विकसित देशों के संगठन जी-7 की बैठक में फ्रांस, चीन, यूरोपीय संघ और भारत के साथ अमेरिका के ‘कारोबार युद्ध’ का मसला इस कदर छाया रहा कि इस समूह की एकता पर सवाल उठने लगे। चीन और भारत इसके सदस्य नहीं हैं, लेकिन दुनिया की आर्थिकी को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इस कारण सदस्य देशों ने अमेरिका पर विभिन्न मुद्दों को लेकर खासा दबाव बनाया। फ्रांस और यूरोपीय संघ ने अपने-अपने तरीकों से दबाव बनाया। नतीजा यह कि चीन और ईरान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति नरमी की मुद्रा में दिखे। भारत की कूटनीतिक जीत यह रही कि कश्मीर के मुद्दे पर ट्रंप का ‘मध्यस्थता राग’ बंद हो गया।

अमेरिका और यूरोपीय संघ
वैश्विक अर्थव्यव्सथा को कारोबार युद्ध से अधिक खतरा पहुंचने का अंदेशा है। यह बात जी-7 की बैठक में खुलकर सामने आई। खासकर यह कि अमेरिका का संरक्षणवादी रवैया दुनिया को मंदी की ओर धकेल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और यूरोपीय संघ (ईयू) के नेताओं के बीच कारोबार युद्ध के खतरों को लेकर बहस छिड़ गई। ईयू परिषद के प्रमुख डोनाल्ड टस्क ने कह दिया कि कारोबार युद्ध के चलते मंदी गहराएगी। जबकि सुलह हो जाने से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।

फ्रांस, अमेरिका और ईरान का मुद्दा
बैठक में भाग लेने से पहले ही ट्रंप ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को धमकी देने के अंदाज में कहा था कि अगर वे अमेरिका की टेक्नोलॉजी कंपनियों पर लगाए गए टैक्स को वापस नहीं लेते हैं तो अमेरिका फ्रेंच वाइन पर आयात शुल्क लगा देगा। जवाब में मैंक्रों ने यूरोपीय संघ को अपने पाले में खड़ा कर लिया और खुद को ईरान का पक्षकार बना लिया। जी-7 सम्मेलन की पूर्वसंध्या पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैंक्रों ने ट्रंप के आपत्ति व इनकार के बावजूद अमेरिका से तनाव के मुद्दे पर बातचीत करने के लिए ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ को बुला लिया। यह कहा कि जी-7 में इसके लिए सहमति बनी है। मैंक्रों की इस कवायद से अमेरिका और ईरान में तनाव कम करने के लिए रास्ते खोले जाने पर संभावना बनी है। इसमें भारत भी एक पक्षकार है।

चीन और अमेरिकी कारोबार युद्ध
जी-7 की बैठक के लिए रवाना होने के पहले ट्रंप ने चीन के उत्पादों पर नए सिरे से शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। वाइट हाउस की ओर से जारी एक वक्तव्य में ट्रंप ने कहा कि अक्तूबर से 250 अरब डॉलर की चीनी वस्तुओं पर 30 फीसद का शुल्क लगाया जाएगा। असल में चीन ने शुक्रवार को 75 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया था, जिसके जवाब में अमेरिका ने यह कार्रवाई की। इसका फौरी असर यह दिखा कि अमेरिकी शेयर बाजार डाऊ जोंस 2.4 फीसद लुढ़क गया। सोमवार को भारत समेत दुनिया के कई बाजारों में असर देखा गया। बाद में फ्रांस के बियारित्ज में ट्रंप ने सोमवार को कहा कि कारोबार युद्ध को लेकर चीन उनसे बातचीत करना चाहता है, इसके लिए उसने रविवार रात अमेरिका अधिकारियों से भी संपर्क किया है। इसके बाद दुनिया के शेयर बाजारों में सुधार देखा गया।

विश्व की अर्थव्यवस्था पर असर
कारोबार युद्ध ने वैश्विक विकास को काफी नुकसान पहुंचाया है। अगर हालात आगे भी ऐसे रहे तो विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की कगार पर पहुंच जाएगी। ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, सिंगापुर और ब्राजील समेत दुनिया के नौ प्रमुख देश मंदी के कगार पर हैं या मंदी की चपेट में आ चुके हैं। जानकारों का अनुमान है कि अगर कारोबार युद्ध जारी रहा तो इससे साल 2021 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी के आगोश में चली जाएगी। दुनिया को करीब 585 अरब डॉलर का चूना लग सकता है। अमेरिका की नेशनल एसोसिएशन फॉर बिजनेस इकोनॉमिक्स द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार 34 फीसद अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि अगला नंबर अमेरिका का ही है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ने लगी है।

आर्र्थिक, राजनयिक और रणनीतिक मुद्दों पर भारत और अमेरिका एक-दूसरे पर निर्भर हैं। अमेरिका हमारी सबसे बड़ी मंडी है। अमेरिका और भारत दोनों एक-दूसरे के उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने के अपने-अपने फैसलों पर पुनर्विचार कर रहे हैं, यह वक्त का तकाजा है।
– जी पार्थसारथी, पूर्व राजनयिक

अमेरिका और चीन के बीच कारोबार युद्ध से निर्यात बढ़ाने का मौका मिला है। भारत द्वारा अमेरिका और भारत द्वारा चीन को निर्यात बढ़ा है। लेकिन उनके कारोबार युद्ध से हमारी अर्थव्यस्था भी प्रभावित हुई है। – विवेक काटजू, पूर्व राजनयिक

जी-7 और भारत
पहली बार भारत को वर्ष 2003 में जी-7 सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था। तब भी यह सम्मेलन फ्रांस में ही आयोजित किया गया था। इस बार फ्रांस में इस सम्मेलन का 45वां संस्करण हुआ, जिसमें भारत को बुलाया गया। इस बैठक में डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच भारत और अमेरिका के बीच कारोबार के मसले पर मतभेदों को लेकर भी बात हुई है। पिछले साल अमेरिका ने भारत से निर्यात होने वाले इस्पात और एल्यूमिनियम पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका से आयात होने वाले 28 वस्तुओं पर शुल्क बढ़ा दिया था। इस संगठन में भारत पूर्ण सदस्य न होकर विशेष आमंत्रित सदस्य है।1970 के दशक में जब वैश्विक आर्थिक मंदी और तेल संकट बढ़ रहा था, तब फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति बैलेरी जिस्कॉर्ड डी एस्टेइंग ने जी-7 की अवधारणा रखी। 1975 में गठन हुआ।