2019 लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और विभिन्न राजनैतिक पार्टियां चुनावों के लिए रणनीति बनाने में जुटी हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा वोटरों को अपने पक्ष में किया जाए। इसी बीच राजनीतिक पार्टियों को जहां विपक्षी पार्टियों के खिलाफ रणनीति तैयार करनी है, वहीं यह भी सुनिश्चित करना है कि ज्यादा वोटर्स नोटा का बटन ना दबाएं। बता दें कि हाल के चुनावों में देखा गया है कि नोटा काफी अहम हो गया है और कई सीटों पर Nota ने नतीजों को प्रभावित किया है। साल 2014 के आम चुनावों में तो 5 लोकसभा सीटों पर बड़ी संख्या में लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। जिन सीटों पर सबसे ज्यादा नोटा का बटन दबाया गया, उनमें तमिलनाडु की नीलगिरी लोकसभा सीट, ओडिशा की नाबारंगपुर सीट और कोरापुट सीट, छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट, राजस्थान की बांसवाड़ा सीट शामिल हैं। बता दें कि नीलगिरी, बांसवाड़ा और बस्तर सीटों पर तो नोटा नतीजों के मामले में तीसरे नंबर पर रहा था। खास बात ये है कि जिन सीटों पर सबसे ज्यादा नोटा का बटन दबाया गया, वो सभी आरक्षित सीटें थीं।

क्या है नोटाः नोटा से मतलब है None of the Above। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, मतदाताओं को चुनाव के दौरान सभी उम्मीदवारों को रिजेक्ट करने का अधिकार है। कोर्ट के अनुसार, इससे देश की चुनावी व्यवस्था को सुधारने में मदद मिलेगी। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए थे कि ईवीएम में सबसे नीचे Nota का विकल्प भी होना चाहिए। नोटा की शुरुआत साल 2013 में हुए दिल्ली, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों से हुई थी। वहीं आम चुनावो में नोटा साल 2014 के चुनावों में इस्तेमाल किया गया। उल्लेखनीय है कि पहले ही आम चुनावों में देशभर से 60 लाख से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया था।

भारत के अलावा कोलंबिया, उक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम और ग्रीस में भी चुनावों के दौरान लोगों को नोटा का विकल्प मिलता है। अमेरिका के कुछ राज्यों में भी नोटा का विकल्प है। हालांकि कुछ राजनीतिक तबकों द्वारा नोटा का विरोध भी किया जा रहा है।