देशभर की कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र -छात्राएं फिलहाल इसी संशय में हैं कि उनके कोर्सेज़ के फाइनल ईयर के एग्जाम होंगे अथवा नहीं। UGC ने कई बैठकों के बाद यह फैसला लिया था कि फाइनल ईयर के एग्जाम कराना जरूरी है। सभी कॉलेज और यूनिवर्सिटीज को निर्देश दिया था कि 30 सितंबर पर परीक्षाएं करा ली जाएं। ऐसे में, देश में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण के बीच परीक्षा कराने से उठ रहे खतरे के चलते छात्रों और अभिभावकों ने परीक्षाएं रद्द कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। 14 अगस्त को हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तुत प्रश्न को संबोधित करते हुए, डॉ. एएम. सिंघवी ने कहा है कि यूजीसी दिशानिर्देश मनमानी के पहलू के तहत अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।
University Final Year Exams 2020 Live Updates: Check Here
अदालत में इस मामले की सुनवाई जारी है और अगली सुनवाई 18 अगस्त को होनी है। यूनिवर्सिटी में फाइनल ईयर एग्जाम को लेकर यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट को संशोधित गाइडलाइंस का विरोध कर रहे राज्यों की जानकारी दी है। यूजीसी का कहना है कि अगर परीक्षाएं नहीं होती तो छात्रों को डिग्रियां नहीं दी जा सकती और यह छात्रों के शैक्षणिक भविष्य को प्रभावित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी का पक्ष सुनने के बाद मामले की सुनवाई 18 अगस्त तक के लिए टाल दिया है।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check here

Highlights
देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, UGC ने स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाएं ऑनलाइन, ऑफलाइन या दोनों तरीकों से हो सकती हैं मगर समय पर होनी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय, डीयू की ओबीई परीक्षाओं को चुनौती देने वाले मामले में प्रश्नों को संबोधित करते समय यूजीसी द्वारा प्रस्तुति आधारित मूल्यांकन के विकल्प को खारिज कर दिया गया था।
केंद्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने कहा कि विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सितंबर में होंगी। जिसे 13 राज्यों और यूटी के 31 याचिकाकर्ताओं ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए आसान बनाया जाएगा।
देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था।
अभी लागू शिक्षा नीति के अनुसार किसी छात्र को शोध करने के लिए स्नातक, एमफिल और उसके बाद पी.एचडी करना होता था। परंतु नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद जो छात्र शोध क्षेत्र में जाना चाहते हैं वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले सकते हैं। वहीं जो छात्र नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए वही डिग्री कोर्स तीन साल में पूरा हो जाएगा। वहीं शोध को बढ़ृावा देने के लिए और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउनंडेशन की भी स्थापना की जाएगी।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो कि सितंबर तक परीक्षाओं को अनिवार्य रूप से आयोजित करने के लिए कहते हैं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
श्याम दीवान ने यूजीसी दिशानिर्देशों के खिलाफ फाइनल ईयर की परीक्षा के लिए युवाओं की याचिका के लिए अपना प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि जीवन के अधिकार पर सवाल उठता है। साथ ही डीएम एक्ट का हवाला दिया।
भारत के संविधान के आर्टिकल 14 के मुताबिक राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा। भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 के हिसाब से इसका मतलब यह है कि सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी।
अंतिम सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तुत प्रश्न को संबोधित करते हुए, डॉ. एएम. सिंघवी ने कहा है कि यूजीसी दिशानिर्देश मनमानी के पहलू के तहत अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।
दीवान ने उन रिपोर्टों का जिक्र किया है जो बताती हैं कि कई राज्यों में कुछ छात्रावासों और अन्य सुविधाओं को अस्थायी रूप से क्वारंटाइन सेंटर्स के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अनलॉक 2 के लिए एमएचए दिशानिर्देशों के अनुसार, 31 जुलाई तक शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने की आवश्यकता थी।
30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करने का यूजीसी का निर्णय अत्यंत असामान्य है क्योंकि इसमें स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं या स्थिति में सुधार का कोई उल्लेख नहीं है। दीवान कहते हैं कि इस तरह की तारीख सामान्य समय के दौरान रखी जा सकती है, लेकिन ऐसी महामारी की स्थिति के दौरान नहीं।
सुनवाई के दौरान, यह सवाल भी उठाया गया था कि जब मामले कुछ हजारों में थे तो परीक्षा स्थगित कर दी गई थी लेकिन अब जबकि मामले लाखों में बढ़ गए हैं, परीक्षा आयोजित की जा रही है।
