साल 2025 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा 10 अक्टूबर (2025) को कर दी गई है। इस साल का यह प्राइज वेनेजुएला की मारिया कोरिना को मिला है। यह पुरस्कार मारिया कोरिना मचाडो को वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों को स्थापित करने और तानाशाही से लोकतंत्र में न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण स्थिति बनाने में उनके संघर्ष के लिए दिया गया है। हर साल शांति का पुरस्कार नॉर्वे की राजधानी ऑस्लो में ही दिया जाता है। ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल उठ सकता है कि जब विज्ञान, साहित्य और अन्य सभी नोबेल स्वीडन में दिए जाते हैं तो शांति पुरस्कार ही क्यों नॉर्वे में दिया जाता है?
नोबेल शांति नॉर्वे में ही क्यों दिया जाता है?
दरअसल, नोबेल का शांति पुरस्कार उन व्यक्तियों या संगठनों को दिया जाता है जिन्होंने विश्व में शांति को बढ़ावा देने, संघर्षों को सुलझाने और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। नॉर्वे में यह पुरस्कार इसलिए दिया जाता है क्योंकि नोबेल पुरस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में लिखा था कि शांति पुरस्कार का आयोजन अलग से किया जाए और नॉर्वे में इस आयोजन की स्थापना हो। तब से हर साल अन्य पुरस्कार स्वीडन में दिए जाते हैं, लेकिन शांति का पुरस्कार नॉर्वे में दिया जाता है।
Nobel Peace Prize: कौन हैं मारिया कोरिना मचाडो? इन्हें मिला 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार
नॉर्वे को शांति प्रिय देश मानते थे नोबेल
नोबेल शांति पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की एक बड़ी और प्रेरणादायक सोच का प्रतीक है। नोबेल वही व्यक्ति थे जिन्होंने डायनामाइट जैसी शक्तिशाली चीज़ का आविष्कार किया था, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि इंसानियत के लिए असली ताकत विनाश में नहीं, बल्कि शांति में है इसलिए उन्होंने अपनी वसीयत में कहा कि यह सम्मान उन लोगों को दिया जाए जो देशों और समाजों के बीच शांति, भाईचारे और सहयोग को बढ़ावा देते हैं और नॉर्वे में इसे देने की वजह यही थी कि वह वे नॉर्वे को एक शांति प्रिय देश मानते थे।
नॉर्वे की समिति ही क्यों देती है ये पुरस्कार?
Nobelpeaceprize.org के अनुसार, नॉर्वेजियन नोबेल समिति के पूर्व सचिव और नोबेल संस्थान के निदेशक गेइर लुंडेस्टैड ने अपने एक आर्टिकल में बताया है कि शांति पुरस्कार नॉर्वेजियन नोबेल समिति की ओर से दिए जाने के पीछे नोबेल ने कोई स्पष्टीकरण छोड़ा नहीं था। अन्य चार पुरस्कार स्वीडिश समितियों द्वारा दिए जाते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि नोबेल, जिन्होंने अपना अधिकांश जीवन विदेश में बिताया और जिन्होंने पेरिस के स्वीडिश-नॉर्वेजियन क्लब में अपनी वसीयत लिखी, वे इस बात से प्रभावित थे कि 1905 तक नॉर्वे स्वीडन के साथ एकता में था।