स्वीडन में नोबेल पुरस्कार 2025 के विजेताओं की घोषणा की जा रही है। सोमवार (6 अक्टूबर 2025) को फिजियोलॉजी या मेडिसिन (चिकित्सा) का नोबेल जापानी वैज्ञानिक शिमोन साकागुची, अमेरिकी वैज्ञानिक मैरी ई. ब्रुनकोव और फ्रेडरिक रामस्डेल को दिया गया। इन तीनों को यह पुरस्कार उनकी ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ (शरीर के बाहरी हिस्सों में इम्यून सिस्टम की सहनशीलता) से जुड़ी रिसर्च के लिए दिया गया।
इन तीनों वैज्ञानिकों की रिसर्च से यह पता चला था कि शरीर के शक्तिशाली इम्यून सिस्टम को कैसे कंट्रोल किया जाता है, ताकि यह गलती से हमारे अंगों पर हमला न करें। साथ ही यह खोज इम्यून सिस्टम की कार्यप्रणाली को समझने और कैंसर तथा स्वप्रतिरक्षी रोगों के उपचार विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण रही है।
कई सालों से हमारे शोधकर्ताओं को इस सवाल ने परेशान किया है कि हमारा इम्यून सिस्टम वायरस, बैक्टीरिया से कैसे लड़ाई करता है वो भी हमारे बॉडी सेल्स को डैमेज किए बिना। आखिरकार शोधकर्ताओं को 1980 के दशक तक ये पता चल गया कि हमारा इम्यून सिस्टम हर दिन हजारों-लाखों सूक्ष्मजीवों से हमारी रक्षा करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा शरीर के अपने प्रोटीन को पहचानने वाली टी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। टी कोशिकाएँ एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका होती हैं जो शरीर को संक्रमणों से प्रभावी ढंग से लड़ने में मदद करती हैं।
ब्रंकॉ, राम्सडेल और साकागुची ने इम्यून सिस्टम के ‘सुरक्षा गार्ड’ यानी रेगुलेटरी T-सेल्स की पहचान की, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि इम्यून सेल हमारे अपने शरीर पर हमला न करें। इसके आधार पर कैंसर और ऑटोइम्यून रोगों के इलाज खोजे जा रहे हैं। इसके अलावा इन खोजों की मदद से ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन (अंग प्रत्यारोपण) में भी मदद मिल रही है। इसके अलावा कई इलाज अब क्लिनिकल ट्रायल के दौर से गुजर रहे हैं।
जापान के सकागुची ने नवजात चूहों से ‘थाइमस’ (वह अंग जहां टी-सेल्स परिपक्व होते हैं) निकाल दिया। उम्मीद थी कि इससे इम्यून सिस्टम कमजोर होगा, लेकिन इसके विपरीत, चूहों में ऑटोइम्यून रोग विकसित हो गए। बाद में जब स्वस्थ चूहों के टी-सेल्स दिए गए तो उनकी बीमारी ठीक हो गई। इससे उन्होंने साबित किया कि शरीर में ऐसे टी सेल्स मौजूद हैं जो संतुलन बनाए रखते हैं।