गठन के बाद 2009 में हुए पहले चुनाव में बसपा उम्मीदवार सुरेंद्र नागर ने भाजपा उम्मीदवार महेश शर्मा को हराया था। 2014 में महेश शर्मा ने जीतकर यहां भाजपा का खाता खोला। 2019 में भी महेश शर्मा ने सपा-बसपा के गठबंधन के प्रत्याशी को 3.36 लाख से ज्यादा के अंतर से हरा कर दूसरी बार जीत दर्ज की। इस सीट पर पूर्व में प्रतिद्वंदी रहे तीनों, सुरेंद्र नागर, सतबीर और नरेंद्र भाटी वर्तमान में भाजपा में हैं और भाजपा उम्मीदवार को जिताने के लिए दौड़-धूप कर रहे हैं।

2008 के परिसीमन ने दी क्षेत्र को अलग पहचान

गौतमबुद्ध नगर रामायण और महाभारत काल की स्मृति में संजोए हुए है। यहां के दनकौर में द्रोणाचार्य और बिसरख में रावण के पिता विश्वश्रवा ऋषि का प्राचीन मंदिर आज भी है। गौतमबुद्ध नगर की स्थापना 9 जून 1997 को बुलंदशहर एवं गाजियाबाद के ग्रामीण व अर्ध शहरी क्षेत्रों को काटकर की गई थी। 2008 के परिसीमन ने इस क्षेत्र को अलग पहचान दी और गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी।