इसके बाद वायुसेना के ताजा रणनीतिक मसविदे (डाक्ट्रिन) को लेकर बहस तेज हो गई है। ‘रोडमैप बियांड 2022’ नाम से जारी मसविदे में तकनीकी और सामरिक जरूरतों के मुताबिक खामियां दूर करने और वायु शक्ति को भारत के हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रमुख प्रहरी बनाए जाने की जरूरत बताई गई है। वैसे तो दुनिया भर की तमाम सैन्य ताकतें लंबे समय से अपनी सैन्य और राष्ट्रीय रणनीतियों में वायु शक्ति की अहमियत को स्वीकार करती आई हैं।

भारत के नीति नियंता भी यही मानते रहे हैं। लेकिन भारत में भूमि केंद्रित सुरक्षा दृष्टिकोण के कारण वायु शक्ति को केवल सहायक सेवा के तौर पर देखा जाता रहा है। अब इसे महाद्वीपीय और समुद्री क्षेत्र में किसी सैन्य बल की विशिष्ट कार्यकारी रणनीति का अभिन्न अंग बनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है।

कैसे तय होगा रास्ता

वायुसेना के संशोधित डाक्ट्रिन की भूमिका में वायुसेना के प्रमुख ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान वायुसेना एक आधुनिक वायु और अंतरिक्ष शक्ति के तौर पर विकसित हुई है, जो वायु और अंतरिक्ष में अपना दबदबा कायम करते हुए इन क्षेत्रों को नियंत्रित करने और इनका उपयोग करके भारत के राष्ट्रीय और सुरक्षा संबंधी लक्ष्य प्राप्त करने में पूरी तरह सक्षम है।’ वायुसेना प्रमुख का ये बयान देश की मौजूदा वायु शक्ति और भविष्य के लिहाज से तय की जा रही रणनीति की ओर इशारा करता है।

वायु और अंतरिक्ष में लगातार हो रहे विकास, सैन्य बलों की वायु क्षेत्र पर व्यापक और अभिन्न निर्भरता और भविष्य में देश की अंतरिक्ष आधारित और अंतरिक्ष संबंधित सेवाओं से जुड़ी संपत्तियों के लिए मजबूत सुरक्षा व्यवस्था की जरूरतों को भांपकर मसविदा तैयार किया गया है। तकनीक से हो रहे परिवर्तनों ने पहुंच, लचीलेपन और फÞुर्ती से आवाजाही, तुरंत प्रतिक्रिया और आक्रमण की घातकता और अलग अलग क्षेत्र की क्षमताओं का साझा इस्तेमाल की जरूरत बढ़ा दी है।

वायुसेना के मसविदे में नया अध्याय वायु रणनीति का है, जिसमें देश की संयुक्त सैन्य रणनीति के साथ वायुसेना के सैद्धांतिक और संरचनात्मक संवाद की व्याख्या की गई है और इसके साथ साथ युद्ध के संपूर्ण आयाम और जमीन व समुद्री रणनीति के साथ वायुसेना के तालमेल को बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। शांति काल में वायुसेना की जिम्मेदारी के तौर पर देश की संप्रभुता, दुश्मन को भयभीत रखने, वायु कूटनीति और राष्ट्र निर्माण को रेखांकित किया गया है। साथ ही, युद्ध और शांति के बीच की स्थिति में वायुसेना की भूमिका को भी परिभाषित किया गया है।

भू-राजनीतिक और क्षेत्रीय सुरक्षा का दबाव, किसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद और भारत की सीमा पर लगातार बने रहने वाले तनाव और अंदरूनी सुरक्षा की चुनौतियों को वायु एवं अंतरिक्ष शक्ति की तैनाती का आधार बनाया गया है, जिससे सूचना के क्षेत्र में दबदबा बनाने, अभियानों को आकार देने और बाहरी एवं अंदरूनी सुरक्षा के अभियान चलाए जा सके।

मुश्किलें और जवाब

अतीत में भारत ने युद्धों में अपनी वायुशक्ति का सीमित प्रयोग किया। केवल 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारत ने अपनी वायुशक्ति का खुलकर इस्तेमाल किया था। भारत के दो सबसे करीबी पड़ोसी हैं चीन और पाकिस्तान। दोनों ने अपनी वायु सेनाओं को भविष्य में होने वाले किसी भी युद्ध में अहम भूमिका के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है।

ताजा उदाहरण रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे मौजूदा युद्ध का है, जहां सेना के तीनों अंगों की ताकत का एकजुटता से उपयोग करने के लिए वायु क्षेत्र पर नियंत्रण की अहम सैद्धांतिक अनिवार्यता पर भी जोर दिया जा रहा है। भारत अपनी सुरक्षा के संदर्भ में अनूठे बहुआयामी और बहुक्षेत्रीय परिस्थितियों में वायु शक्ति के इस्तेमाल के पुराने, वर्तमान एवं भविष्य के निर्णायक आयामों पर विचार कर रहा है।

