बिहार में हो रहे नगर निकाय चुनाव न तो दिल्ली की तरह दलगत है और न ही झारखंड की तर्ज पर सीधे महापौर या उप महापौर चुनने का मतदाताओं को अधिकार है। इस वजह से पार्टियों के झंडे और निशान का घमासान नहीं है। मगर एक बात दिलचस्प है कि महिलाएं खुलकर अपने लिए या अपने शौहर के लिए टोलियों में घर-घर वोट मांगने निकल रही हैं। बिहार की 101 नगर निकाय का चुनाव ठीक चार रोज बाद यानि 21 मई  को होना है। इस वजह से चुनाव प्रचार चरम पर है। भागलपुर नगर निगम में कुल 51 वार्ड हैं, जिन पर कुल 197 महिलाएं अपनी किस्मत आजमा रही हैं। वैसे उम्मीदवार तो 350 से भी ज्यादा हैं  मगर जितनी चहल-पहल महिला उम्मीदवारों में देखी जा रही है वैसी पुरुष उम्मीदवारों में नहीं है। ये सुबह से ही अपनी टोली बना गली मोहल्ले में जनसंपर्क के लिए निकल पड़ती हैं और घरों में जाकर भैया-भाभी अपनत्व की बोली बोल वोट देने की गुजारिश करती हैं।
भागलपुर में ऐसा कोई वार्ड नहीं जहां महिला प्रत्याशी न हो। जो वार्ड महिला के लिए आरक्षित है, वहां तो टक्कर महिला से ही होना लाजमी है लेकिन कई वार्ड ऐसे हैं जो सामान्य है। मगर मुकाबला महिलाओं के बीच ही है। मिसाल के तौर पर वार्ड नंबर 20 है। यहां निवर्तमान पार्षद उषा देवी फिर चुनाव लड़ रही हैं। इनकी टक्कर संगीता तिवारी से है तो वार्ड 19 में सभी पुरुष उम्मीदवारों को मौजूदा उप महापौर प्रीति शेखर प्रचार में अपनी फिर से मौजूदगी दर्ज कराने में आगे हैं।
ऐसा नहीं कि महिलाएं ही परेशान हैं, जो वार्ड महिला के लिए आरक्षित है। वहां निवर्तमान पार्षद अपनी पत्नी को उम्मीदवार बना चुनाव लड़वा रहे हैं। नतीजतन इनके पति जीत दिलाने के लिए तमाम तरह के पापड़ बेल रहे हैं। जिधर जाइए उधर ही अलग-अलग निशान वाले बैनर लगे रिक्शे और उस पर ऑडियो कैसेट के जरिए वोट मांगने की अपील। साथ में टोली में चल रहे उम्मीदवार राह चलते को नमस्कार कर अपना पंपलेट थमा ही देते हैं। न चाहते हुए भी वोट देने की हामी भरनी पड़ती है। मसलन आप इनसे आँखें चुराकर निकल नहीं सकते। एक-एक गली में आधा दर्जन इनके चुनाव दफ्तर खुले हैं।
हाँ, एक बात तय है चुनाव समर में डटे उम्मीदवार कर्मठ हों या न हों, युवा जरूर हैं। ज्यादातर की उम्र 21 से 40 के अंदर ही है। इनकी कर्मठता तो चुनाव जीतने के बाद ही समझ में आएगी। फिलहाल तो इनके नारे कुछ कर गुजरने के जज्बे को दर्शाती है। वरीय वकील कौशल किशोर पांडे, हरिप्रसाद शर्मा, व्यापारी पवन कुमार व्यास, ईस्टर्न बिहार चेम्बर के सचिव संजीव कुमार शर्मा सरीखे ने  इस संवाददाता से बातचीत में अपील की कि वोट उसे दें जो सहज, सुलभ और वार्ड के लोगों की दिक्कतों का ध्यान रखे। यह हकीकत भी है।
चूंकि, चुनाव चुनाव दलगत नहीं है। इस वजह से राजनीतिक दलों के झंडे, बैनर और छाप के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग की रोक है। पार्टी से जुड़े नेता या मंत्री को भी किसी उम्मीदवार विशेष के प्रचार करने की मनाही है। नतीजतन, उम्मीदवार अपनी अपनी पसंद की छाप ले प्रचार में जुटे हैं। नजारा यह है कि कोई कलम दवात, तो कोई पतंग या वायुयान, नल, मोतियों की माला, ताला-चाभी, मेज, कुर्सी, छाता, चश्मा बगैरह निशान पर बटन दबाने की अपील कर रहा। मसलन, स्वतंत्र उम्मीदवार का स्वतंत्र छाप।
घरों में इनकी लगातार दस्तक से लोग अब परेशानी महसूस करने लगे हैं। चार्टर्ड फर्म चलाने वाले मुकेश जैन बोलते है कि  इन प्रत्याशियों के आने का कोई वक्त नहीं है। धड़धड़ा कर पाँच- सात की टोली ले दस्तक दे देते हैं। चाहे जो हो शनिवार तक तो इनको झेलना ही पड़ेगा। इसी का नाम लोकतंत्र है।