देश के 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे करीब-करीब साफ हो चुके हैं। कई दिग्गजों को इसमें हार का मुंह देखना पड़ा है। ये एेसे दिग्गज थे, जो अपनी जीत का दम भर रहे थे। लेकिन जनता के जनादेश ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आइए आपको बताते हैं उन दिग्गजों के बारे में :
अखिलेश यादव: पिता मुलायम सिंह के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश यादव ने शायद ही यह सोचा हो कि जनादेश यह होगा। अखिलेश यादव ने इसके लिए कांग्रेस से भी गठबंधन किया और राहुल गांधी के साथ मिलकर खूब रैलियां कीं। उन्होंने चुनाव प्रचार में भी कम नहीं की, लेकिन जनता ने उनके ‘काम बोलता है’ के नारे को उतनी गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने कांग्रेस संग गठबंधन के लिए ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ का नारा भी तैयार कराया, लेकिन जनता ने अखिलेश यादव की सरकार को सिरे से खारिज करते हुए बीजेपी को 300 से ऊपर सीट जिता दी हैं।
मायावती: फिर से यूपी की सत्ता में वापसी के ख्वाब संजोए बसपा अध्यक्ष के लिए यह चुनावी नतीजे सदमे की तरह ही हैं। उनकी पार्टी को पूरे यूपी में कुल 17 सीट मिली हैं। यह साफ करता है कि बीएसपी ने जो मुस्लिम-दलित को जोड़कर अपना एक वोट बैंक तैयार किया था वह अब घराशायी हो गया है और कहीं न कहीं यूपी में जातीय राजनीति का असर भी कम हो रहा है। मायावती के लिए यह कहीं न कहीं सोचने वाली बात है कि उनका पारंपरिक वोट बैंक भी बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो रहा है और राज्य में उनकी पार्टी की चमक फीकी पड़ रही है।
हरीश रावत: हरीश रावत का सरकार का कार्यकाल विकास का कम और विवादों से ज्यादा भरा रहा। उनका एक टेप भी सामने आया था, जिसमें वह कथित रूप से पैसों की बात करते सुने गए थे। फिलहाल वह उत्तराखंड में दोनों सीटों से चुनाव हार गए हैं। हरीश रावत ने किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़ा था।
अरविंद केजरीवाल: आप के संजोयक अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने पंजाब और गोवा में अपनी जीत का दावा ठोका था, लेकिन उन्हें परिणाम मन मुताबिक नहीं मिले। पंजाब में आम आदमी पार्टी को 21 सीटें ही मिल पाई हैं, जबकि गोवा में उनका खाता तक नहीं खुला। यह पार्टी की उम्मीदों को एक बड़ा झटका है।
राहुल गांधी: कांग्रेस उपाध्यक्ष ने इस पूरे चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उनकी नीतियों की कड़ी आलोचना की और उनके बयानों को लेकर तंज भी कसा। लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ किए गए उनके गठबंधन और यूपी को ये साथ पसंद है का नारा शायद पसंद नहीं आया।
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इरोम शर्मिला: 16 साल तक AFSPA के खिलाफ भूख हड़ताल पर रहीं इरोम शर्मिला भी इस बार मणिपुर चुनाव में खड़ी हुई थीं, लेकिन जनता का फैसला चौंकाने वाला रहा। इरोम शर्मिला को सिर्फ 90 वोट ही मिले। वह मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं। सिंह को 18,694 वोट मिले। इन नतीजों के बाद उन्हें नियम के अनुसार अपनी 10 हजार रुपये की राशि भी गंवानी पड़ेगी। चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक जिन उम्मीदवारों को उनके इलाके में एक छठा वोट नहीं मिलता, उन्हें यह राशि गंवानी पड़ती है। मणिपुर चुनावों में 143 लोगों ने नोटा को वोट दिया है।
लक्ष्मीकांत पारसेकर: मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री बनने के बाद इन्हें गोवा का मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन पारसेकर वह जलवा नहीं दिखा सके।
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