केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) सहित देश के 23 बोर्डों ने इस साल बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम में मॉडरेशन नीति को लागू नहीं करने का निर्णय लिया है। इसके परिणामस्वरूप इस बार के नतीजों में 90 से 100 फीसद प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में कमी हो सकती है। इस साल विशेष रूप से कक्षा 12 की परीक्षा देने वाले छात्रों के अभिभावक इसको लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि किसी भी विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए चालू वर्ष के साथ कई सालों में पास हुए विद्यार्थी आवेदन करते हैं। ऐसे में उनके बच्चों के दाखिले की संभावनाएं कम हो जाएंगी। दक्षिण दिल्ली के राकेश चौहान, जिनके बेटे ने इस साल 12वीं की परीक्षा दी है, का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय 12वीं के अंकों के आधार पर जारी कटआॅफ पर प्रवेश देता है। डीयू में प्रवेश के लिए एक-एक नंबर की मारामारी रहती है और ऐसे में पिछले साल पास हुए छात्र भी प्रवेश के लिए आए तो इस साल बिना मॉडरेशन पास होने वाले विद्यार्थी तो पीछे रह जाएंगे। इसी तरह रोहिणी में रहने वाले देवेंद्र वर्मा का कहना है कि उनकी बेटी ने इस साल बारहवीं की परीक्षा दी है। उन्हें चिंता है कि नौकरियों के लिए आवेदन के दौरान इस साल और पिछले सालों में पास हुए छात्रों के अंकों के बीच काफी अंतर रहेगा। इससे इस साल पास होने वाले बच्चों के अवसरों में कमी होगी। उनका कहना है कि जब यह नीति पिछले कई सालों से जारी थी तो इसे धीरे-धीरे हटना चाहिए था। एक झटके में हटाने से इस साल पास होने वाले विद्यार्थियों को नुकसान की आशंका है।

डीयू के एक अधिकारी का कहना है कि जब तक सभी बोर्ड अपने परिणाम जारी नहीं कर दें तब तक यह कहना जल्दबाजी होगी कि इस साल पास होने वाले बच्चे नुकसान में रहेंगे। उनका कहना है कि यह बात सही है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में 12वीं के अंकों के आधार पर प्रवेश दिया जाता है और किसी भी साल में पास हुआ बच्चा दाखिले के लिए आवेदन कर सकता है। हालांकि अगर इस साल 100 से 95 फीसद अंक पाने वाले छात्रों की संख्या में कमी होती है तो डीयू कटआॅफ में तो कमी होगी ही।

क्या होती है मॉडरेशन नीति
प्रश्न पत्र के कठिन सेट या कठिन प्रश्नों के लिए बोर्ड विद्यार्थियों को कुछ अतिरिक्त अंक देता था। इस नीति के तहत वे छात्र घाटे में रहते थे जिन्हें कठिन प्रश्न आता था और उन्होंने उसे हल भी किया। प्रावधान के मुताबिक बोर्ड कठिन प्रश्न या गलत प्रश्न की सूचनाओं के आधार पर एक समिति का गठन करता था जिसमें विषय विशेषज्ञ भी होते थे। यह समिति तय करती थी कि सभी छात्रों को कितने अंक दिए जाने हैं। इस नीति की वजह से 2008 से 2014 के बीच 95 फीसद अंक लाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में उछाल आ गया था। यही वजह भी रही कि डीयू में प्रवेश के लिए कटआॅफ 100 फीसद को छू जाती थी।