यूजीसी की गाइडलाइन्स पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े करने से मना कर दिया और एग्जाम स्थगित कराने के लिए डाली गईं याचिकाओं की सुनवाई पर फैसला यूजीसी के पक्ष में सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य चाहें तो एग्जाम रद्द कर सकते हैं लेकिन यूजीसी बिना एग्जाम के स्टूडेंट्स को प्रमोट नहीं करेगा। मतलब जब तक स्टूडेंट्स एग्जाम पास नहीं कर लेते तब तक डिग्री नहीं दी जाएगी। 30 सितंबर तक परीक्षा कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी राज्य को इसमें कोई दिक्कत है तो वह अपनी समस्या यूजीसी को बताएं।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check SC Verdict here
31 याचिकाकर्ताओं में से एक छात्र का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव है। जिसने यूजीसी से सीबीएसई मॉडल को अपनाने और मूल्यांकन के आधार पर ग्रेस मार्क्स से संतुष्ट नहीं होने वाले छात्रों के लिए बाद की तारीख में एक परीक्षा आयोजित करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
UGC Exam Guidelines 2020: Read Here
सीएम ने कहा कि छात्रों से अनुरोध पर विचार करने और उनके कल्याण पर विचार करने के बाद निर्णय लिया गया। यह फैसला एक उच्च स्तरीय समिति ने लिया है। मूल्यांकन प्रक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है और छात्रों को मूल्यांकन और पदोन्नति मानदंडों पर विश्वविद्यालयों के साथ जांच करनी चाहिए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहले शीर्ष शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके 6 जुलाई के निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह "डिक्टेट नहीं" है, लेकिन राज्य, बिना परीक्षाओं के डिग्री की मांग नहीं कर सकते। यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने भी दोहराई है।
शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के संयुक्त सचिव और NSUI के प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि NSUI इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए मनमाने और अतार्किक यूजीसी दिशानिर्देशों को बरकरार रखा है। उन्होंने #AntiStudentModiGovt हैशटैग के साथ ट्वीट किया।
31 याचिकाकर्ताओं में से एक छात्र का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव है। जिसने यूजीसी से सीबीएसई मॉडल को अपनाने और मूल्यांकन के आधार पर ग्रेस मार्क्स से संतुष्ट नहीं होने वाले छात्रों के लिए बाद की तारीख में एक परीक्षा आयोजित करने की मांग की थी।
राज्यों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए और डिग्री प्रदान करने के लिए परीक्षा आयोजित करनी होगी, और यह कि आंतरिक मूल्यांकन यूजीसी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए 30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, और अगर किसी भी राज्य को लगता है कि वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें अपनी चिंताओं के साथ यूजीसी से संपर्क करना होगा।
राज्य आपदा प्रबंधन अधिकारियों द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत लिए गए निर्णय अंतिम परीक्षा आयोजित करने के लिए 30 सितंबर, 2020 की समय सीमा के संबंध में यूजीसी के दिशा-निर्देशों पर आधारित होंगे।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी थीं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले का है।
टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 92 प्रतिशत छात्र यह चाहते हैं कि परीक्षाएं रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर ही छात्रों का रिजल्ट तैयार किया जाए।
शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है।
UGC का कहना है कि राज्य परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग तो कर सकते हैं, मगर बगैर परीक्षा के किसी भी हाल में डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग प्रोमोटेड छात्रों को डिग्री नहीं देगा, इसलिए परीक्षा कराना अनिवार्य है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने गुरुवार को कहा कि 17 लाख से अधिक उम्मीदवार जेईई और एनईईटी के लिए अपने एडमिट कार्ड पहले ही डाउनलोड कर चुके हैं और इससे पता चलता है कि छात्र किसी भी कीमत पर परीक्षा देना चाहते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर जेईई, नीट 2020 के साथ यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में फाइनल ईयर के एग्जाम का विरोध आज भी ट्रेंडिंग में रहा। ट्रेंड हो रहे हैशटैग पर लाखों की संख्या में ट्विट्स भी हो रहे हैं।
यूजीसी ने पहले कहा था कि परीक्षाओं के बारे में स्थिति जानने के लिए विश्वविद्यालयों से संपर्क किया गया था और 818 विश्वविद्यालयों (121 डीम्ड विश्वविद्यालयों, 291 निजी विश्वविद्यालयों, 51 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और 355 राज्य विश्वविद्यालयों) से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहले शीर्ष शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके 6 जुलाई के निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह "डिक्टेट नहीं" है, लेकिन राज्य, बिना परीक्षाओं के डिग्री की मांग नहीं कर सकते। यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने भी दोहराई है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के संयुक्त सचिव और NSUI के प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि NSUI इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए मनमाने और अतार्किक यूजीसी दिशानिर्देशों को बरकरार रखा है। उन्होंने #AntiStudentModiGovt हैशटैग के साथ ट्वीट किया।
UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब अदालत के फैसले के बाद यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे।
