छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण में नक्सलवाद पर लोकतंत्र भारी पड़ता नजर आया। नक्सल प्रभावित 18 सीटों पर धमाकों, धमकियों और मुठभेड़ के बीच जमकर मतदान हुआ। कहीं नक्सलियों ने ग्रामीणों को बंधक बनाया तो कहीं बारूदी जाल बिछाकर जवानों को निशाना बनाया लेकिन तमाम हथकंडों के बावजूद वे मतदान की रफ्तार को नहीं थाम सके। सुरक्षा बलों के लाखों जवानों ने नक्सलियों के अरमानों पर पानी फेर दिया। साये की तरह मंडराती मौत के बावजूद छत्तीसगढ़ के लोगों ने पहले चरण में 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
लोगों के उत्साह से यूं जीता लोकतंत्र
तमाम खतरों के बावजूद छत्तीसगढ़ के ‘रेड जोन’ में कोई व्हील चेयर के सहारे मतदान को पहुंचा तो किसी ने ढलती उम्र के चलते कांपते हाथों में छड़ी के सहारे जाकर लोकतंत्र का बटन दबाया। कई इलाकों में लोग नदी पार करके भी पोलिंग बूथ तक पहुंचे। हाईप्रोफाइल सीट राजनांदगांव के कुछ बूथों पर निशक्तजन भी मतदान के लिए पहुंचे। उनकी मदद के लिए स्काउट-गाइड के विद्यार्थियों ने हाथ बढ़ाए। कभी नक्सलियों के कमांडर रहे नारायणपुर के मैनूराम और राजबत्ती ने भी मतदान किया। दोनों ने चार साल पहले ही आत्मसमर्पण कर विकास की मुख्यधारा को अपनाया था। इन इलाकों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं और युवतियों ने मतदान में ज्यादा उत्साह दिखाया।
ऐसा है खौफ का साया
मतदान के पहले दिन नक्सलियों ने सात आईईडी ब्लास्ट किए। सुकमा के पुसपाल थाना क्षेत्र में सोमवार शाम करीब 5:30 बजे सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में बीजापुर के रहने वाले दो नक्सली ढेर हो गए। बीजापुर में कोबरा बटालियन पर नक्सली हमला हो गया जिसमें पांच जवान घायल हो गए। डीआईजी आलोक अवस्थी के मुताबिक इस घटना में करीब 10 नक्सली ढेर हो गए।
यहां कोई नहीं पहुंचा मतदान करने
सबसे अधिक नक्सल प्रभावित जिलों में शुमार दंतेवाड़ा के करीब एक दर्जन गांवों में नक्सलियों ने ग्रामीणों को बंधक बना लिया और उन्हें वोट देने नहीं जाने दिया। इन गांवों में पोटाली, बुरगुम, बर्रेम, निलावाया, नहाड़ी, काकड़ी, जबेली, रेवाली, एटपाल, जियाकोड़ता, पुजारी पाल और मुलेर शामिल हैं। पुलिस के मुताबिक इन गांवों में पोलिंग बूथ खुले रहे लेकिन कोई भी वोट डालने नहीं पहुंचा।