Lok Sabha Election 2019: पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर अबकी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और तेजी से नंबर दो की ओर बढ़ती भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। वाममोर्चा और कांग्रेस इस मुकाबले को चौतरफा बनाने का प्रयास जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनके सामने पहले अपनी पिछली सीटों को ही बचाने की कड़ी चुनौती है। इन दोनों ने सीटों पर आपस में तालमेल जरूर किया है। लेकिन फिर भी उनकी राह आसान नहीं है। इसके उलट संगठनात्मक खामियों से जूझने के बावजूद भाजपा ने खासकर राज्य के सीमावर्ती इलाकों में स्थित सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। तृणमूल कांग्रेस ने जहां अबकी राज्य की तमाम 42 सीटों पर जीत का दावा किया है वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश नेतृत्व को राज्य के कम से कम 23 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। बीते लोकसभा चुनावों में उसे यहां महज दो सीटें मिली थीं। लेकिन फिलहाल टिकटों के बंटवारे के मुद्दे पर भाजपा आंतरिक गुटबाजी से जूझ रही है।

राज्य में सात चरणों में चुनाव कराने के आयोग के फैसले पर भी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में ठन गई है। तृणमूल कांग्रेस ने सात चरणों में चुनाव को भाजपा की साजिश करार दिया है। दूसरी ओर, भाजपा की दलील है कि सात चरणों में चुनाव कराने के आयोग के फैसले से साफ है कि राज्य में कानून व व्यवस्था की स्थित पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। पार्टी ने अपनी दलील के समर्थन में बीते साल हुए पंचायत चुनावों के दौरान हुए भारी हिंसा की भी मिसाल दी है। बीते साल मई में हुए पंचायत चुनावों में भारी पैमाने पर हिंसा जरूर हुई थी। चुनाव आयोग की पूर्ण टीम ने बीते महीने जब बंगाल का दौरा किया था तो भाजपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने उसे पंचायत चुनावों के दौरान हुई हिंसा का पूरा ब्योरा सौंपा था। भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख मुकुल राय कहते हैं कि सात चरणों में चुनाव कराने के फैसले से साफ है कि बंगाल में लोकतंत्र व हिंसा की स्थिति कितनी गंभीर है।

वाममोर्चा अध्यक्ष विमान बसु कहते हैं कि यह अहम नहीं है कि मतदान कितने चरणों में होगा। लोगों को निडर होकर अपने मताधिकार के इस्तेमाल का मौका मिलना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि मतदान लंबा खिंचने से आम लोगों पर अनावश्यक बोझ बढ़ेगा। पार्टी के नेता फिरहाद हकीम कहते हैं कि रमजान के महीने में चुनाव के कारण खासकर अल्पसंख्यकों को भारी दिक्कत होगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अल्पसंख्यक वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए ही तृणमूल कांग्रेस ने सात चरणों में चुनाव पर आपत्ति जताई है। राज्य में लगभग 30 फीसदी वोटर इसी तबके के हैं। इन चुनावों में कांग्रेस और वाममोर्चा के सामने अपने लगातार खिसकते जनाधार को बचाने की चुनौती है।

कांग्रेस को पिछली बार चार सीटें मिली थीं। लेकिन हाल में मालदा उत्तर की सांसद मौसम नूर के तृणमूल कांग्रेस में चले जाने से वह सीट खतरे में है। इसी तरह माकपा को महज दो सीटें मिली थीं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि तालमेल दोनों दलों की मजबूरी है। वर्ष 2011 के बाद बंगाल में कांग्रेस और माकपा के पैरों तले की जमीन लगातार खिसकती रही है।  भाजपा के प्रदेश राजनीति में तेज उभार ने कांग्रेस को तीसरे और माकपा को चौथे स्थान पर धकेल दिया है। ऐसे में यह चुनाव इन दोनों दलों के लिए वजूद की लड़ाई बन गया है।

भाजपा अपनी इस साजिश में कामयाब नहीं होगी। चुनाव चाहे सात चरणों में हों या चौदह में, हमारी जीत तय है। लोग हमारे साथ हैं। पहले यहां अधिकतम पांच चरणों में चुनाव हुआ था लेकिन तब यानी 2009 व 2014 में राज्य में एक ओर माओवाद की समस्या थी तो दूसरी ओर, दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलन सुलग रहा था। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं है।
-फिरहाद हकीम, नेता, तृणमूल कांग्रेस

हमने आयोग से मुक्त व निष्पक्ष चुनावों के लिए पर्याप्त तादाद में केंद्रीय बलों की तैनाती का अनुरोध किया है। वे कहते हैं कि हिंसा तो वाममोर्चा के शासन में भी होती थी, लेकिन तृणमूल के शासन में इसकी तमाम हदें पार हो गई हैं।
-अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस के सांसद व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष