भारी रेडिएशन से जूझते हुए NASA का स्पेसक्राफ्ट जूनो सोमवार को बृहस्पति (जुपिटर) पहुंच गया। जूनो को जुपिटर तक पहुंचने में पांच साल लगे हैं। वहां पहुंचते-पहुंचते जूनो ने अपना रॉकेट दागा ताकि उसकी स्पीड कम हो सके और वह जुपिटर की कक्षा में दाखिल हो सके। पृथ्वी और जुपिटर के बीच संचार अंतराल होने की वजह से जूनो इस दौरान ऑटोपायलट मोड में था। जुपिटर के पहुंचते ही वहां के कैमरा और अन्य उपकरण बंद कर दिए गए। जूनो के जुपिटर की कक्षा में दाखिल होने से घंटों पहले NASA ने पिछले हफ्ते खींची गई तस्वीरें रिलीज की हैं। वैज्ञानिकों ने वादा किया है कि जब जूनो जुपिटर के बादलों में दाखिल होगा, तो वे ग्रह की नजदीकी तस्वीरें जारी करेंगे। बृहस्पति को अभी हाइड्रोजन और हीलियम गैसों के गोले के तौर पर जाना जाता है।
No turning back now. I’m 100,000 miles (161,000 km) from #Jupiter. https://t.co/yREeRz7b4E pic.twitter.com/E3aExFvMGp
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
Heads up, @NASAJPL mission control. Sending tones now. Do you copy? #Jupiter
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
Check your attitude. Starting to turn in preparation for main engine burn. #Jupiter
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
Main engine burn is go. I’m burnin', burnin', burnin' for you, #Jupiter. pic.twitter.com/b3SHm3Gphj
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
It's not over yet. We're still awaiting word in a few minutes that the solar-powered #Juno is facing the sun. pic.twitter.com/0N8DIEt568
— NASA (@NASA) July 5, 2016
अपने बादलों और रंगीन धारियों के साथ, जुपिटर एक अलग दुनिया माना जाता है। कहा जाता है कि यह सबसे पहले बनने वाला ग्रह था, सूरज के बनने के कुछ ही देर बाद। अगर वैज्ञानिक जुपिटर का इतिहास ढूंढने में कामयाब रहते हैं तो हमें पृथ्वी और बाकी सौरमंडल के विकास की प्रकिया का पता चल सकेगा। जूनों का नाम रोम की पौराणिक कथाओं में जुपिटर की बादलों को छेदने वाली पत्नी के नाम पर रखा गया है। इससे पहले 1989 में लॉन्च किया गया गैलीलियो करीब एक दशक तक जुपिटर के चक्कर लगाता रहा। गैलीलियो के जरिए ही हमें पता चला कि बृहस्पति के एक चांद यूरोपा के बर्फीले तल के नीचे एक समुद्र के निशान मौजूद हैं, इससे धरती के बाहर जीवन तलाशने की कोशिशों को नया बल मिला।
#Juno turned back toward the sun, has power and started its tour of #Jupiter in an initial 53.5-day orbit pic.twitter.com/iwRSSOwPwX
— NASA (@NASA) July 5, 2016
Engine burn complete and orbit obtained. I’m ready to unlock all your secrets, #Jupiter. Deal with it.
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
Success! Engine burn complete. #Juno is now orbiting #Jupiter, poised to unlock the planet's secrets. https://t.co/YFsOJ9YYb5
— NASA (@NASA) July 5, 2016
Here comes the sun. Starting to turn back to sun-pointed attitude. #Jupiter
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
All rays on me. My solar panels now face the sun. I’m the farthest solar-powered spacecraft from Earth. #Jupiter
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
जूनो का मिशन जुपिटर के बादलों से भरे वातावरण के भीतर देखता है। इसके अलावा जूनो कई सवालों के जवाब भी ढूंढेगा जैसे वहां कितना पानी है? क्या वहां कोई ठोस कोर है? जुपिटर की उत्तरी और दक्षिणी रोशनी पूरे सौरमंडल में सबसे चमकदार क्यों है? इसके अलावा जूनो बृहस्पति के लाल धब्बे के रहस्य का भी पता लगाने की कोशिश करेगा, जिसके बारे में हब्बल टेलीस्कोप ने खुलासा किया था कि सदियों पुराना यह तूफान अब कमजोर हो रहा है।
It's official: I'm in orbit at #Jupiter. See how the team is feeling + what's next https://t.co/07QdiWDxdU pic.twitter.com/NuEGsLNZdi
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
आने वाले कुछ दिनों में जूनो अपने उपकरणों को फिर से शुरू करेगा। लेकिन असली काम अगस्त के आखिरी दिनों में शुरू होगा जब स्पेसक्राफ्ट ग्रह के और नजदीक जाएगा। योजना है कि जूनो को जुपिटर के बादलों में 5,000 किलोमीटर तक भेजा जाएगा ताकि ग्रह के गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाया जा सके।
And yet it moves. What Galileo saw through his telescope, I captured on approach to #Jupiter https://t.co/q3yCNsirYk pic.twitter.com/vBBwpoRMm0
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016
जूनो के कंप्यूटर और इलेक्ट्रानिक्स टाइटेनियम की एक तिजारी में बंद किए गए हैं ताकि खतरनाक रेडिएशन से बचाया जा सके। इसके बावजूद अगर मिशन के दौरान जूनो 100 मिलियन डेंटल एक्स-रे के बराबर या ज्यादा रेडिएशन होने पर फट जाएगा। गैलीलियो की तरह जूनो भी 2018 में खुद को नष्ट कर लेगा। तब वह बृहस्पति के वातावरण में कूदेगा और खो जाएगा। ऐसा करेगा इसलिए जरूरी है ताकि स्पेसक्राफ्ट को बृहस्पति के किसी भी चांद पर दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाया जा सके।
Teamwork❤️! From #Jupiter to Earth: thanks, team for guiding me into orbit. And now… SCIENCE https://t.co/4tR0S3XwyD pic.twitter.com/17Bia2UTkR
— NASA's Juno Mission (@NASAJuno) July 5, 2016