मसविदे में ऐसी युद्धकालीन हवाई रणनीति पर जोर है, जिसमें सेना के अन्य अंगों के साथ तालमेल के अलावा स्वतंत्र रूप से अहम सामरिक सैन्य अभियान चलाने पर जोर है। दोनों रणनीतियों में फर्क को परिभाषित किया जा रहा है। डाक्ट्रिन में इस बात पर विस्तार से चर्चा की गई है कि युद्ध क्षेत्र में पारदर्शिता की क्षमता, युद्ध की नेटवर्किंग, साइबर और सूचना युद्ध, इलेक्ट्रानिक युद्ध, तकनीकी लाजिस्टिक, प्रशासन और मानव संसाधनों का प्रबंधन एवं प्रशिक्षण- सब मिलकर भविष्य के संघर्षों के व्यापक युद्ध क्षेत्रों में बहुआयामी जरूरतों को ध्यान में रखना होगा।

जैविक युद्धाग्र के इस्तेमाल की आशंका

ऐसे गुब्बारों से जैविक या रसायनिक युद्धाग्र के इस्तेमाल की आशंका होती है। इस कारण अमेरिका ने इसे मार गिराने में सावधानी बरती। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया 28 जनवरी को अमेरिका के हवाई क्षेत्र में एलुटिएल द्वीप के पास आसमान में चीन का ये बलून देखा गया था। यह पहले अलास्का और कनाडा से होते हुए दोबारा इडाहो (अमेरिकी हवाई क्षेत्र) में घुसा।

गुब्बारा जब समंदर के ऊपर पहुंचा तो, इसे नष्ट करने के लिए वर्जीनिया के लेंग्ले एअरफोर्स अड्डे से एफ-22 रैप्टर लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी। इस विमान से एआइएम-9एक्स साइडविंडर मिसाइल दागी गई। एफ-22 विमान ने 58 हजार की फीट की ऊंचाई से 60 से 65 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे गुब्बारे पर निशाना साधा। मिसाइल लगने के बाद यह गुब्बारा तट से छह मील दूर 47 फीट गहरे समुद्र में गिर गया।

अंतरिक्ष की प्रासंगिकता

भारतीय वायुसेना को अपने भविष्य की क्षमताओं में अंतरिक्ष की प्रासंगिकता बखूबी समझ में आ रही है। इस कारण सैन्य-असैन्य औद्योगिक क्षमताओं के क्षेत्र में शोध और विकास के बीच संबंध की अहमियत पर जोर है। अंतरिक्ष को लेकर वायुसेना ने संतुलित और प्रौढ़ता भरा नजरिया सामने रखा है। वायुसेना की भविष्य की भूमिका को राष्ट्रीय सुरक्षा के सिद्धांत से इतर भी परिभाषित किया गया है। इसमें राष्ट्र निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने, राष्ट्रीय नीति और विदेश नीति के संचालन में सहायता करने, हिंद महासागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता और अन्य व्यापक राष्ट्रीय हितों के लक्ष्य साधने जैसी जिम्मेदारियां भी शामिल हैं।

वायुसेना को तकनीक से मिलने वाली ताकत और इसके द्वारा तेजी से रणनीतिक सिद्धांतों और रणनीतियों को अपनाने की क्षमता को विस्तार देने के लिए खास स्वदेशी तकनीकों के विकास पर जोर दिया गया है।उपग्रह दूर से परिक्रमा करते हैं, इसलिए आम तौर पर धुंधली फोटो आती है।

क्या कहते हैं जानकार

वायु-अंतरिक्ष (एअरोस्पेस) सभी तरह के (जमीन, हवा और समुद्र) संचालनों के लिए इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है कि सेनाएं और नौसेनाएं अपने घातक हथियारों और पनडुब्बियों के साथ ही वायुसेना की ताकत भी हासिल करना चाहती हैं। इस वक्त भारत के सुरक्षा तंत्र में भविष्य की राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा की रणनीतियां बनाने के प्रयास चल रहे हैं।

  • एअर मार्शल (सेवानिवृत्त) अनिल चोपड़ा, रक्षा विशेषज्ञ

यह समझने की आवश्यकता है कि भारतीय वायुसेना के सामने 2.5-3 गुना बड़ी चीनी वायुसेना की चुनौती है। उसके पास दो हजा से अधिक युद्धक विमान हैं, जबकि भारतीय वायुसेना के पास सात सौ से ज्यादा। दूसरी ओर पाकिस्तान है, जिसके पास महज 450 लड़ाकू विमान हैं, लेकिन उसने पिछले सभी युद्धों में काफी चुनौती दी है।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) हरभजन सिंह, रक्षा विशेषज्ञ