पक्ष-विपक्ष के समन्वय के बीच गुरुवार को दिल्ली विधानसभा ने राजधानी के स्कूलों से पास विद्यार्थियों के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित 28 कॉलेजों में 85 फीसद आरक्षण संबंधी प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया। इसके साथ ही एक और प्रस्ताव पारित कर केंद्र से आग्रह किया गया कि डीयू अधिनियम, 1922 के खंड 5 के उपखंड 2 में संशोधन कर इस बात का प्रावधान किया जाए कि दिल्ली सरकार ऐसा विश्वविद्यालय खोल सके जो कॉलेजों को संबद्धता दे सकता है। विपक्ष की सकारात्मक भूमिका पर आभार प्रकट करते हुए उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली सरकार डीयू के 28 कॉलेजों को इस नीयत से फंड करती है कि दिल्ली के बच्चों को प्राथमिकता मिले, लेकिन केंद्र के संज्ञान में यह बात लगातार लाने के बावजूद ऐसा नहीं हो पा रहा है।

दिल्ली से हर साल 2 लाख से ज्यादा बारहवीं पास करने वाले विद्यार्थियों को कॉलेजों में दाखिले के लिए भटकना पड़ता है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को अंतिम पत्र 13 दिसंबर 2016 को लिखा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आज के सदन की भावना से बात बनेगी जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों शामिल हैं। डीयू या केंद्र जिनसे भी बात करनी है, मिलकर करेंगे। प्रक्रिया लंबी है लेकिन सदन के 70 सदस्यों के संकल्प पर जरूर विचार किया जाएगा। प्रस्ताव में कहा गया है कि डीयू के 28 कॉलेजों को दिल्ली सरकार आंशिक या पूरी तरह से फंड प्रदान करती है जो दिल्ली के करदाताओं का है। इसलिए, सदन यह प्रस्ताव करता है कि दिल्ली के विद्यार्थियों के लिए दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित कॉलेजों में 85 फीसद सीटें आरक्षित की जाएं।

सदन द्वारा पारित दूसरे प्रस्ताव में डीयू के अधिनियम में संशोधन की बात कही गई है। सिसोदिया ने कहा कि अंग्रेजों द्वारा लगभग 100 साल पहले बनाए गए कानून का खामियाजा दिल्ली के विद्यार्थी पीढ़ी दर पीढ़ी भुगत रहे हैं। प्रस्ताव में कहा गया है कि दिल्ली सरकार राज्य में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या को बढ़ाना चाहती है। इसलिए हमें ऐसा विश्वविद्यालय खोलना चाहेंगे जो कॉलेजों को संबद्धता देने के लिए अधिकृत हो। ताकि उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी को पूरा किया जा सके। इसलिए सदन केंद्र सरकार को अनुशंसा देने का यह प्रस्ताव करता है कि डीयू अधिनियम (1922) के खंड 5 के उपखंड 2 के प्रावधानों में संशोधन किया जाए।

डीयू आरक्षण मुद्दे पर बहस शुरू करते हुए विधायक जरनैल सिंह ने कहा कि दिल्ली सरकार डीयू के 28 कॉलेजों पर 300 करोड़ रुपए खर्च करती है जिसमें 12 कॉलेजो पूरी तरह से राज्य द्वारा वित्त पोषित हैं, लेकिन जिनके कर से ये कॉलेज चल रहे हैं उन्हें ही दाखिला नहीं मिल रहा है। लक्ष्मी नगर से विधायक नितिन त्यागी ने कहा कि डीयू में 80 फीसद सीटें दक्षिण भारतीय ले जाते हैं, क्या यह न्यायोचित है। वहीं, ‘आप’ विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली से 12वीं पास करने वालों का दिल्ली के संसाधनों पर हक होना चाहिए, अलका लांबा ने कहा कि हर साल डेढ़ लाख विद्यार्थी दाखिले से वंचित रहते हैं। भाजपा-अकाली विधायक मनजींदर सिंह सिरसा ने कहा कि डीयू में दिल्ली के विद्यार्थियों को दाखिले में आरक्षण देने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 15(1) के तहत आरक्षण मान्य है और अनुच्छेद 41 व 49 के तहत राज्यों को आरक्षण करने का अधिकार है। सिरसा ने कहा कि दिल्ली सरकार को अपने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से आरक्षण की पहल करनी चाहिए। मनीष ने मुद्दे को क्षेत्रवाद से न जोड़ने की अपील की, यही बात विपक्ष की तरफ से भी आई। साथ ही सदन के सदस्य इस पर लगभग एकमत थे कि भाजपा विधायक जगदीश प्रधान के नेतृत्व में विधायकों का दल डीयू आरक्षण मुद्दे पर केंद्र और डीयू से बात करेगा।