दशनामी परंपरा के सात अखाड़े तपोनिधि श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा ,तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, श्री पंच अटल अखाड़ा, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा और श्री पंचदशनाम अग्नि अखाड़ा हैं। इनमें छह अखाड़े दस नाम नागा संन्यासी है जबकि सातवां श्री पंच दशनाम अग्नि अखाड़ा नागा संन्यासियों का नहीं बल्कि ब्रह्मचारी परंपरा का निर्वहन करता है।
आज से सैकड़ों साल पहले दशनामी संन्यास परंपरा के अखाड़ों को आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों शृंगेरी मठ, जोशीमठ, गोवर्धन मठ तथा शारदामठ के शंकराचार्य संन्यास दीक्षा दिया करते थे। परंतु कुछ मठों में मठ के उत्तराधिकारी को लेकर विवाद हो गया।
इसके बाद सातों दशनाम संन्यासी अखाड़ों ने अपने-अपने अलग आचार्य महामंडलेश्वर के पदों को सृजित करने का करने का निर्णय लिया और इसी के साथ दशनाम संन्यासी अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर की परंपरा शुरू हुई।
आचार्य महामंडलेश्वर की नियुक्ति दशनामी संन्यासी परंपरा के अखाड़ों के रमता पंचों और श्री महंतों को होता है और अखाड़ों के रमता पंच और श्री महंत आचार्य महामंडलेश्वर को पद से हटाने का अधिकार भी रखते हैं। भले ही आचार्य महामंडलेश्वर का पद अखाड़ों में सर्वोपरि माना जाता है परंतु यह पद सीमित अधिकारों तक ही है।
आचार्य महामंडलेश्वर संन्यास दीक्षा देने तक ही सीमित है और आचार्य महामंडलेश्वर को अखाड़ों की प्रशासनिक व्यवस्था में दखलदांजी करने का कोई अधिकार नहीं है।
अखाड़ों के श्री महंतों को ही अखाड़ों की प्रशासनिक व्यवस्था करने का अधिकार है। अखाड़ों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्ति अखाड़ों के श्री महंतों और रमता पंचों में समाहित होती है और आचार्य महामंडलेश्वर का पद सर्वोच्च होते हुए भी केवल सुशोभित मात्र है।
दशनामी सन्यासी परंपरा के अखाड़ों के सरस्वती, गिरि, पुरी, वन, भारती, तीर्थ, सागर,अरण्य, पर्वत वर्ग होते हैं और जो नागा संन्यासी गृहस्थ में प्रवेश कर जाते हैं वे गोस्वामी माने जाते हैं। इन दशनामी गोस्वामियों को आदि जगतगुरु शंकराचार्य का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी माना जाता है।
श्री निरंजनी पंचायती अखाड़ा के सचिव महंत रवींद्र पुरी महाराज का कहना है कि आचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलेश्वर पद पर नियुक्त करने और उन्हें हटाने का अधिकार अखाड़ों के श्री महंतों और रमता पंचों को है जो चारों वेदों और उपनिषदों का का प्रकांड विद्वान होगा वही आचार्य महामंडलेश्वर पद पर सुशोभित होता है। आचार्य महामंडलेश्वर संन्यास दीक्षा प्रदान करते हैं।
संन्यास लेने वाले पात्र को अपना विजयाहोम संस्कार यानी अपनी तीन पीढ़ियों का श्राद्ध और अपना स्वयं का श्राद्ध करना होता है और शिखा सूत्र का त्याग करना पड़ता है और इससे इस तरह से संन्यासी भूत यानि अवशेष का रूप होता है।
आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा दक्षिण में शृंगेरी मठ उत्तर में जोशीमठ, पूर्व में गोवर्धन मठ तथा पश्चिम में शारदामठ की स्थापना की गई थी इन चारों मठों के अलग-अलग आचार्य आचार्य हस्तामलक, त्रोटकाचार्य, पद्मपादाचार्य और स्वरूपाचार्य माने जाते हैं और इनकी विभिन्न परंपराओं के ही साथ पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि पर्वत, अरण्य, तीर्थ, आश्रम जैसे दशनामों के रूप में जुड़े होते हैं।
इन चारों में से शृंगेरी मठ का क्षेत्र दक्षिण भारत के आंध्र, कर्नाटक, केरल राज्यों तक फैला हुआ है। इसका तीर्थस्थान रामेश्वरम है और इसका वेद यजुर्वेद है। महावाक्य अहं ब्रह्मास्मि है, गोत्र भूरिवर है और इसके ब्रह्मचारी चैतन्य होते हैं। दूसरी ओर उत्तर दिशा में हिमालय क्षेत्र में स्थित बदरीधाम में जोशी मठ क्षेत्र उत्तर के कुरु, पांचाल, कश्मीर, कंबोज और तिब्बत का क्षेत्र शामिल है।
इसका तीर्थ स्थल बदरीनाथ धाम है और इनका वेद अथर्ववेद है तथा महावाक्य अयमात्मा ब्रह्म है जबकि गोत्र आनंदवर है इस मठ के ब्रह्मचारी आनंद कहलाते हैं। भारत की पूर्व दिशा की और गोवर्धनमठ का क्षेत्र अंग, वंग, कलिंग, मगध, उत्कल तक फैला हुआ है। इस मठ का तीर्थ पुरी है।
जबकि इसका वेद ऋग्वेद है और महावाक्य प्रज्ञान ब्रह्म है। गोत्र भोगवर है तथा इस मठ के ब्रह्मचारी प्रकाश नाम से संबोधित किए जाते हैं। चौथा और आखिरी मठ पश्चिम दिशा में शारदामठ है जिसका क्षेत्र सिंधु, सौवीर, सौराष्ट्र तथा महाराष्ट्र तक है। इसका वेद सामवेद है।
महावाक्य तत्वमसि है जबकि गोत्र कीटवर है तथा इसके ब्रह्मचारी स्वरूप कहलाए जाते हैं। दशनामी संन्यासी परंपरा के अखाड़ों की 52 मढ़ियां होती हैं जिनमें से 27 गिरियों की, 16 पुरियों की, 4 भारतीयों की, 4 वनों की तथा 1 लामा की कही जाती है जो तिब्बत में स्थित है । बाकी सभी भारत में स्थापित है। ये 52 मढ़ियां देश में स्थित विभिन्न 52 शक्तिपीठों की परंपरा के अनुसार ही स्थापित हैं और तीर्थों, आश्रमों, सरस्वतियों तथा भारतीयों में से आधे साढ़े तीन दंडी और शेष छह गोसाई कहे जाते हैं।