देश में लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व की उम्मीद से धीमी शुरुआत देखने को मिली है। पहले चरण के दौरान 63 फीसदी के करीब मतदान हुआ है। ये 2019 के पहले चरण की तुलना से भी कम वोटिंग है। अब कम वोटिंग को लेकर सभी पार्टियां चिंतित हैं, उनके अपने तमाम समीकरण बिगड़ गए हैं, अलग-अलग अटकलें लग रही हैं। लेकिन दूसरी तरफ कम वोटिंग का एक कारण जनता के बीच में कम होता उत्साह भी है और उसी उत्साह के कम होने की एक वजह खुद चुनाव आयोग भी है।
चुनाव आयोग ने इस बार लोकसभा चुनाव को सात चरणों में संपन्न करवाने की बात कही है। कुल 44 दिनों तक देश चुनावी मोड में रहने वाला है। अब ये चुनाव आजाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा इकेक्शन बताया जा रहा है। इससे पहले देश का पहला आम चुनाव ही इतना लंबा खींचा गया था। ऐसे में सभी के मन में सवाल है कि आखिर चुनाव आयोग ने इलेक्शन को इतने दिनों तक के लिए क्यों खींच दिया? इसके ऊपर बदलते मौसम को ध्यान में ना रखना और चुनावी तारीखों को बिना प्लानिंग तय कर देना भी कुछ बड़ी चूक के रूप सामने आया है। आपको यहां पर चार प्रमख कारण बताते हैं जिस वजह से इस लोकसभा चुनाव में कम वोटिंग की नींव पड़ चुकी है।
कारण नंबर 1- चुनाव की तारीखों में ही बड़ा खेल
ऐसा कहा जाता है कि कई बार जनता ही अपने मताधिकार को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाती है, अगर उसे वोटिंग के लिए छुट्टी मिलती है, तो वो परिवार के साथ घूमने निकल जाता है। अब ये ट्रेंड एक सच जरूर है, एक बड़ा वर्ग ऐसा करता भी है। लेकिन चुनाव आयोग की ये जिम्मेदारी होती है कि वो उस ट्रेंड को तोड़ने का काम करे, इस प्रकार से तारीखों का ऐलान करे कि जनता ही छुट्टी मनाने ना जा पाए। लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने उस ट्रेंड को दिल खोलकर बढ़ावा देने का काम कर दिया है। जरा एक नजर चुनाव की तारीखों पर डालते हैं
चरण | तारीख | दिन |
पहला चरण | 19 अप्रैल | शुक्रवार |
दूसरा चरण | 26 अप्रैल | शुक्रवार |
तीसरा चरण | 7 मई | मंगलवार |
चौथा चरण | 13 मई | सोमवार |
पांचवां चरण | 20 मई | सोमवार |
छठा चरण | 25 मई | शनिवार |
सातवां चरण | 1 जून | शनिवार |
अब ऊपर दी टेबल को ध्यान से देखिए,चुनाव आयोग ने वोटिंग तारीख के लिए शुक्रवार, शनिवार, सोमवार जैसे दिनों का चयन किया है। एक तरफ अगर शनिवार तो वीकेंड माना जाता है, दूसरी तरफ शुक्रवार और सोमवार को एक्सटेंडेट वीकेंड के रूप में देखा जा सकता है। अगर कोई शख्स शुक्रवार को छुट्टी लेता है तो उसे आराम से शनिवार-रविवार का ऑफ भी मिल जाता है, यानी कि तीन दिन का अवकाश। इसी तरह अगर कोई सोमवार को छुट्टी लेने का फैसला करता है, उसे फिर शनिवार, रविवार और सोमवार के रूप में तीन दिन बाहर कहीं जाने का मौका मिल सकता है। वहीं अगर कोई बस दो लीव लेने का फैसला लेता है तो मंगलवार तक उसके लिए आराम वाले दिन रहने वाले हैं।
अब जो चीज यहां इतनी आसानी से समझ आ रही है, चुनाव आयोग ने उस पर ध्यान नहीं दिया है। वो कम वोटिंग को लेकर जनता को दोष दे सकता है, कह सकता है कि लोग ही अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करने का काम कौन कर रहा है? क्या शुक्रवार, शनिवार और सोमवार से बेहतर दिन चुनाव आयोग को नहीं मिला वोटिंग के लिए? ऐसा कैसे संभव है कि सातों चरण की वोटिंग ऐसे दिनों में हो रही है जब या तो वीकेंड पड़ रहा है या फिर एक-आद छुट्टी को लेकर उसे वीकेंड जैसा बनाया जा सकता है।
