धर्मों की दीवारें तोड़ते हुए गंगा-जमुनी तहजीब ब्रज में अब भी अपनी जड़ें जमाए है। कृष्ण की धरती पर हिंदुओं के साथ अन्य धर्मों को मानने वाले भी यहां के कृष्णमय धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। हिंदू-मुसलिम एकता और भाईचारे का ही परिणाम है कि जिस मथुरा को भगवान कृष्ण की जन्मस्थली के तौर पर जाना जाता है उनके परिधान और शृंगार सामग्री के निर्माण का काम एक दूसरे के बिना पूरा नहीं होता है। वर्षों से इस काम में जुटे हिंदू और मुसलिम समुदाय के लोगों के आपसी सामंजस्य का ही नतीजा है कि यहां तैयार होने वाली ठाकुरजी की पोशाकें और शृंगार की वस्तुओं की मांग देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा विदेशों में भी बढ़ती जा रही है। इन कारीगरों की तरफ से तैयार किए गए नई डिजाइन की पोशाकों को विदेशों में भी खूब सराहा जा रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म एवं क्रीड़ास्थली के रूप में विख्यात ब्रज धाम अब राधा-कृष्ण की पोशाक एवं शृंगार सामग्री के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। जैसे-जैसे जन्माष्टमी का पर्व नजदीक आ रहा है, देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी विभिन्न डिजायनों और विविधिता भरी की पोशाकों के लिए बड़ी संख्या में आर्डर स्थानीय दुकानदारों को मिल रहे हैं। दुकानदार अब इन आर्डर को पूरा करने के लिए इस काम में महारत हासिल स्थानीय मुसलिम कारीगरों की भी पूरी मदद ले रहे हैं। ठाकुरजी की पोशाकें एवं मुकुट पर किए जाने वाले जरदोजी के काम में यहां के मुसलिम कारीगरों को महारत है। सितारे व रत्नजड़ित पोशाकें बनने के लिए वृंदावन के अलावा मथुरा में भेजी जाती हैं। शहर के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों कारखाने घरों से ही संचालित हैं।कारीगर इन पोशाकों को आकर्षक ‘लुक’ देते है। कपड़े पर एम्ब्रोडिंग करने के बाद सिलाई के लिए भेजा जाता है।

एक तरफ जहां यह कारोबार दिनोंदिन बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर इसमें जुटे कारीगरों की हालत में पहले से कोई ज्यादा सुधार नहीं आया है। करीब 30 वर्ष से अधिक समय से इसी कारोबार को कर रहे मुसलिम कारीगर अकरम बताते हैं कि जरदोजी के काम से जुड़े कारीगरों की माली हालत सुधारने और उनकी सेहत के लिए कोई पहल नहीं की गई है। जरदोजी का काम बारीक होने के कारण कारीगरों को नजर कमजोर होने की शिकायत हो जाती है। चश्मे लगने के बाद भी सुई में धागा डालना भी मुश्किल होता है। इस काम से जुड़े दूसरे कारीगरों जाहिद, युसूफ, चाँद, बबलू, इकरार, अवरार, शकील, इरफान, दिलशाद व रियाज ने बताया कि करीब आठ घंटे काम करने के बाद 400 रुपए की दिहाड़ी मिलती है जबकि ओवरटाइम करने पर प्रति घंटे 50-100 रुपए की मजदूरी मिलती है। उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में मुसलिम समुदाय के लोग इस काम से जुड़े हैं। मथुरा शहर में यह काम 100 से ज्यादा जगहों पर चल रहा है। इलाके में कई छोटे-बड़े हजारों कारखाने संचालित हैं जहां पोशाक सिलाई का काम होता है। बड़ी संख्या में हिंदू परिवार भी इस व्यवसाय से जुड़े हैं। घरों में महिलाएं भी अपने बचे समय में पोशाक सिलाई कर अतिरिक्त आमदनी करती हैं।

वृंदावन स्थित गौरा नगर कालोनी एवं निकट के कई गांवों में घर-घर में पोशाक उद्योग लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है। एक कारखाने पर सिलाई का काम करने वाले बिहारी, रिंकू, राजेश, श्याम सिंह, दीपक, राजू एवं धर्मेन्द्र ने बताया कि उन्हें आठ घंटे काम की मजदूरी 300 रुपए से लेकर 500 रुपए तक मिलती है जबकि ओवरटाइम का अलग से चार्ज होता है। पोशाक उद्योग से जुड़े विष्णु शर्मा ने बताया कि वृंदावन में इस्कॉन के भक्तों के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु आते हैं और विभिन्न मंदिरों में दशर्नों के दौरान ठाकुरजी के आकर्षक परिधान और शृंगार को देखने के बाद यहां भी ऐसे ही ठाकुरजी के शृंगार के लिए पोशाक एवं मुकुट आदि तैयार करने का आर्डर देते हैं। ठाकुरजी के शृंगार में विदेशी भक्त किसी तरह की कंजूसी नहीं बरतते और नई-नई डिजाइन और वैरायटी की पोशाक खरीदने में रुचि दिखाते हैं। वहीं, पोशाक विक्रेता सुशील शर्मा ने बताया कि विदेशों में भी अब वृंदावन में तैयार होने वाली पोशाक और मुकुट के अलावा शृंगार सामग्री की मांग बढ़ी है। जन्माष्टमी के कारण बड़ी संख्या में आर्डर मिल चुके हैं। दिन-रात कारीगरों काम कर रहे हैं। अभी भी जन्माष्टमी के लिए आर्डर आने का सिलसिला जारी है। ये सभी काम हर हाल में जन्माष्टमी से पूर्व पूरा कर उन्हें सौंपने हैं।

कारीगर की मेहनत, बिचौलियों का बोलबाला

वृंदावन के प्रमुख बाजारों और मंदिरों के निकट स्थित दुकानों पर ठाकुरजी के श्री विग्रह एवं पोशाक व मुकुट के अलावा अन्य शृंगार वस्तुएं बेचने वाले व्यवसाई पोशाक और मुकुट की कीमत उसकी चमक-दमक के अनुसार तय करते हैं जबकि कारीगर को एक निश्चित रकम ही बतौर मजदूरी दी जाती है जिसके चलते ये बिचौलिए मोटी कमाई कर फल-फूल रहे हैं। बाजार में शोहरत पा चुके एवं इस व्यवसाय में पकड़ बना चुके ये बिचौलिए अमेरिका, यूके, आॅस्ट्रेलिया, रूस व मेक्सिको सहित तमाम देशों से आर्डर लेने के साथ हीं यहां पोशाक व शृंगार के सामान की आपूर्ति करते हैं। यहां दशर्नों को आने वाले श्रद्धालु भी अपने घरों में नित्य पूजे जाने वाले ठाकुरजी के लिए पोशाक व मुकुट एवं शृंगार प्रसाधन खरीदने के लिए इन्हीं प्रतिष्ठित शोरूम का रुख करते हैं और पसंद आने पर दुकानदार को मुंहमांगी कीमत भी अदा करते हैं।