प्रियरंजन

चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है। अब मतदाताओं की बारी है। चुनाव प्रचार थमने के बाद शुक्रवार को चुनावी बयार उम्मीदवारों के दफ्तरों की बजाय गली-कूचे, पार्क-मुहल्लों और चौपालों पर फैल गई। खास दलों और पार्टी के काडरों के बीच भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों और चुनावी हवा के रुख पर चर्चा होती रही। कोई इस चुनाव को अब तक का सबसे दिलचस्प मुकाबला बता रहा है तो कोई चुनाव को ऐतिहासिक महत्व वाला चुनाव बता रहा है।

उधर, चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार अपने विरोधियों की गतिविधियों पर नजर रखे रहे। कस्तूरबा नगर से भाजपा उम्मीदवार रवींद्र चौधरी ने प्रचार खत्म होने के बाद पदयात्रा करने पर आप उम्मीदवार के खिलाफ शिकायत की। वोटरों को मतदान के प्रति जागरूक करने के कार्यक्रम में उन्होंने इस बाबत कार्यकर्ताओं से सतर्कता बरतने की हिदायत दी।

अंतिम दिन कार्यकताओं को वोटर को निकालने की कमान दी गई, बूथ स्तर तक प्रबंधन में नेता जुटे थे। इसके अलावा उम्मीदवारों के खेमें में सर्वे की चर्चा के अलावा उन सीटों की चर्चा आम है, जहां पिछले चुनाव में जीत हार का अंतर तीन-चार सौ से लेकर हजार-बारह सौ था। कुछ उम्मीदवारों को डर सता रहा है कि उनका खेल कहीं नोटा (नन आफ द एबब) यानी की मतदाता को हर उम्मीदवार को नकारने का अधिकार, बिगाड़ न दे। चुनाव आयोग की तैयारियों को देखते हुए इस बार वोट फीसद बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है।

दिल्ली में 1 करोड़ 33 लाख, 789 मतदाता है। अनुपातिक तौर पर हर विधानसभा क्षेत्र में एक लाख 90 हजार से ज्यादा वोटर हैं। पिछले चुनाव में करीब एक दर्जन सीटों पर तीन-चार सौ से एक-डेढ़ हजार वोटों के अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ था। दिल्ली कैंट, संगम विहार, सदर, कालकाजी, विकासपुरी, जनकपुरी, आरकेपुरम, रोहिणी, राजेंद्र नगर, मादीपुर, सुल्तानपुर माजरा आदि में जीत हार का अंतर 326 से लेकर डेढ हजार वोट का था। पिछले चुनाव में कुल 49774 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। यह कुल पड़े 7876164 वोटों का 0.63 फीसद था। नोटा में सबसे कम 296 वोट मटियामहल विधानसभा और सबसे अधिक 1426 विकासपुरी में पड़े थे।

बीते चुनाव में विकासपुरी विधानसभा क्षेत्र ऐसा था जहां हार-जीत का अंतर नोटा के मुकाबले एक तिहाई से भी कम था। इस सीट पर बीजेपी के कृष्णा गहलोत की पराजय महज 405 वोटों से हुई थी, जबकि नोटा वोटों की संख्या 1426 थी। आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर मुख्यत: सरकारी कर्मचारियों के क्षेत्र राम कृष्णा पुरम से मैदान में उतरीं शाजिया इल्मी चुनाव में सबसे कम मतों से हारने वाली उम्मीदवार थीं। उन्हें बीजेपी के अनिल कुमार शर्मा ने 326 मतों से हराया था, जबकि नोटा के खाते में 528 मत पड़े थे। भाजपा के करण सिंह तंवर भी मामूली अंतर से हारने वाले उम्मीदवारों में शामिल थे। दिल्ली कैंट विधानसभा क्षेत्र से तीन बार से जीतते आ रहे तंवर को आप के सुरेंद्र कुमार ने महज 355 मतों से हराया था। जबकि 478 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था।

सुल्तानपुर माजरा (सुरक्षित) में भी जीत-हार का अंतर नोटा में पड़े वोटो से कम का था। इस सीट पर कांग्रेस के जयकिशन ने आप के उम्मीदवार को 1112 मतों से हराया था। जबकि वहां 1232 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया था। पिछले चुनाव में एक हजार से कम वोटों से हारने वाले उम्मीदवारों में सदर बाजार से भाजपा बीजेपी के जयप्रकाश और संगम विहार से शिवचरण लाल गुप्त भी शामिल थे। ये दोनों 796 और 777 वोटों से पराजित हुए थे। इन दोनों क्षेत्रों में नोटा के खाते में 607 और 298 मत पड़े थे।

इसके अलावा जो उम्मीदवार कम वोटों से जीते उनमें रोहिणी से राजेश गर्ग (1872), राजेंद्र नगर से आरपी सिंह (1796), आरके पुरम से अनिल शर्मा (326), मादीपुर से महेंद्र यादव (1103), करोलबाग से विशेष रवि (1750), जंगपुरा से एसएस धीर (1744) के नाम शामिल हैं।

दिल्ली विधानसभा के लिए 2013 में हुआ चुनाव देश का ऐसा पहला चुनाव था, जिसमे मतदाताओं को नोटा का विकल्प दिया गया।