सिंघवी बताते हैं कि परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की बहुत असमानता है। कई छात्रों को परीक्षा के लिए यात्रा करना होगा, जो महामारी की इन स्थितियों में प्रत्यक्ष जोखिम पैदा करता है।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
सिंघवी का कहना है कि गृह मंत्रालय शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में अपने फैसले पर कायम है। कॉलेज और स्कूल 5 महीने के लिए बंद कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि आप बिना सिखाए कैसे परीक्षा दे सकते हैं? इसके अलावा, यह महामारी का एक विशेष मामला और परिदृश्य है।
एक बार SC द्वारा UGC केस पर अपना फैसला सुनाने के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई या नहीं, इस पर निर्णय लिया जाएगा। यूजीसी दिशानिर्देशों और अंतिम वर्ष की परीक्षा 2020 याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 18 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी है।
युवा सेना का प्रतिनिधित्व करने वाले श्याम दीवान ने जीवन के अधिकार पर तर्क दिया और साथ ही एमएचए दिशानिर्देशों में कहा गया है कि राज्यों को सख्त उपाय में एनडीएमए को लागू करने का अधिकार दिया गया है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम की वैधता पर, सिंघवी ने कहा कि एनडीएमए हर जिले में लागू है। उन्होंने यह भी कहा कि महामारी एक वैश्विक चिंता है और ’विशेष परिदृश्यों’ को प्रस्तुत करती है जिन्होंने यात्रा आदि के अधिकार पर रोक लगा दी है। विस्तार में, उन्होंने परीक्षाओं को रद्द करने की संभावना पर भी संकेत दिया।
डॉ. एएम सिंघवी ने तर्कों सुनवाई के दौरान जीवन के अधिकार पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि, कोरोनावायरस महामारी के कारण छात्रों के स्वास्थ्य का खतरा है। क्योंकि मौजूदा हालात में एक जगह से दूसरी जगह ट्रैवल करना होगा।
यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रतिक्रिया दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य परीक्षाओं को रद्द करने के आदेश नहीं दे सकते। इसने आगे दोहराया था कि देश में शिक्षा के मानक को सुनिश्चित करने और बनाए रखने के लिए परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए।
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में यूजीसी के संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने या न कराने को लेकर 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें तीन जजों की बेंच ने मामले को सुना। मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की तीन जजों की बेंच ने की।
यूजीसी द्वारा दायर किए गए हलफनामे में, यह इंगित किया है कि राज्य सरकारों द्वारा दायर परीक्षाओं को रद्द करने के आदेश शून्य हैं क्योंकि वे यूजीसी के वैधानिक प्राधिकरण पर अतिक्रमण करते हैं। यूजीसी के दिशानिर्देश जो उच्च शिक्षा के मानकों को बनाए रखने के लिए जारी किए गए हैं।
तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स दिए गए हैं।
तमिलनाडु सरकार ने कोविड -19 संकट के कारण परीक्षा आयोजित के बिना, अंतिम वर्ष के छात्रों को छोड़कर, बाकी सभी कॉलेज स्टूडेंट्स को पास कर अगली क्लास के लिए प्रमोट किया था। इन छात्रों को मई 2020 में होने वाली सेमेस्टर परीक्षा लिखने से छूट दी गई थी।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है। शिक्षा मंत्री को यह बयान इसलिए देना पड़ा क्योंकि नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने सरकार पर ऐसा आरोप लगाया था।
स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।
UGC पहले ही अपना जवाब दाखिल कर चुका है। अगर राज्य सरकार का निर्णय लिया जाता तो यह मामला तय होगा परीक्षा रद्द करने का आदेश मान्य है या नहीं। तीन अलग-अलग याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिन्हें एक साथ सुना जा रहा है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।
सिंघवी ने कहा कि बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे। उन्हें बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम फैलेगा। सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि ये फैसला तो छात्रों के हित में ही दिखाई दे रहा है।
यूजीसी के इस साल के अंत तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन के निर्देशों को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ता बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अंतिम वर्ष के इंजीनियरिंग स्नातक हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय में, सरकारी अधिवक्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहां तक परीक्षाओं का प्रश्न है, उसमें कोई बाधा नहीं होगी। वकील उच्च न्यायालय को बताया कि, यहां तक कि क्वारंटाइन में उन लोगों के लिए, सीईटी परीक्षा आयोजित किए जाने पर पहले से ही अनिवार्य प्रक्रियाएं हैं।
कर्नाटक HC ने कहा कि, अंतिम परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है। इसलिए दूसरी एजेंसियों को छात्रों के हित में कदम उठाना चाहिए। आपको उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने परीक्षा आयोजित की है।