यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन स्टूडेंट्स के भविष्य को ध्यान में रखते हुए सभी स्टूडेंट्स के फाइनल ईयर के एग्जाम कराना चाहती है, लेकिन कुछ स्टूडेंट्स और अभिभावक चाहते हैं कि एग्जाम कराए बिना ही स्टूडेंट्स को पास कर दिया जाए। इस पर यूजीसी का कहना है कि ऐसा करने से स्टूडेंट्स को भविष्य में नुकसान होगा। फाइनल ईयर के एग्जाम न कराए जाएं इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। सुनवाई में एसजी को 14 अगस्त तक का वक्त दिया गया था। अब अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी।
इसके अलावा यूजीसी ने साफ कर दिया है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है तो इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि एग्जाम नहीं होंगे। यूजीसी ने सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों से 30 सितंबर तक फाइनल ईयर के एग्जाम कराने के लिए कहा गया है। भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय यूजीसी द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो कि सितंबर तक परीक्षाओं को अनिवार्य रूप से आयोजित करने के लिए कहते हैं।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check here
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर 'विशेष परीक्षा के लिए' परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
कर्नाटक HC ने कहा कि, अंतिम परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है। इसलिए दूसरी एजेंसियों को छात्रों के हित में कदम उठाना चाहिए। आपको उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने परीक्षा आयोजित की है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय में, सरकारी अधिवक्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहां तक परीक्षाओं का प्रश्न है, उसमें कोई बाधा नहीं होगी। वकील उच्च न्यायालय को बताया कि, यहां तक कि क्वारंटाइन में उन लोगों के लिए, सीईटी परीक्षा आयोजित किए जाने पर पहले से ही अनिवार्य प्रक्रियाएं हैं।
यूजीसी के इस साल के अंत तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन के निर्देशों को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ता बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अंतिम वर्ष के इंजीनियरिंग स्नातक हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी प्रस्तुत किया कि यूजीसी और MHA के हलफनामों ने इस पहलू के साथ विचार नहीं किया है कि क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधान यूजीसी के दिशानिर्देशों से आगे निकल सकते हैं।
एसजी तुषार मेहता ने 27 जुलाई की सुनवाई में कहा था कि भारत में 818 विश्वविद्यालयों में से 209 ने पहले ही परीक्षाएं पूरी कर ली हैं जबकि 394 को परीक्षाओं को पूरा करने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा कि 35 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में नहीं पहुंचे हैं।
छात्रों ने हैशटैग #StudentsAgainstStateAutonomy के साथ एक ट्विटर पर एक अभियान चलाया है जिसमें वरुण सरदेसाई, आदित्य ठाकरे, अभिषेक सिंघवी, महाराष्ट्र छात्र संघ शामिल हैं। वे भारत भर के छात्रों से आगे आकर अपनी शिक्षा और अपने भविष्य के लिए बोलने की अपील कर रहे हैं।
दिवान ने कहा, "आप यह नहीं कह सकते कि तीसरे वर्ष के छात्र का जीवन पहले वर्ष या दूसरे वर्ष के छात्र की तुलना में कम कीमती है।" उन्होंने यह भी कहा कि अगर परीक्षा अनिवार्य कर दी जाती है, तो जिन छात्रों के पास टेक्नॉलिजी तक पहुंच नहीं है, वे पीड़ित हो सकते हैं।
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
वहीं दूसरी ओर, श्याम दीवान, जो युवा सेना के लिए पैरवी कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि यूजीसी द्वारा पहले के दिशानिर्देशों में संवेदनशीलता और लचीलापन था।
अभिषेक मनु सिंघवी जो इस मामले में एक कानून के छात्र की भूमिका में हैं, उन्होंने SC को सुनवाई में बताया कि यह जीवन और स्वास्थ्य का मामला है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों ने परीक्षा आयोजित नहीं करने का फैसला किया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो कि सितंबर तक परीक्षाओं को अनिवार्य रूप से आयोजित करने के लिए कहते हैं।
दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारों ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर किया था कि वे कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण परीक्षाएं आयोजित नहीं करेंगे।
दूसरी ओर, गृह मंत्रालय ने भी अपने हलफनामे में कहा कि अंतिम वर्ष के छात्रों को इन उम्मीदवारों के शैक्षणिक हितों को ध्यान में रखते हुए परीक्षा की अनुमति दी गई थी।
शनिवार को 24 घंटे में रिकॉर्ड 57,381 मरीजों की छुट्टी के बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में COVID-19 से भर्ती होने वाले लोगों की संख्या पिछले 18 लाख हो गई। भारत में कुल मामलों की संख्या 25,26,193 है, जिसमें 49,036 मौतें शामिल हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने शनिवार, 15 अगस्त को पिछले 24 घंटों में कोरोनावायरस संक्रमण के 65,002 ताजा मामले एक दिन में दर्ज किए हैं।
छात्र अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए यूजीसी के फैसले का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि कोरोनोवायरस के मामले बढ़ रहे हैं। याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट (SC) 18 अगस्त को यूजीसी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं अनिवार्य करने के खिलाफ याचिका पर अगली सुनवाई करेगा।
शिवसेना की युवा शाखा 'युवा सेना' द्वारा दायर याचिकाओं सहित यूजीसी ने 50 पन्नों का एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें लगातार कोरोनोवायरस (COVID-19) के बीच सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए 6 जुलाई को जारी अपने दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है।
नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद छात्रों को आजादी होगी की अगर वे किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में प्रवेश लेना चाहते हैं तो वे पहले कोर्स से एक निश्चित समय का ब्रेक ले सकते हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स दिए गए हैं।
तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है। शिक्षा मंत्री को यह बयान इसलिए देना पड़ा क्योंकि नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने सरकार पर ऐसा आरोप लगाया था।
सिंघवी बताते हैं कि परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की बहुत असमानता है। कई छात्रों को परीक्षा के लिए यात्रा करना होगा, जो महामारी की इन स्थितियों में प्रत्यक्ष जोखिम पैदा करता है।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
केंद्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सितंबर में होंगी। जिसे 13 राज्यों और यूटी के 31 याचिकाकर्ताओं ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
शिवसेना की युवा शाखा 'युवा सेना' द्वारा दायर याचिकाओं सहित यूजीसी ने 50 पन्नों का एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें लगातार कोरोनोवायरस (COVID-19) के बीच सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए 6 जुलाई को जारी अपने दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है।
अभी लागू शिक्षा नीति के अनुसार किसी छात्र को शोध करने के लिए स्नातक, एमफिल और उसके बाद पी.एचडी करना होता था। परंतु नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद जो छात्र शोध क्षेत्र में जाना चाहते हैं वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले सकते हैं। वहीं जो छात्र नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए वही डिग्री कोर्स तीन साल में पूरा हो जाएगा। वहीं शोध को बढ़ृावा देने के लिए और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउनंडेशन की भी स्थापना की जाएगी।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए आसान बनाया जाएगा।