यूजीसी ने तय किया है कि वह बिना एग्जाम कराए फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को डिग्री नहीं देगी, लेकिन यूजीसी के इस फैसले के खिलाफ कुछ स्टूडेंट्स सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, तो इसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट में होगा कि एग्जाम होंगे या नहीं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है बस फैसला आना बाकी रह गया है। इस केस में सुनवाई 18 अगस्त को पूरी हो गई थी। पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया है। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
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यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं। यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है।
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एसजी मेहता ने तर्कों का निष्कर्ष निकाला और कहा कि विश्वविद्यालय परीक्षा की समय सीमा में देरी या स्थगित कर सकते हैं, लेकिन यह तर्क नहीं दे सकते कि परीक्षा आयोजित किए बिना डिग्री प्रदान की जाए।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
कर्नाटक HC ने कहा कि, अंतिम परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है। इसलिए दूसरी एजेंसियों को छात्रों के हित में कदम उठाना चाहिए। आपको उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने परीक्षा आयोजित की है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स दिए गए हैं।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
राज्यों ने कहा कि UGC ने फैसला लेने से पहले राज्य सरकारों से बात नहीं की और निर्देश जारी कर दिए। राज्यों के पास स्वास्थ्य संबंधी मामलों में खुद से निर्णय लेने की भी स्वतंत्रता है इसलिए वह परीक्षा रद्द करने के पक्ष में हैं।
पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया है। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
अगले दशक में वोकेशनल एजुकेशन को चरणबद्ध तरीके से सभी स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में इंटीग्रेट किया जाएगा। 2025 तक, स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% शिक्षार्थियों की वोकेशनल एजुकेशन तक पहुंच होगी, जिसके लिए लक्ष्य और समयसीमा के साथ एक स्पष्ट कार्य योजना विकसित की जाएगी।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।
सुनवाई के दौरान, यूजीसी ने अदालत को यह भी बताया कि परीक्षाओं के बिना छात्रों को डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है, और इसलिए परीक्षा तो स्थगित हो सकती है, मगर उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने अदालत में अपना पक्ष रखा। उन्होनें शुरूआत में अदालत से कहा कि मनीष सिसोदिया ने घोषणा की थी कि परीक्षा आयोजित करने के लिए विश्वविद्यालयों को आजादी नहीं दी जा सकती है।
महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि यह राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण था जिसने महामारी के बीच राज्य में परीक्षा आयोजित नहीं करने का निर्णय 13 जुलाई को लिया था।
पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया था। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
जेएनटीयू का यह कदम ऐसे समय में आया है जब इस मुद्दे से संबंधित एक याचिका उच्च न्यायालय तेलंगाना में लंबित है। एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें HC से अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षाओं को रद्द करने और इस तरह COVID-19 महामारी को देखते हुए छात्रों को प्रमोट करने का आग्रह किया गया था।
एक नोटिफिकेशन में, यूजीसी के सचिव रजनीश जैन ने कहा कि यह उनके संज्ञान में आया है कि कई विश्वविद्यालय, कॉलेज शिक्षकों को अनुबंध जारी करने के समय मूल शैक्षणिक प्रमाण पत्र, अंकतालिकाएं आदि एकत्र करते हैं और फिर इन दस्तावेजों को अपने पास रख लेते हैं।
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया जाए कि वह चल रहे महामारी के दौरान लाखों विश्वविद्यालय के छात्रों पर अंतिम वर्ष की परीक्षा का दबाव न बनाए।
तमिलनाडु सरकार ने कोविड -19 संकट के कारण परीक्षा आयोजित के बिना, अंतिम वर्ष के छात्रों को छोड़कर, बाकी सभी कॉलेज स्टूडेंट्स को पास कर अगली क्लास के लिए प्रमोट किया था। इन छात्रों को मई 2020 में होने वाली सेमेस्टर परीक्षा लिखने से छूट दी गई थी।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो कि सितंबर तक परीक्षाओं को अनिवार्य रूप से आयोजित करने के लिए कहते हैं।
ओडिशा सरकार ने COVID के बढ़ते मामलों के चलते यह कहा है कि छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र, परीक्षाएं आयोजित करा पाना संभव नहीं है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं के एक बैच द्वारा चुनौती दी गई है, जिसमें देश भर के विश्वविद्यालयों के 31 छात्रों को एक ग्रुप में शामिल किया गया था।
न्यायालय उन छात्रों के विवाद की भी जांच करेगा, जिन्होंने दावा किया है कि यूजीसी का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत महामारी के दौरान मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
अभी लागू शिक्षा नीति के अनुसार किसी छात्र को शोध करने के लिए स्नातक, एमफिल और उसके बाद पी.एचडी करना होता था। परंतु नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद जो छात्र शोध क्षेत्र में जाना चाहते हैं वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले सकते हैं। वहीं जो छात्र नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए वही डिग्री कोर्स तीन साल में पूरा हो जाएगा। वहीं शोध को बढ़ृावा देने के लिए और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउनंडेशन की भी स्थापना की जाएगी।
स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी।
देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था।
नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद छात्रों को आजादी होगी की अगर वे किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में प्रवेश लेना चाहते हैं तो वे पहले कोर्स से एक निश्चित समय का ब्रेक ले सकते हैं।
जहां छात्रों ने स्वास्थ्य जोखिम का हवाला देते हुए इस कदम का विरोध किया है, वहीं कुछ राज्य सरकारों ने महामारी के कारण परीक्षा आयोजित करने से भी इनकार कर दिया है। हालांकि, यूजीसी इस बात पर अड़ा हुआ है कि प्रकृति में इसके दिशानिर्देश अनिवार्य हैं और परीक्षा आयोजित किए बिना यह डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है।
अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती।
मंगलवार की सुनवाई के दौरान, यूजीसी ने अदालत को यह भी बताया कि परीक्षाओं के बिना छात्रों को डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है, और इसलिए परीक्षा तो स्थगित हो सकती है, मगर उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है।
महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि यह राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण था जिसने महामारी के बीच राज्य में परीक्षा आयोजित नहीं करने का निर्णय 13 जुलाई को लिया था।
पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया है। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
जहां छात्रों ने स्वास्थ्य जोखिम का हवाला देते हुए इस कदम का विरोध किया है, वहीं कुछ राज्य सरकारों ने महामारी के कारण परीक्षा आयोजित करने से भी इनकार कर दिया है। हालांकि, यूजीसी इस बात पर अड़ा हुआ है कि प्रकृति में इसके दिशानिर्देश अनिवार्य हैं और परीक्षा आयोजित किए बिना यह डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है।
ओडिशा सरकार ने COVID के बढ़ते मामलों के चलते यह कहा है कि छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र, परीक्षाएं आयोजित करा पाना संभव नहीं है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।