शिक्षा विभाग ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि यहां डीडीए की जमीन पर बने स्कूलों के लिए नर्सरी कक्षा में प्रवेश हेतु घर से स्कूल की दूरी का मानदंड कुछ नया नहीं है। उसने कहा कि शिक्षण संस्थान अपना खुद का प्वाइंट सिस्टम अपनाकर उन्हें दी गई स्वायत्तता का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
नर्सरी कक्षा में प्रवेश के लिए घर से स्कूल की दूरी के मानदंड पर दिल्ली सरकार की अधिसूचना का बचाव करते हुए शिक्षा विभाग ने न्यायमूर्ति मनमोहन के समक्ष कहा, ‘छह किलोमीटर से दूर रहने वाले छात्रों को उसी स्थिति में प्रवेश दिया जाएगा जब छह किलोमीटर के दायरे के अंदर रहने वाले सभी छात्रों के प्रवेश पर विचार कर लिया जाएगा’।
दिल्ली सरकार की अधिसूचना के मुताबिक, स्कूल से एक किलोमीटर के दायरे में रह रहे छात्रों को वरीयता दी जाएगी और अगर सीटें नहीं भर पाती हैं तो फिर उन छात्रों को वरीयता दी जाएगी जो एक से तीन किलोमीटर के दायरे में रह रहे हैं। शिक्षा विभाग की तरफ से हाई कोर्ट में पेश हुए अतिरिक्त सालिसीटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने बताया कि निजी स्कूल नर्सरी में दाखिले के लिए अपनी खुद की अंक व्यवस्था लागू कर रहे हैं और इसमें दूरी के आधार पर भी अंक दिए जा रहे हैं।
अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ने ऐसी अंक व्यवस्था लागू करने वाले निजी विद्यालयों की सूची अदालत को देते हुए कहा, ‘याचिकाकर्ता (दो निजी विद्यालय समूह) इस तरह की अंक व्यवस्था से अपनी स्वायत्तता का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। यह मनमाना है। अगर शिक्षा विभाग स्कूल से घर की दूरी का मानदंड रख रहे हैं तो इसमें नुकसान क्या है?’
एएसजी ने कहा, ‘घर से स्कूल की दूरी का मानदंड कुछ ऐसा नहीं है जो नया हो’। उन्होंने कहा कि अदालत को ये तय करना है कि घर से स्कूल की दूरी के मानदंड की उसकी परिभाषा मनमानी है या नहीं? अदालत अभिभावकों और दो स्कूल समूहों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इनमें दिल्ली सरकार के 19 दिसंबर 2016 और सात जनवरी की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। इस अधिसूचना के तहत दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की जमीन पर स्थित 298 निजी विद्यालयों से कहा गया था कि नर्सरी दाखिला के फॉर्म सिर्फ घर से स्कूल की दूरी या सिर्फ दूरी के मानदंड पर स्वीकार करें।