पंजाब की राजनीति में 1 जून की काफी अहमियत है, वैसे तो पंजाब की सियासत कई मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है लेकिन जब भी इतिहास के पन्नों को टटोला जाता है तो दो घटनाएं हमेशा याद की जाती हैं। 1 जून वही तारीख है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमृतसर के गोल्डन टेंपल में ऑपरेशन ब्लू स्टार को हरी झंडी दिखाई थी, वही 1 जून 2015 को गुरु ग्रंथ साहिब का एक स्वरूप संदिग्ध परिस्थितियों में गायब हो गया था।
अब ये दोनों वो घटनाएं हैं जिनके सहारे राजनीतिक पार्टियों आज भी सियासी रोटियां सेकती रहती हैं। एक तरफ ऑपरेशन ब्लू स्टार की याद दिलाकर बीजेपी और अकाली दल, कांग्रेस को निशाने पर लेती है तो दूसरी तरफ 2015 की घटना के जरिए कांग्रेस, अकाली और बीजेपी को सिख विरोधी बताने का काम करती है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
सबसे पहले आपको बताते हैं कि 1 जून 1984 को आखिर पंजाब में हुआ क्या था। असल में अमृतसर के गोल्डन टेंपल में खालिस्तानी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके साथियों ने अपना डेरा डाल दिया था। उन्हीं लोगों को वहां से भगाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को अपनी मंजूरी दी थी। ये वो वक्त था जब तक के कैबिनेट मिनिस्टर प्रणब मुखर्जी, इंदिरा के फैसले के खिलाफ थे, लेकिन पीएम ने तब किसी की नहीं मानी और ऑपरेशन को जारी रखने का आदेश दे दिया।
इस वजह से धार्मिक अमृतसर के गोल्डन टेंपल में सेना की एंट्री हुई और खूब गोलीबारी देखने को मिली। ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुल 554 लोगों की मौत हुई जिसमें चार ऑफिसर, 79 जवान भी शामिल थे। लेकिन उस एक घटना के बाद सबसे पहले देश ने इंदिरा गांधी को खोया, उस हत्या की प्रतिक्रिया में सिख दंगों की शुरुआत हुई जिसमें दो हजार से भी ज्यादा सिखों की हत्या कर दी गई।
गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप का गायब होना
1 जून 2015 की घटना की बात करें तो पंजाब के फरीदकोट में गुरु ग्रंथ साहिब का एक स्वरूप संदिग्ध स्थिति में गायब हो गया था। उसकी खोज बड़े स्तर पर की गई, लेकिन वो स्वरूप कहीं नहीं मिला। कई महीनों बाद अक्टूबर 2015 को कुछ फटे हुए पन्ने लोगों के हाथ लग गए। ऐसा कहा गया कि वो फटे पन्ने असल में गुरु ग्रंथ साहिब के उस स्वरूप के थे।
उस वजह से कई हिंसक घटनाएं हुईं, कथित आरोपियों की लिंचिंग तक की गई। उस एक घटना की वजह से अकाली दल को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था और बाद में अमरिंदर सिंह को भी जनता का गुस्सा झेलना पड़ा। अभी चुनाव के मौसम में अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल हर रैली में इस घटना का जिक्र कर रहे हैं, जरूरत पड़ने पर माफी भी मांग रहे हैं। ये बताने के लिए काफी है कि घटनाएं पुरानी हैं, लेकिन उन पर राजनीति अभी भी जारी है।
