बिकती हुई सांसें
लगने लगती हैं
बोझ

शहादत की सांसें
चीर देती हैं
दुश्मन का सीना

शहीद की सांसें
कभी भी
नहीं होतीं आखिरी
या अंतिम भी कभी नहीं
होती है चुनौती भरी
हर एक सांस
उसकी

जिनको
धरती और आकाश
तो क्या
समुद्र भी
करता है
झुक कर
सलाम!

वह बुलावा था तुम्हारा

उस दिशा से
आने वाली हवाएं
जब भी आती हैं
तुम्हारे घर से टकरा कर
मुझ तक आ कर
रुक जाती हैं

हवाओं में भरी धूल
अहसास करा जाती है
पल भर में
तुम्हारे स्पर्श का
सोंधा हो उठता है
मन

क्या पता था मुझे
वह बुलावा था तुम्हारा
जिसका मुझे
बरसों से इंतजार था।

बदरा

कई-कई रंग दिखाता
भीगने से पहले
और बाद भी
उड़ती हुई राख जैसा
काला कत्थई
मटमैला-सफेद
चलता चलता
रंग बदलता
बदरंग भी होता
इन रंग- बिरंगी
मशकों में
पानी लाता
छटा बिखेरता
बरसने के बहाने
इंद्रधनुष बनाता
सब की आंखों में।

मेरे हिस्से का आकाश

नहीं भटकूंगा
नहीं छोडंÞूगा
और न ही मरूंगा
अपने हिस्से का लिए बिना
आकाश
जो कहना है
कह दो अभी
है कोई शिकायत
अगर
कर दो पहले ही
आकाश सौंपते वक्त
नहीं सुनूंगा तुम्हारी
इससे पहले कि तुम
बेदखल कर दिए जाओ
मेरे हिस्से से
अपने हिस्से का
आकाश लिख दो
अपने लिए
अभी और इसी वक्त।