कारण नंबर 2- एग्जाम सारे खत्म, चुनाव देर से क्यों शुरू
एक हैरानी की बात ये सामने आई है कि इस बार चुनाव आयोग ने काफी देर से ही चुनावों का ऐलान किया है। हर कोई सोचकर बैठा था कि मार्च के अंत में या फिर अप्रैल के पहले हफ्ते से ही देश इलेक्शन मोड में चला जाएगा। लेकिन यहां तो 19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग हुई है और 26 अप्रैल को दूसरे चरण की होने वाली है। अब अगर छात्रों की परीक्षाएं चल रही होतीं, शिक्षक और दूसरे अधिकारी व्यस्त होते, उस कारण से तो चुनावों का टलना समझ आता है। लेकिन इस बार तो सारी परीक्षाएं ही समय रहते खत्म हो चुकी थीं। CBSE की 12वीं की परीक्षा ही सबसे लंबी चली, लेकिन वो भी 2 अप्रैल को संपन्न हो गई थी। उसके ऊपर अगर कुछ समय चेकिंग के लिए दे दिया जाए, फिर भी कई दिन बच जाते चुनाव तारीखों के ऐलान के लिए। लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसी कोई प्लानिंग नहीं की।
कुछ तारीखों के जरिए आपको समझाने की कोशिश करते हैं। CBSE की जो 10वीं की परीक्षा थी, वो 13 मार्च को समाप्त हो गई थीं, यूपी बोर्ड की परीक्षा 9 मार्च को समाप्त हो चुकी थी। दूसरे राज्यों की बोर्ड परीक्षाएं भी फरवरी-मार्च तक खत्म हो चुकी थीं, यानी कि चुनाव आयोग के पास इलेक्शन जल्दी करवाने के सारे कारण मौजूद थे। लेकिन फिर भी 19 अप्रैल से ही वोटिंग शुरू करवाई गई।
कारण नंबर 3- सूरज बरसा रहा है आग
अब चुनाव आयोग ने इस बार जो इस इलेक्शन को इतना लंबा खींचा है, उससे एक बड़ा नुकसान और हो रहा है। अब जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता जाएगा, तापमान भी बढ़ने वाला है। इस बार कहा जा रहा है कि गर्मी कई रिकॉर्ड तोड़ देगी। मई महीने में तापमान 40 डिग्री तक चला जाएगा और फिर आगे चलकर 50 के करीब भी पहुंचेगा। मई के अंत में तो हीट वेव तक की स्थिति बनेगी, यानी कि भीषण गर्मी भी लोगों को वोटिंग से दूर करने के लिए काफी है। मौसम का मिजाज इस समय वोटिंग के लिए मुफीद नहीं दिख रहा है। अगर चुनाव थोड़ी जल्दी होते और कम दिनों में उन्हें संपन्न करवाया जाता तो जून की भीषण गर्मी से बचा जा सकता था।
कारण नंबर 4- जितना लंबा चुनाव, उतनी बोरियत
अब चुनाव आयोग इस बात को स्वीकार करे या ना करे, लेकिन चुनाव जब जरूर से ज्यादा लंबा खिच जाता है, बोरियत का आना लाजिमी है। वोटर पहले ही गर्मी से त्रस्त है, इसके ऊपर हर चरण के बीच में इतना लंबा गैप कर दिया गया है, जमीन पर एक उदासीनता का माहौल बन जाता है। पहले ही चरण में दिख चुका है कि जनता ने वोटिंग को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया है। अब तो जब आगे चलकर और ज्यादा दिनों के बाद वोटिंग होगी, ये थकावट और उदासीनता बढ़ती जाएगी।
ये हाल तब है जब देश एक देश एक चुनाव की बात कर रहा है, तर्क दिया जाता है कि ज्यादा लंबे समय तक देश को चुनावी मोड में नहीं रखा जा सकता। लेकिन अब तो 44 दिनों तक देश को उसी जोन में रखने का काम कर दिया गया है। कारण स्पष्ट नहीं है और सुधार या फिर कहना चाहिए बदलाव की बड़ी दरकार साफ दिखाई देती है।