देश की सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक गंभीर और चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। संसद में पेश किए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 5,149 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें शैक्षणिक सत्र 2024–25 के दौरान एक भी छात्र नामांकित नहीं है। यह संख्या देशभर के कुल 10.13 लाख सरकारी स्कूलों का हिस्सा है, जो यह दर्शाती है कि बड़ी संख्या में स्कूल सिर्फ कागजों पर मौजूद हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर शिक्षा नहीं दे रहे।
तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा ‘जीरो एनरोलमेंट’ स्कूल
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 70 प्रतिशत से अधिक शून्य नामांकन वाले सरकारी स्कूल सिर्फ दो राज्यों तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में स्थित हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो देश में हर 10 ऐसे स्कूलों में से 7 इन्हीं दो राज्यों में पाए गए हैं।
यह स्थिति न केवल क्षेत्रीय शिक्षा नीतियों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी इशारा करती है कि इन इलाकों में स्कूलों का नेटवर्क, जनसंख्या बदलाव और शिक्षा विकल्पों का स्वरूप तेजी से बदल रहा है।
संसद में कैसे सामने आया यह आंकड़ा?
यह जानकारी लोकसभा के स्टार्ड प्रश्न संख्या 15 के लिखित उत्तर में साझा की गई, जिसका जवाब 1 दिसंबर 2025 को दिया गया। यह प्रश्न सांसद कार्ति पी. चिदंबरम और अमरिंदर सिंह राजा वारिंग द्वारा पूछा गया था, जिसमें विशेष रूप से “शून्य छात्र नामांकन वाले स्कूलों” पर सरकार से जानकारी मांगी गई थी। जिसके जवाब में सरकार ने आंकड़े तो साझा किए, लेकिन इन स्कूलों के खाली होने के ठोस कारणों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया।
आखिर क्यों खाली हो रहे हैं सरकारी स्कूल?
हालांकि डेटा वजह नहीं बताता, लेकिन शिक्षा विशेषज्ञों और नीतिगत रिपोर्टों के आधार पर इसके पीछे कई संभावित कारण माने जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं।
निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या और आकर्षण
ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर पलायन
स्कूलों का आपस में विलय (Merger Policy)
कम छात्र संख्या के कारण अभिभावकों का भरोसा कम होना
शिक्षकों और बुनियादी सुविधाओं की कमी
कई मामलों में यह भी देखा गया है कि स्कूल तकनीकी रूप से “सक्रिय” दिखाए जाते हैं, लेकिन वास्तव में वहां न शिक्षक होते हैं और न ही छात्र।
शिक्षा व्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते इन स्कूलों की स्थिति की समीक्षा नहीं की गई, तो भविष्य में इस प्रकार के परिणाम देखने को मिलेंगे।
सरकारी शिक्षा ढांचे पर विश्वसनीयता का संकट बढ़ेगा
शिक्षा पर खर्च होने वाला सार्वजनिक धन अप्रभावी साबित हो सकता है
ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में शिक्षा की पहुंच और कमजोर होगी
आगे क्या होगा?
नीति आयोग और शिक्षा मंत्रालय पहले ही स्कूल री-मैपिंग, डिजिटल शिक्षा और क्लस्टर स्कूल मॉडल जैसे विकल्पों पर विचार कर चुके हैं। अब इस ताजा आंकड़े के बाद उम्मीद की जा रही है कि, ग्राउंड लेवल ऑडिट कराया जाएगा, गैर-कार्यात्मक स्कूलों पर स्पष्ट नीति बनेगी और शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच दोनों पर दोबारा फोकस होगा
Jansatta Education Expert Conclusion
5,000 से ज्यादा सरकारी स्कूलों में छात्रों का न होना केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए चेतावनी की घंटी है। यह मुद्दा सिर्फ स्कूलों का नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों और समान शिक्षा के अधिकार से भी जुड़ा हुआ है।
