दिल्ली विश्व विद्यालय के राजनीतिक विज्ञान पाठ्यक्रम से सारे जहां से अच्छा का नारा देने वाले मोहम्मद इकबाल के चैप्टर को हटा दिया गया है। इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रिया आ रही हैं, कोई समर्थन कर रहा है तो कोई इस पर विवाद खड़ा कर रहा है। अब डीयू के वाइस चांसलर योगेश सिंह ने इस पर पहली बार सफाई पेश की है।
वीसी इस फैसले के खिलाफ या पक्ष में?
उन्होंने कहा है कि मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि हम पिछले 75 सालों से उनका चैप्टर पढ़ा क्यों रहे थे। मैं मानता हूं कि सारे जहां से अच्छा जैसा गाना लिखकर उन्होंने भारत की सेवा की, लेकिन सही मायनों में उन्होंने कभी खुद इस पर विश्वास नहीं जताया। इसी तरह वीर सावरकर के चैप्टर को सिलेबस में जोड़ने को लेकर योगेश सिंह ने कहा कि सावरकर की अहमियत को कम नहीं किया जा सकता, उन्होंने देश की आजादी के लिए काफी कुछ किया है।
कब हुआ था ये विवादित फैसला?
वैसे इससे पहले डीयू ने एक जारी बयान में जोर देकर कहा था कि इकबाल वहीं शख्स थे जिन्होंने भारत को तोड़ने की नींव रखी थी, पाकिस्तान की मांग करने वाले भी वे पहले व्यक्ति थे, ऐसे में उन्हें पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद ने कुछ सदस्यों की असहमति के बावजूद चार साल के एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम को लागू करने जैसे कुछ विवादास्पद प्रस्तावों सहित कई अन्य प्रस्तावों को भी मंजूरी दी थी। अधिकारियों ने बताया था कि परिषद ने बीए राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से पाकिस्तान के राष्ट्र कवि मोहम्मद इकबाल पर लिखे गए एक अध्याय को खत्म करने सहित कई पाठ्यक्रमों में बदलाव के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की। उस समय कहा गया था कि कार्यकारी परिषद अंतिम फैसला लेगी।
कौन थे मोहम्मद इकबाल?
अविभाजित भारत के सियालकोट में 1877 में जन्मे मोहम्मद इकबाल ने प्रसिद्ध गीत ‘सारे जहां से अच्छा’ लिखा था। उन्हें अक्सर पाकिस्तान का विचार देने का श्रेय दिया जाता है। इकबाल उर्दू और फारसी शायरों में से एक थे। बंटवारे के बाद इकबाल पाकिस्तान चले गए थे।