भ्रूण परीक्षण पर कानूनन प्रतिबंध है, मगर अब भी बहुत सारे लोग वेबसाइटों के जरिए यह कारोबार चला रहे हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू जैसे सर्च इंजनों से कहा है कि छत्तीस घंटे के भीतर वे भ्रूण परीक्षण संबंधी विज्ञापनों, सूचनाओं आदि को हटा दें। अदालत ने इस पर नजर रखने के लिए एक नोडल एजेंसी गठित करने का भी आदेश दिया है। सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियां ऐसे विज्ञापनों और सूचनाओं को हटाने के बाद नोडल एजेंसी को इत्तला करेंगी। कुछ साल पहले तक प्रसव-पूर्व लिंग परीक्षण का धंधा आम था। जगह-जगह परीक्षण केंद्र बड़ी-बड़ी तख्तियां लगा कर भ्रूण परीक्षण किया करते थे। इसी तरह बहुत सारे अस्पतालों में अनचाहे गर्भ से मुक्ति की तख्तियां लटकी रहती थीं। दरअसल, समाज में लड़का और लड़की के बीच भेदभावपूर्ण मानसिकता के चलते इस कारोबार को बढ़ावा मिल रहा था। प्रसव-पूर्व परीक्षण से पता चलता था कि शिशु कन्या है तो लोग गर्भपात करा लिया करते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे राज्यों में लड़के और लड़कियों का अनुपात लगातार बिगड़ता गया। हरियाणा की स्थिति इस मामले में सबसे ज्यादा चिंताजनक है।
इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के मकसद से भ्रूण परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मगर तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद चोरी-छिपे प्रसव-पूर्व लिंग परीक्षण पर अंकुश लगाना मुश्किल बना हुआ है। जो परीक्षण केंद्र खुलेआम ऐसा करते थे, वे अब गर्भावस्था के दौरान होने वाली नियमित जांच के बहाने करने लगे हैं। कई परीक्षण केंद्र और चिकित्सक इंटरनेट पर सूचनाएं जारी कर भ्रूण परीक्षण के लिए लोगों को आकर्षित करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने के मकसद से ताजा आदेश दिया है। हालांकि सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों का कहना है कि वे कानून को ध्यान में रखते हुए ही भ्रूण परीक्षण संबंधी जानकारियां उपलब्ध कराती हैं। इसके साथ ही उनका तर्क है कि वेबसाइटों से भ्रूण परीक्षण संबंधी सभी तरह की जानकारियां हटा देने से सूचनाधिकार कानून का उल्लंघन भी हो सकता है।
दरअसल, सर्च इंजनों, यानी जिनके जरिए पता किया जाता है कि किस विषय की जानकारी किस वेबसाइट पर मिलेगी, से भ्रूण परीक्षण संबंधी सूचनाओं और विज्ञापनों को हटाने का प्रयास किया जाएगा तो उससे चिकित्सीय महत्त्व की सूचनाओं को तलाशने में भी कठिनाई आ सकती है। सर्च इंचन चूंकि कुछ शब्दों पर रोक लगाएंगे और जैसा कि इन्हें चलाने वाली कंपनियां कह रही हैं कि उन्होंने ऐसे कुछ शब्दों को चिह्नित कर लिया है, इससे चिकित्सीय उपयोग की जानकारियों को तलाशने में परेशानी आ सकती है। इसलिए अदालत इस पहलू पर फरवरी में विचार करेगी कि ऐसा करने से सूचनाधिकार कानून का उल्लंघन होगा या नहीं। मगर यह छिपी बात नहीं है कि भ्रूण परीक्षण करने वाले केंद्र लोगों में लड़के और लड़की के बीच भेदभाव की मानसिकता को भुनाने से बाज नहीं आ रहे। इसलिए किसी तरह का बहाना तलाशने के बजाय सर्च इंजनों को इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है। जिस देश में लड़के और लड़कियों का अनुपात काफी चिंताजनक रूप से बिगड़ पहुंच चुका हो, गर्भपात के चलते महिलाओं की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हो, यहां तक कि गर्भपात के दौरान बहुत सारी महिलाओं की अकाल मृत्यु हो जाती हो, वहां ऐसे कारोबार को किसी भी रूप में नहीं चलने देना चाहिए।
संपादकीयः परीक्षण के ठिकाने
भ्रूण परीक्षण पर कानूनन प्रतिबंध है, मगर अब भी बहुत सारे लोग वेबसाइटों के जरिए यह कारोबार चला रहे हैं।
Written by जनसत्ता

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First published on: 18-11-2016 at 02:23 IST