गायक यो यो हनी सिंह जितनी चर्चा अपनी गायकी से हासिल करते हैं, उससे ज्यादा सुर्खियां उन्हें अक्सर ऐसे गानों के लिए मिल जाती हैं, जिन्हें आमतौर पर स्त्रियों के खिलाफ माना जाता है। हाल ही में अपने नाम से जारी एक गाने में उन्होंने महिलाओं के खिलाफ ऐसे आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया, जिन्हें अश्लीलता के दायरे में और महिलाओं की गरिमा कम करने वाला माना गया। इस पर घोर आपत्ति जताई गई थी और अब पंजाब राज्य महिला आयोग की शिकायत पर उनके खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। आयोग की अध्यक्ष ने कहा है कि जिस गीत में भी महिलाओं के खिलाफ अश्लीलता का प्रयोग हुआ हो, वह पूरे पंजाब में प्रतिबंधित होना चाहिए। यों हनी सिंह पहली बार ऐसे गीतों के लिए कठघरे में खड़े नहीं हुए हैं। करीब पांच साल पहले भी वे अपने एक ऐसे गीत के लिए विवाद में थे, जिसके शब्द बलात्कार जैसे अपराध को महिमामंडित करते थे। सवाल है कि दिल्ली में जिस ‘निर्भया’ मामले के बाद समूचा देश बलात्कार के खिलाफ आक्रोश में था, उसमें ‘मैं बलात्कारी हूं’ जैसा गीत गाने का साहस हनी सिंह में कहां से आया था?

दरअसल, हनी सिंह अकेले ऐसे गीतों के कारोबारी नहीं हैं। भोजपुरी, हरियाणवी और दूसरी प्रांतीय भाषाओं में भी ऐसे गीतों की सीडी बिकती हैं या फिर इंटरनेट पर खुलेआम मौजूद हैं, जिनके बोल घोर अश्लील और एक स्तर पर आपराधिक होते हैं, पर उन्हें सरेआम बजाया जाता है। सच यह है कि महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के अपराधों में ऐसे गीतों की बड़ी भूमिका होती है। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसे गीतों का मकसद खालिस कारोबार और पैसे कमाना होता है। आखिर ऐसे गीतों को सुनने और देखने वाले लोग कहां से आते हैं? वे किस समाज में और कैसे तैयार होते हैं? आधुनिकता की चकाचौंध में कमजोर होते सामाजिक सरोकारों के बीच हनी सिंह जैसे कलाकार इसलिए मशहूर हो जाते हैं कि उनके गीतों में बहुत सारे लोग अपनी हिंसक यौन कुंठाओं की नुमाइंदगी महसूस करते हैं। शायद यही वजह है कि कई बार लोग ऐसे गीत गाने वाले मशहूर कथित कलाकारों को अपने समारोहों में आमंत्रित करके उनके कार्यक्रम आयोजित करते हैं। ऐसे लोगों को कई राजनीतिक दल भी अपनी सदस्यता देकर इतराते हैं। यह एक तरह से ऐसे गीतों और इसके गायकों को वैधता देना होता है। जबकि ऐसे गीतों के संदर्भ समाज में पसरी यौन कुंठित मानसिकता को और ज्यादा पुष्ट करते हैं।

कहा जा सकता है कि पहले से ही महिलाओं के खिलाफ कई ग्रंथियों में जकड़े समाज में ऐसे गीत एक तरह से प्रशिक्षण की भूमिका निभाते हैं। सवाल है कि जो गीत जनता के व्यापक हिस्से में सुने या देखे जाते हैं, उन्हें पर्याप्त जांच-परख के बिना कैसे जारी होने दिया जाता है! किसी फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन से पहले उसे सेंसर बोर्ड के कड़े परीक्षण से गुजरना पड़ता है। ऐसी तमाम फिल्में होती हैं, जिनके जरूरी माने जाने वाले दृश्यों को भी सेंसर बोर्ड अश्लीलता की दलील पर काट देता है। फिर इस तरह के स्वतंत्र वीडियो और गीतों पर कोई रोकटोक क्यों नहीं है? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के पीछे कई तरह की कुंठाओं का एक मनोविज्ञान काम करता है। उसे पुष्ट करने वाले कारकों पर लगाम लगाए बिना उन अपराधों पर काबू पाने की कोशिश अधूरी रहेगी।