5 मई बहुत ही विशेष है। इस दिन काल मार्क्स का जन्म हुआ था और दुनियाभर में इस तारीख को उनकी 200वीं जयंती मनाई गई। जिन्होंने 20वीं सदी का इतिहास पढ़ा होगा, वे इस बात से सहमत होंगे कि मार्क्स की क्रांतिकारी राजनीति की विरासत मुश्किलों भरी रही है। समाज में एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग मार्क्स के ही विचारों से प्रेरित है। साम्राज्यवाद, आजादी और सामूहिक हत्याओं से उनके सिद्धांत जुड़ने के बाद उन्हें विभाजनकारी चेहरे के रूप में देखा जाने लगा। हालांकि मार्क्स का एक दूसरा चेहरा है एक भावनात्मक मानव का। दुनिया की बेहतरी में उनके विचारों का अहम योगदान रहा है। जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने 19वीं शताब्दी में काफी कुछ लिखा, लेकिन आज भी इसमें कोई विवाद नहीं कि उनकी दो कृतियां ‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ और ‘दास कैपिटल’ ने एक समय दुनिया के कई देशों पर आर्थिक और राजनीतिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था। रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था। बीसवीं शताब्दी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है। हालांकि, जैसा मार्क्स और एंगेल्स ने लिखा था, उस तरह का साम्यवाद नहीं आ पाया। साम्यवाद ढहने के बावजूद मार्क्स के कुछ विचार हैं जो आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं-

मंदी का आना
मार्क्स का मानना था कि बाजार को चलाने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती। उनके मुताबिक मंदी का बार-बार आना तय है। इसका कारण पूंजीवाद में ही निहित है। अलब्रेख्त के अनुसार, मार्क्स का विचार था कि पूंजीवाद के पूरी तरह खत्म होने तक ऐसा होता रहेगा।

भूमंडलीकरण और गैरबराबरी
मार्क्स के जीवनी लेखक फ्रांसिस व्हीन का कहना है कि पूंजीवाद अपनी कब्र खुद खोदता है। मार्क्स की यह बात गलत है, बल्कि इससे उलट ही हुआ। साम्यवाद खत्म हुआ तो पूंजीवाद सर्वव्यापी हुआ है। मार्क्सवादी विचारक जैक्स रैंसियर का कहना है कि, चीनी क्रांति के कारण आजाद हुए शोषित और गरीब मजदूरों को आत्महत्या की कगार पर ला खड़ा किया गया है ताकि पश्चिम सुख सुविधा में रह सके, जबकि चीन के पैसे से अमेरिका जिंदा है। भले ही मार्क्स अपनी भविष्यवाणी में विफल हो गए हों पर पूंजीवाद के वैश्वीकरण की आलोचना में उन्होंने कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में तर्क दिया कि पूंजीवाद का वैश्वीकरण ही अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बनेगा और 20वीं और 21वीं शताब्दी के वित्तीय संकटों ने ऐसा ही दिखाया है।

बेहिसाब मुनाफा और एकाधिकार
मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है-अतिरिक्त मूल्य। यह वह मूल्य है जो एक मजदूर अपनी मजदूरी के अलावा पैदा करता है। मार्क्स के अनुसार दिक्कत यह है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की कीमत पर अपने मुनाफे को बढ़ाने में जुट जाते हैं। इसके कारण बेरोजगारी बढ़ती है और मजदूरी में गिरावट आती जाती है।

राजनीतिक कार्यक्रम
कम्युनिस्ट घोषणापत्र और अपने अन्य लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष की बात की है और बताया कि किस तरह संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लेगा। अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति दास कैपिटल में मार्क्स ने अपने इन विचारों को बहुत तथ्यात्मक और वैज्ञानिक तरीके से रखा है। 20वीं सदी में श्रमिकों ने रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निजी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया। जर्मन इतिहासकार अलब्रेख्त रिसल कहते हैं कि भूमंडलीकरण के पहले आलोचक मार्क्स थे। उन्होंने विश्व में बढ़ती असमानता को लेकर चेतावनी दी थी।