दीदी को अब एक ही धुन सवार है। पश्चिम बंगाल में येन केन प्रकारेण विदेशी निवेश कैसे आए? कोशिश तो सूबे का मुख्यमंत्री बनने के बाद से लगातार ही कर रही हैं। पर पिछले दो-तीन सालों में प्रयास पहले से गंभीर दिखे हैं। मसलन, कोलकाता में तो वैश्विक निवेश सम्मेलन आयोजित किए ही, खुद भी कई बार विदेश दौरे कर आर्इं। इन दौरों में उनकी, उनकी योजनाओं की और पश्चिम बंगाल तीनों की ही खूब सराहना भी हुई है। लेकिन कोई बड़ा विदेशी निवेशक फिर भी नहीं फटका। अब इसी मकसद से ममता बनर्जी एक बार फिर यूरोप का चक्कर लगाएंगी। अगले महीने पूरे सात दिन जर्मनी और फ्रांस में गुजारेंगी।
जाहिर है कि साथ में व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल तो रहेगा ही। इस बार विश्व बांग्ला ब्रांड को प्रमोट करने का इरादा है। शायद उसी से सूबे में निवेश आ जाए। मुख्यमंत्री बनने के बाद यह उनका सातवां विदेशी और यूरोप का चौथा दौरा होगा। इससे पहले दो बार जर्मनी और एक बार ब्रिटेन गई थीं। विदेश दौरे में वे जर्मनी और फ्रांस के उद्योगपतियों से तो गुफ्तगू करेंगी ही, वहां के औद्योगिक चैंबर के कार्यक्रम में भी शिरकत करेंगी। विपक्ष को उनकी इन गंभीर कोशिशों पर भी विश्वास नहीं।
वह तो प्रस्तावित दौरे को भी पहले की तरह जनता के धन की बर्बादी ही बता रहा है। इतना ही नहीं यह मांग और कर डाली कि मुख्यमंत्री अपने पिछले विदेश दौरों और उनके कारण राज्य में आने वाले विदेशी निवेश पर एक श्वेत पत्र जारी करें। रही ममता की बात तो अभी वे इस मांग को गंभीरता से ले ही नहीं रहीं।