मामले में हस्तक्षेप के लिए देश भर के 11 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी। अदालत में इस मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने 28 अगस्त को मामले में फैसला सुनाया था।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
यूजीसी ने पहले कहा था कि परीक्षाओं के बारे में स्थिति जानने के लिए विश्वविद्यालयों से संपर्क किया गया था और 818 विश्वविद्यालयों (121 डीम्ड विश्वविद्यालयों, 291 निजी विश्वविद्यालयों, 51 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और 355 राज्य विश्वविद्यालयों) से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने गुरुवार को कहा कि 17 लाख से अधिक उम्मीदवार जेईई और एनईईटी के लिए अपने एडमिट कार्ड पहले ही डाउनलोड कर चुके हैं और इससे पता चलता है कि छात्र किसी भी कीमत पर परीक्षा देना चाहते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर जेईई, नीट 2020 के साथ यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में फाइनल ईयर के एग्जाम का विरोध आज भी ट्रेंडिंग में रहा। ट्रेंड हो रहे हैशटैग पर लाखों की संख्या में ट्विट्स भी हो रहे हैं।
UGC का कहना है कि राज्य परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग तो कर सकते हैं, मगर बगैर परीक्षा के किसी भी हाल में डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग प्रोमोटेड छात्रों को डिग्री नहीं देगा, इसलिए परीक्षा कराना अनिवार्य है।
टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 92 प्रतिशत छात्र यह चाहते हैं कि परीक्षाएं रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर ही छात्रों का रिजल्ट तैयार किया जाए।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी थीं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले का है।
राज्य आपदा प्रबंधन अधिकारियों द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत लिए गए निर्णय अंतिम परीक्षा आयोजित करने के लिए 30 सितंबर, 2020 की समय सीमा के संबंध में यूजीसी के दिशा-निर्देशों पर आधारित होंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए 30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, और अगर किसी भी राज्य को लगता है कि वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें अपनी चिंताओं के साथ यूजीसी से संपर्क करना होगा।
राज्यों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए और डिग्री प्रदान करने के लिए परीक्षा आयोजित करनी होगी, और यह कि आंतरिक मूल्यांकन यूजीसी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।
31 याचिकाकर्ताओं में से एक छात्र का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव है। जिसने यूजीसी से सीबीएसई मॉडल को अपनाने और मूल्यांकन के आधार पर ग्रेस मार्क्स से संतुष्ट नहीं होने वाले छात्रों के लिए बाद की तारीख में एक परीक्षा आयोजित करने की मांग की थी।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि परीक्षाएं दुर्गा पूजा से पहले अक्टूबर में होंगी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि UGC वर्तमान समय सीमा के किसी भी विस्तार की अनुमति देगा या नहीं।
मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुहास पेडनेकर की अध्यक्षता में एक छह-सदस्यीय समिति बनाई गई है, जो परीक्षाओं का संचालन करने के बारे में सिफारिशें देती है।
महाराष्ट्र, 31 अगस्त को तौर-तरीकों को अंतिम रूप देगा। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने मंत्रालय को पूरी सावधानी के साथ और आसान तरीके से परीक्षाएं आयोजित करने को कहा है।
तमिलनाडु में, राज्य के विश्वविद्यालयों के सभी कुलपतियों की बैठक में अब तक, यह निर्णय लिया गया है कि परीक्षा पूरी तरह से ऑनलाइन आयोजित की जाएगी। जिन छात्रों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है उनके लिए कुछ केंद्रों की व्यवस्था की जा सकती है। विश्वविद्यालय प्रश्नों को वस्तुनिष्ठ प्रकार के रखने के पक्ष में हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तमिलनाडु, अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के तौर-तरीकों पर चर्चा के लिए शनिवार को राज्य के विश्वविद्यालयों के सभी कुलपतियों की बैठक बुलाई गई थी।
दरअसल, बिहार, असम, ओडिशा और मध्य प्रदेश का एक हिस्सा बाढ़ की स्थिति से जूझ रहा है। ऐसे में राज्य सरकारें अब योजना बना रही हैं कि कैसे परीक्षा आयोजित की जाए। जिसमें मोड, प्रश्नों, यातायात व्यवस्था आदि को लेकर विचार किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में सभी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 30 सितंबर तक कराने को कहा है। कोर्ट ने कहा, बिना परीक्षा के छात्रों को प्रमोट नहीं किया जा सकता। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि राज्य सरकारें चाहें तो स्थिति के मद्देनजर यूजीसी से एग्जाम डेट टालने पर विचार कर सकते हैं।
यूजीसी दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाले एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने पश्चिम बंगाल के शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि बंगाल में परीक्षा आयोजित करना असंभव है। यूजीसी ने ग्राउंड रियलिटीज पर कतई ध्यान ही नहीं दिया।
मामले में हस्तक्षेप के लिए देश भर के 11 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी। अदालत में इस मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने आज 28 अगस्त को मामले में फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
अदालत ने माना कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को UGC के दिशानिर्देशों के विपरीत जाकर परीक्षा न कराने के आदेश देने का अधिकार है, इसलिए अदालत राज्यों को यह अनुमति देती है कि वे UGC से एग्जाम कराने की डेडलाइन में छूट मांग सकते हैं।