भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT Delhi) ने अपनी मूल्यांकन प्रणाली में सुधार किया है और विद्यार्थियों में तनाव कम करने के लिए मध्य सेमेस्टर परीक्षाओं का एक सेट हटा दिया है। यह निर्णय कई IIT में विद्यार्थियों की आत्महत्या के कई मामलों के सामने आने के बाद लिया गया है। इन आत्महत्याओं के बाद इस बात को लेकर बहस छिड़ी है कि क्या पाठ्यक्रम और स्टडी का कठिन प्रोसेस विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
निदेशक ने क्या कहा है?
IIT दिल्ली के निदेशक रंगन बनर्जी ने कहा,‘‘पहले हम एक सेमेस्टर की परीक्षाओं में दो सेट का इस्तेमाल करते रहे हैं, हर सेमेस्टर के आखिर में अंतिम परीक्षा और कई मूल्यांकन होते हैं। हमने एक इंटरनल असेसमेंट किया और सभी विद्यार्थियों तथा विभागों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर हमने परीक्षाओं के एक सेट को छोड़ने का फैसला किया है। इसलिए अब नियमित मूल्यांकन के अलावा परीक्षाओं के दो सेट होंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने महसूस किया कि परीक्षा कार्यक्रम बहुत अधिक बोझिल था, इसलिए विद्यार्थियों का बोझ और तनाव कम करने का फैसला किया। इस फैसले को सीनेट की मंजूरी मिल गई है और इसे चालू सेमेस्टर में लागू किया जाएगा।
कैसे बच्चों का तनाव कम हो? बैठक में हुए फैसले
आईआईटी परिषद ने अप्रैल में अपनी बैठक में यह निर्णय लिया कि एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए जिसमें मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग सेवा और विद्यार्थियों में तनाव जैसी समस्याओं पर मजबूती से काम किया जा सके। बैठक में विद्यार्थियों के खुदकुशी करने, कथित भेदभाव और विद्यार्थियों का मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर विचार किया गया।
पिछले महीने संसद में साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक सभी आईआईटी में पिछले पांच साल के दौरान विद्यार्थियों की आत्महत्या के सर्वाधिक मामले दर्ज किए गए।
वर्ष 2018 से 2023 के बीच भारत के उच्च शैक्षिक संस्थानों में विद्यार्थियों की आत्महत्या के 98 मामलों में से 39 मामले आईआईटी के हैं। निदेशक ने कहा, ‘‘सभी आईआईटी में विद्यार्थी एक बहुत कठिन प्रोसेस के जरिये पहुंचते हैं, वे एक ऐसी कक्षा में पहुंचते हैं जहां बहुत से बहुत अधिक बुद्धिमान विद्यार्थी होते हैं… हमें लोगों को यह बताने में समर्थ होना चाहिए कि नाकामी का सामना कैसे करते हैं…यह कुछ ऐसा है जिस पर हम ध्यान दे रहे हैं।’’