बीते 2014 के संसदीय चुनाव में नोटा यानी इनमें से कोई नहीं बिहार की सीटों पर काफी ताकतवर बनकर उभरा था। इसे देखते हुए चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के मन में डर समाया है। कहीं नोटा रोड़ा बन उनकी किस्मत की बाजी न पलट दे। ऐसा बीते चुनाव में हो चुका है। यह नाराज मतदाताओं की पहली पसंद बनते जा रहा है। बीते चुनाव में बिहार के 5 लाख 60 हजार से ज्यादा नाराज मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। मिसाल के तौर पर भागलपुर संसदीय क्षेत्र के 2014 के चुनाव नतीजे पर गौर किया जाए। यहां भाजपा के शाहनवाज हुसैन 9485 मतों से राजद के शैलेश मंडल उर्फ बुलो मंडल से पराजित हुए थे। जबकि 11875 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। अबकी यहां भाजपा के बदले जदयू लड़ रही है।

जदयू के उम्मीदवार के तौर पर अजय मंडल है। ये नाथनगर से विधायक भी है। यहां चुनाव 18 अप्रैल को हो चुका है। मगर मतदाताओं से मिले फ़ीडबैग और रणनीतिकारों के आकलन में यह कयास लगाया जा रहा है कि नोटा का बटन दबाने वालों की तायदाद पिछले चुनाव के मुकाबले अबकी ज्यादा रहेगी। हालांकि उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है। 23 मई को असलियत का पता चलेगा।

मगर उम्मीदवार पसंद न आने वाले मतदाताओं के लिए नोटा मजबूत औजार बनकर उभरा है। इसी तरह मधुबनी में 18937 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। यहां भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव की किस्मत तेज रही। वे केवल 20 हजार 535 वोटों से जीते थे। गिनती के दौरान वे पसीने से तरबतर हो गए थे। समस्तीपुर के मतदाताओं ने सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल किया था। यहां नोटा को 29211 मत मिले थे। 26622 वोटरों ने बेगूसराय में, 23868 खगड़िया के मतदाताओं ने , 23404 महाराजगंज, सुपौल में 21966 और मधेपुरा में 21924 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था। हार जीत कम अंतर वालों के लिए इतने मत बाजी पलटने के लिए काफी है।

आंकड़ों के जानकार बताते है कि नोटा बटन दबाने वालों में बिहार देश में तीसरे स्थान पर रहा था। यहां 5 लाख 80 हजार 964 लोगों ने नोटा में वोट डाले थे। उत्तरप्रदेश देश में अव्वल था। तो तमिलनाडु का स्थान दूसरा था। बिहार के ग्यारह ज़िले जमुई, बेगूसराय, महाराजगंज, सारण, समस्तीपुर, मधेपुरा, गोपालगंज, सुपौल, किशनगंज, पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण में नोटा चौथे पायदान पर रहा।

वहीं औरंगाबाद, आरा, सासाराम, खगड़िया, मुंगेर, सीवान, दरभंगा, अररिया, और मधुबनी में नोटा वोट हासिल करने में पांचवें स्थान पर रहा। काराकाट, नवादा, गया, भागलपुर, हाजीपुर व मुजफ्फरपुर छठे और जहानाबाद, बक्सर, पूर्णिया, बाल्मीकिनगर में स्थान सातवां रहा।

जबकि सबसे कम कटिहार के 3287 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। पाटलिपुत्र में 4678, नालंदा में 5452, सीतामढ़ी में 5949, वैशाली में 6060 और उजियारपुर में 6171 मतदाताओं ने वहां के उम्मीदवारों को नापसंद कर नोटा का बटन दबाया। ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम के सबसे नीचे वाली बटन नोटा की होती है। इसे ज्यादा ढूंढना नहीं पड़ता।

इस बटन को दबाने वाले ज्यादातर वैसे पढ़े लिखे या नौजवान होते है जिन्हें उम्मीदवार नापसंद है। यह देखा भी जाता है कि राजनैतिक दल जनता से बगैर रायशुमारी किए या हवाई नेता को चुनाव में उतार जातपात , बाहुबल या धनबल पर लोगों से वोट हासिल करने की कोशिश करते है। इसी को झटका देने का औजार वोटरों को दिया गया है। जो धीरे धीरे मजबूत रूप लेने लगा है। भाजपा के कद्दावर नेता शाहनबाज इसकी मिसाल है।