जब मनुष्य संकट में होता है और व्याधियों से घिरा होता है तो वह ईश्वर की शरण में जाता है। तब कहा जाता है कि दुआ दवा से ज्यादा कारगर साबित होती है। भारतीय धर्म ग्रंथों में मनुष्य को व्याधियों से मुक्त करने के लिए अनेक उपाय बताए गए हैं और उन में सर्वश्रेष्ठ उपाय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना है। महामृत्युंजय मंत्र अर्थात मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र है जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है।
यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में भगवान शिव की स्तुति के लिए की गई एक वंदना है। इस मंत्र में शिव को मृत्यु को जीतने वाला बताया गया है। यह गायत्री मंत्र के समकक्ष सनातन धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र माना जाता है। महामृत्युंजय मंत्र की खोज माकंर्डेय ऋषि ने की थी। यह एक गुप्त मंत्र था, और इस मंत्र को जानने वाले दुनिया में केवल ऋषि माकंर्डेय ही थे।
उत्तराखंड की तीर्थनगरी हरिद्वार के कनखल तीर्थ की राजधानी के राजा दक्ष प्रजापति द्वारा श्राप दिए जाने पर चंद्रमा एक बार संकट में फंस गए तब ऋषि मार्कण्डेय ने दक्ष की पुत्री सती को चंद्रमा के लिए महामृत्युंजय मंत्र दिया। इस तरह यह मंत्र सार्वजनिक रूप से पहली बार ज्ञात हुआ। महामृत्युंजय मंत्र को अकाल मृत्यु को हरने वाला मंत्र माना जाता है और यह किसी भय से जीवन रक्षक मंत्र है। यह सबसे शक्तिशाली उपचार मंत्र है जिसे प्राचीन काल से अब तक अपनाया गया है। यह सभी समस्याओं को सबसे पहले दूर कर स्वास्थ्य, धन, शांति, समृद्धि या मोक्ष देने की शक्ति प्रदान करता है।
ऐसी मान्यता है की जब सभी चिकित्सा उपचार विफल हो जाए तो रोगी के चारों ओर मंत्र का जाप या जप करना उनके जीवन में चमत्कार करता है। यह मंत्र जाप करने वाले के मन में सुख, शांति और चेतना लाता है। इसे मोक्ष मंत्र भी कहा जाता है। भक्त को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों में भगवान शिव के कई चमत्कारिक मंत्र बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है महामृत्युंजय मंत्र। यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली माना गया है।
मान्यतानुसार कहा जाता है कि यदि इस मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या में किया जाए तो बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी टल जाता है। पौराणिक मान्यता है कि महामृत्युंजय मंत्र के जाप से मृत्यु का संकट भी टल जाता है। किसी की कुंडली में यदि मृत्यु का योग बने तो महामृत्युंजय मंत्र के जाप का उपाय बताया जाता है। मान्यता है कि इसके जाप से मनुष्य को लंबी आयु प्राप्त होती है। सावन के माह में इस मंत्र का जाप करना बहुत ही शुभफलदायी रहता है। भगवान शिव की कृपा से यमराज भी ऐसे व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं देते हैं।
मृत संजीवनी मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र में भगवान शिव के महामृत्युंजय स्वरूप से आयु की रक्षा प्रार्थना की गई है। इस मंत्र के छोटे और लंबे दो स्वरूप हैं। महामृत्युंजय मंत्र जिसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जब रोग असाध्य हो जाए और कोई आशा न बचे तब इस मंत्र का कम से कम 64 हजार या सवा लाख बार जाप करावाना चाहिए. तब असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है।
जप से रोग-शोक से मुक्ति
जहां महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से मनुष्य भय रोग और मृत्यु से मुक्ति पा लेता है, वहीं महामृत्युंजय महायज्ञ मनुष्य को अकाल मृत्यु से बचने, असाध्य रोगों से मुक्ति के साथ ही धनप्राप्ति, संतान प्राप्ति, वैवाहिक जीवन में आ रहे विघ्नों को दूर करने के लिए महामृत्युंजय महामंत्र के साथ यज्ञ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
50 के दशक में हरिद्वार में किया गया था महामृत्युंजय महायज्ञ
हरिद्वार में गंगा तट पर स्थित सप्त ऋषियों की तपस्थली सप्तऋषि आश्रम में महामृत्युंजय का 100 वर्षीय महायज्ञ श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के संस्थापक और महामना मदन मोहन मालवीय के एकमात्र मंत्र दीक्षित शिष्य त्यागमूर्ति गोस्वामी गणेश दत्त महाराज द्वारा पचास के दशक में स्थापित किया गया था। इसमें आहुति देने के लिए देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद पहुंचे थे और उन्होंने इस आश्रम की पुस्तिका में इस महायज्ञ से प्राप्त अनुभव और उसकी विशेषताओं के बारे में उल्लेख किया था।