अशोक कुमार, राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेताओं के साथ फिल्में बनाने वाले हृषिकेश मुखर्जी का सेट पर ऐसा दबदबा होता था कि कोई स्टार न तो नखरे दिखाता था, न ही किसी दृश्य को ‘एक बार और फिल्मा लो’ कहने की हिम्मत करता था। कलाकार उनके साथ फिल्म करने के सपने देखा करते थे। एक लाख से ज्यादा मेहनताना पाने वाले संगीतकार शंकर-जयकिशन उनकी फिल्म ‘अनुराधा’ (1960) मात्र 20 हजार में करने को तैयार थे। मगर फिल्म के लिए फिट नहीं होने से हृषिदा ने पंडित रविशंकर को संगीतकार के रूप में लिया। हृषिदा के करिअर में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब वह राजेश खन्ना को देखते ही अपने सहायकों (असिस्टेंटों) से कहते थे, ‘भागो पिंटू बाबा आ रहा है।’
यह किस्सा ‘आनंद’ (1971) का है। राजेश खन्ना को इसमें अपनी पंजाबी आनंद सहाय की भूमिका इतनी पसंद थी कि वह चाहते थे कि हृषिदा जल्दी से यह फिल्म बना लें। सीमित संसाधनों के कारण शूटिंग शुरू होने में समय लग रहा था और खन्ना बार-बार हृषिकेश मुखर्जी के यहां आ धमकते थे, शूटिंग की डेट देने के लिए। इससे हृषिदा परेशान थे। जब भी उन्हें खन्ना के आने का पता चलता, वह अपनी टीम के लोगों से कहते, ‘भागो पिंटू बाबा डेट देने आ रहा है।’ आमतौर से फिल्म जगत में उलटा होता है। निर्माता को कलाकारों की डेट पाने के लिए उनके चक्कर लगाने पड़ते हैं।
‘आनंद’ पहले महमूद और किशोर कुमार को लेकर बनने वाली थी। इसके निर्माता एनसी सिप्पी पूर्व में महमूद के प्रोडक्शन में काम करते थे। गलतफहमी के कारण हृषिदा ने किशोर कुमार को बदलना तय कर लिया था। हृषिदा की एक फिल्म के लिए किशोर कुमार ने उन्हें खूब परेशान किया था। किशोर कुमार फिल्म की शूटिंग से पहले पूरा पैसा चाहते थे और हृषिदा ने उन्हें आधा पैसा दे दिया था। मगर किशोर पूरे पैसों के लिए अड़ गए। तब अदालत के जरिए किशोर कुमार को बुलवाया गया था। किशोर भी कम नहीं थे, वह आधा सिर मुडा कर सेट पर पहुंच गए और कहने लगे कि आधे पैसे दोगे, तो आधा किशोर कुमार मिलेगा। हालांकि इसके बावजूद हृषिदा का किशोर कुमार पर स्नेह बना रहा। किशोर के बाद शशि कपूर से बातचीत हुई, मगर वह रोमांटिक भूमिका करना चाहते थे और ‘आनंद’ की भूमिका दुखांत थी। राज कपूर के नाम पर विचार किया गया, मगर हृषिदा नहीं चाहते थे कि वह राज कपूर पर मौत का दृश्य फिल्माएं, क्योंकि वह उनके घनिष्ट मित्र थे, जिनकी मौत की कल्पना उन्हें परेशान कर रही थी।
‘आनंद’ में राज कपूर और हृषिकेश मुखर्जी के रिश्तों की झलक थी। राज कपूर तब बीमार थे और हृषिदा को यह भय सताता था कि अगर राज कपूर नहीं रहे, तो उनका क्या होगा। फिल्म में राजेश खन्ना पंजाबी आनंद सहाय की भूमिका कर रहे थे और अमिताभ बच्चन बंगाली डॉ भास्कर बनर्जी की। राज कपूर पंजाबी थे और हृषिदा बंगाली। राज कपूर हृषिदा को बाबू मोशाय कह कर बुलाते थे। फिल्म में राजेश खन्ना को भी बाबू मोशाय संबोधित किया गया था। 1970 के दशक में ‘जंजीर’ से अमिताभ बच्चन ने जिस एंग्री यंगमैन को सिनेमा के पर्दे पर उतारा, उसके बीज हृषिदा की ‘आनंद’ में देखे जा सकते हैं। इस फिल्म में अमिताभ ने ऐसे डॉक्टर की भूमिका निभाई थी, जो अपने मित्र मरीज को तिल-तिल मरते देखता है, मगर असहाय और लाचार है कि उसे बचा नहीं सकता। उसके अंदर का आक्रोश और लाचारी, अमिताभ बच्चन ने बखूबी अभिव्यक्त की थी।
