वारेल गांव पुणे जिले के रिमोट कॉर्नर में पड़ता है, लेकिन वहां के बच्चे इससे अच्छी तरीके वाकिफ हैं कि ‘अच्छे दिन आऩे’ का वादा करने वाले पीएम मोदी शनिवार को पुणे आ रहे हैं। दसवीं कक्षा के तेजस भोसले ने बताया, ‘मैं नियमित तौर पर टीवी पर न्यूज देखता हूं। मैंने मोदीजी को कई बार उनकी पसंदीदा लाइन ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ बोलते हुए सुना है।’ तेजस सहित सैंकड़ों छात्र नदी पार करके स्कूल में पढ़ने जाते हैं। ये छात्र रोज अपनी जिंदगी दाव पर लगाकर स्कूल पहुंचते हैं।
तेजस के अन्य सहपाठी और कक्षा आठवीं और नौवीं कक्षा के छात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक छोटी मदद चाहते हैं। काजल मंजारे ने कहा, ‘क्या पीएम मोदी इंद्रायणी नदी पर पुल बनवाकर हमारी मदद कर सकते हैं। इससे हम लोग जो रोज अपनी जान पर खेलते हैं, वह नहीं होगा। अगर प्रधानमंत्री निर्देश देते हैं तो हमें भरोसा है कि पुल एक रात में ही बन जाएगा। हमारा सफर आसान हो जाएगा।’ उनके सहपाठी निकिता मंजारे, रुतुजा जगतप, प्रिया लोंढे की इच्छा है कि पीएम उनके गांव थोड़ी देर के लिए आएं और देखें कि उनकी जिंदगी कितनी कठिन है।
करीब 100 से ज्यादा छात्र लकड़ी की टूटी फूटी नाव पर इंद्रयाणी नदी पार करके अपने गावं से वारेल गांव स्कूल पहुंचते हैं। छात्र नावोली गांव में रहते हैं। उनके गांव में केवल सातवीं क्लास तक का स्कूल है। ऐसे में उनके पास नदी पार करके स्कूल जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अगर ये नदी पार नहीं करना चाहते तो इन्हें पैदल स्कूल पहुंचने में एक घंटा लगता है।
नाव नदी के दोनों तरफ बांधे गए तारों की मदद से चलती है। नाव को नायलोन की रस्सी के सहारे खींचा जाता है। आठवीं कक्षा के छात्र आदिनाथ ने बताया, ‘पिछले साल भारी बारिश के दौरान नायलोन की रस्सी दो बार टूट गई थी। हम लोग डर गए थे और कुछ तो तेज-तेज से चिल्लाने लगे थे।’ सभी लड़के तैरना जानते हैं, जबकि लड़कियों का कहना है कि उन्हें तैरना नहीं आता।
नाव को गांव का एक व्यक्ति चलाता है। अगर वह नहीं होता तो उसकी पत्नी यह काम कती हैं। अगर दोनों उपलब्ध नहीं होते तो अपनी जान खतरे में डालकर छात्र खुद ही नाव को खींचते हैं। मानसून के दौरान जब नदी ऊफान पर होती है तो अक्सर वह रस्सी टूट जाती है। इस दौरान नदी के दोनों तरफ लोग खड़े रहते हैं। वे अपने बच्चों की सेफ्टी के लिए प्रार्थना करते रहते हैं। लोगों का कहना है कि स्थानीय विधायक, सांसद, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और डिविजनल कमीशनरेट बच्चों की सुरक्षा के लिए गंभीर नहीं है। एक गांव के निवासी का कहना है कि मैं 1972 से देख रहा हूं कि गांव वाले और छात्र अपनी जिंदगी पर खेलकर नदी पार करते हैं।
स्थानीय जिला परिषद सदस्य सुरेश मराठे ने बताया, ‘दो दशक पहले पुल बनाने की योजना बनाई गई थी। अधिकारियों और स्थानीय विधायक ने पुल का काम शुरू करने के लिए नारियल भी फोड़ा था। लेकिन उसके बाद से कुछ भी नहीं हुआ। इससे लगता है कि अधिकारियों की नींद तभी खुलेगी, जब कुछ बड़ी घटना घटेगी।’