लोकतंत्र के हर पर्व में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने वाली दिल्ली अपना ही कीर्तिमान इस बार तोड़ बैठी। करीब 28 साल पहले 69वां संविधान संशोधन (1991) से अस्तित्व में आई दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव 1993 में हुआ था। 1998 के बाद दिल्ली वालों का वोट फीसद हर विधानसभा चुनाव में बढ़ा। चुनाव आयोग इसे लेकर लगातार कमर कसता रहा और उसे पिछले हर चुनाव में सफलता भी मिली थी। हर बार वोट फीसद बढ़ा, लेकिन 1998 के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है जब वोट फीसद में दस फीसद से ज्यादा की गिरावट दर्ज हुई। वोट फीसद 57 पर सिमटा।
2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में वोट फीसद 67.47 था। पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में करीब डेढ़ फीसद बढ़ोतरी हुई थी, जबकि 2013 के विधानसभा में 66.02 फीसद वोट पड़े थे। इसी साल करीब साढ़े आठ फीसद ज्यादा वोट हुए। इस समय आप पहली बार चुनाव मैदान में उतरी थी। 2008 के विधानसभा में 57.60 फीसद वोट पड़े थे। इस साल भी करीब साढ़े चार फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई थी। शीला दीक्षित तीसरी और आखिरी बार मुख्यमंत्री बनीं थी।
मुख्य चुनाव अधिकारी डॉक्टर रणबीर सिंह के मुताबिक, शनिवार को शाम छह बजे तक 57.06 फीसद मतदान दर्ज किया गया। हालांकि वोट पड़ने के रुझान से ही कम वोट होने का अंदेशा हो गया था। वोट डालने पहुंचे मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा इस बाबत किए गए सवाल को टाल गए। सुबह के समय मतदान कम रहने के बारे में पूछे जाने पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि यह परंपरा नई नहीं है। दोपहर बाद मतदान गति तेज होने लगती है। अरोड़ा के साथ दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉक्टर रणबीर सिंह भी थे। अरोड़ा से संवाददाताओं ने कहा कि मतदाताओं में मताधिकार को लेकर कम उत्साह दिख रहा है, लेकिन अरोड़ा ने पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार अधिक मतदान होने के बारे में भरोसा जताते हुए कहा- ‘उम्मीद पर जीवन कायम है।’
दिल्ली चुनाव में वोट की धीमी शुरुआत हुई। मतदान का समय आठ बजे सुबह तय था। पहले एक घंटे यानि नौ बजे तक करीब 4 फीसद लोगों ने ही मतदान किया था। जैसे जैसे दिन चढ़ा लोगों की शिरकत बढ़ी। वोट फीसद इसके बाद के दो घंटे में 16.30 फीसद पहुंचा, लेकिन अपने पिछले रिकार्ड से लगातार पीछे ही चल रहा था। यह स्थिति तब थी जब जाफराबाद, शाहीन बाग और सीलमपुर, मटियामहल जैसे अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में जबरदस्त मतदान हुआ। मुस्तफाबाद, मटियामहल और सीलमपुर पर सबसे अधिक मतदान हुआ।
जो क्रम से 66.29 फीसद ,65.62 फीसद, और 64.92 फीसद दर्ज हुआ। शाहीन बाग में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन कर महिलाओं ने विधानसभा चुनाव में मतदान केंद्रों पर बारी-बारी से जाकर मतदान किया, ताकि उनका आंदोलन प्रभावित ना हो। बहरहाल आयोग के सराहनीय प्रयास भी असफल साबित हुए। बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं को घर से ही मतदान करने, ब्रेल लिपि वाले मतदाता पहचान पत्र जारी करने और मतदाताओं के लिए घर से लाने और छोड़कर आने की सुविधा देने जैसे चुनाव आयोग के कदमों को सराहना तो मिली, लेकिन ये कदम भी वोट फीसद नहीं बढ़ा सका।
सराहना करने वालों में आम लोगों के अलावा दिल्ली के वरिष्ठतम मतदाताओं में शामिल केवल कृष्ण भी शामिल हैं।
