दिल्ली की सरकार के बूते पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनाव लड़ रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी(आप) ने दोनों राज्यों में चुनाव को तिकोना बनाने में कामयाबी हासिल की है। दोनों राज्यों में चार फरवरी को मतदान होने वाला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, उनके सहयोगी मंत्री और ज्यादातर विधायक महीनों से इन दोनों राज्यों में डेरा डाले हुए हैं। इससे दिल्ली का कामकाज भले ही प्रभावित हुआ है लेकिन आप की चुनावी तैयारी में कोई कमी नहीं आई। पंजाब में आप ने सबसे पहले से चुनावी तैयारी शुरू की थी, उसके चार में से दो सांसदों की बगावत और पार्टी के प्रमुख संगठनकर्ता सुच्चा सिंह छोटेपुरा को पार्टी से निकालने आदि तमाम राजनीतिक घटनाक्रम ने आप की दावेदारी को कम कर दी लेकिन दिल्ली जैसा पंजाब में भी आप का चुनाव प्रचार होते रहने से उनकी दावेदारी को खत्म नहीं किया है। माना जा रहा है कि इससे इन दोनें राज्यों में कांग्रेस को बढ़त बनाने में काफी कठिनाई आ रही है। इसलिए आप के नेता भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ दिल्ली में काम न करने देने के आरोप लगाते रहें लेकिन भाजपा को उनको बनाए रखने में राजनीतिक फायदा दिख रहा है।
जिस आप के संस्थापक नेताओं प्रशांत भूषण,योगेन्द्र यादव, प्रो. आनंद कुमार आदि को केजरीवाल ने देशभर में लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह देने और उनके फैसलों पर प्रतिकूल टिप्पणी करने के कारण बाहर का रास्ता दिखाया गया और दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ लेते हुए पांच साल दिल्ली से बाहर न जाने की सार्वजनिक घोषणा की उन्हीं केजरीवाल ने कुछ ही दिनों में पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पास कोई विभाग इसलिए नहीं लिया कि वे लगातार देशभर और पंजाब में घूमते रहें। लोकसभा चुनाव में उन्हें दिल्ली समेत देश भर में असफलता हाथ लगी लेकिन पंजाब में चार सीटें मिल गई। यह अलग बात है कि मार्च 2015 में ही अनेक नेताओं को पार्टी से हटाने से नाराज होकर पंजाब के दो सांसद-डा. धर्मवीर गांधी और हरविंदर सिंह खालसा उनके विरोधी हो गए। इनके मामलों में चर्चा में रहने वाले भगवंत सिंह मान ही पार्टी में सक्रिय हैं। चौथे सांसद साधु सिंह ज्यादा सक्रिय नहीं हैं।
संयोग से आप ने पंजाब के बाद गोवा ऐसा राज्य चुना जो आकार में छोटा है और जहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी लड़ाई है। वैसे तो दिल्ली में आप ने सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए लेकिन उसके साथ मूल रूप से कांग्रेस का वोटर जुड़ा। दिल्ली में सीटें महज तीन मिलने के बावजूद भाजपा के वोट में ज्यादा कमी नहीं आई लेकिन कांग्रेस तो सीधे ही नौ फीसद पर आ गई। पिछले साल नगर निगमों के उपचुनाव में कांग्रेस ने 13 में से पांच सीटें जीत कर अपने वोट लौटाने के संकेत दिए। उसके बाद आप और भाजपा दोनों ही सक्रिय हो गए। दिल्ली में दो साल पहले सरकार बनाने के बाद पार्टी को देशभर में ले जाने के प्रयास करने के अलावा दिल्ली में आप ने अपने वादों के अनुरूप काम नहीं किया। कांग्रेस, भाजपा और अकाली गठबंधन ने इसे पंजाब में मुद्दा भी बनाया लेकिन आप तब तक अपने को चुनाव में स्थापित कर लिया था।
केजरीवाल मुद्दा बनाने और उसे लोगों तक पहुंचाने में महारत हासिल कर चुके हैं। सारी दुनिया यह कहती रही है कि उनकी सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार के मुकाबले कुछ भी नहीं किया लेकिन केजरीवाल अपनी सरकार को देश की सबसे बढ़िया सरकार का तमगा दिए हुए हैं। चुनाव में आप भी वह सब करती हैजो दूसरे दल करते हैं लेकिन उनकी ओर से कहा जा रहा है कि मतदान के दिन भ्रष्टाचार को पकड़ने के लिए उनकी पार्टी ने पंजाब और गोवा में सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। दिल्ली में अपने वादों अनुरूप कैमरे लगाना याद नहीं रहा। केजरीवाल तो पहले ही दिन से दिल्ली में टिक कर नहीं रहते हैं और पिछले दो महीनों से तो सारे मंत्री भी उनकी ही राह पर हैं। दिल्ली के लोगों के काम की कीमत पर केजरीवाल ने पंजाब और गोवा चुनाव को तिकोना बना दिया है। चुनाव नतीजे चाहे जो रहें लेकिन दोनों राज्यों में आप मुकाबले में बनी हुई है। यह अलग बात है कि कहीं दिल्ली की तरह कांग्रेस को सत्ता से दूर करने के प्रयास में दोनों राज्यों से भाजपा ही दूर हो जाए।
