नई दिल्ली रेलवे स्टेशन परिसर में व्यवस्थागत लापरवाही की कीमत जिस तरह एक महिला को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, उससे एक बार फिर यही साबित होता है कि सरकारी महकमों को होश तभी आता है जब कोई बड़ा हादसा हो जाए। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि देश की राजधानी होने के नाते नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को व्यवस्था के स्तर पर हर तरह से चाक-चौबंद बताया जाता रहता है, लेकिन वहीं परिसर में खड़ा कोई बिजली का खंभा जानलेवा साबित हो जाता है।
रविवार की सुबह रेलगाड़ी से चंडीगढ़ जाने के लिए पहुंचे एक परिवार को स्टेशन परिसर में जमा बारिश के पानी को पार करके आगे बढ़ना था। परिवार में एक स्कूल शिक्षिका ने जब पानी में फिसल कर गिरने से बचने के लिए पास के एक खंभे का सहारा लेने की कोशिश की, तो उसमें प्रवाहित हो रहे करंट की वजह से उनकी जान ही चली गई।
यह प्रथम दृष्टया एक हादसा लग सकता है, लेकिन साफ है कि परिसर में पानी जमा होने से लेकर खंभे में करंट प्रवाहित होना सिर्फ दायित्वों में लापरवाही और व्यवस्थागत बदहाली का नतीजा है, जिसकी वजह से एक महिला को जान गंवानी पड़ी।
सवाल है कि बिजली के खंभे में करंट प्रवाहित होने की वजह और क्या हो सकती है, सिवाय इसके कि उसकी देखरेख और निगरानी करने वाले संबंधित महकमे या उसकी ओर से ड्यूटी पर तैनात किसी व्यक्ति ने अपना दायित्व सही तरीके से पूरा करने में घनघोर लापरवाही बरती? स्टेशन परिसर में बने पार्किंग क्षेत्र को किस तरह बनाया गया है कि वहां बारिश का पानी इस कदर भर गया था कि लोगों के लिए आना-जाना भी खतरनाक हो गया था।
गौरतलब है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन एक भीड़भाड़ वाली जगह है और वहां अमूमन हर वक्त ही अपने गंतव्य तक जाने वाले लोगों की खासी तादाद मौजूद रहती है। दूसरी ओर, व्यवस्था और सुविधाओं की कसौटी पर इस स्टेशन को हर स्तर पर बेहतर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। लेकिन यह कैसी व्यवस्था है कि वहां ट्रेन से अपने किसी गंतव्य की ओर जाने के लिए पहुंचा कोई व्यक्ति जान गंवा बैठता है? क्या यह साफ तौर पर लापरवाही से हुई मौत का मामला नहीं है? इसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी?
यों व्यवस्थागत कोताही का यह कोई अकेला मामला नहीं है। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिनमें यह बताया जाता है कि सड़क किनारे किसी बिजली के खंभे में प्रवाहित हो रहे करंट से अनजान कोई व्यक्ति धोखे से उसकी चपेट में आ जाता है और उसकी मौत हो जाती है। इसी तरह, मुख्य रास्ते के बीच या किनारे मैनहोल या फिर खुले नाले किसी की मौत को न्योता दे रहे होते हैं, जिनमें गिर कर नाहक ही किसी की जान चली जाती है।
ऐसे मामलों को आमतौर पर हादसा मान लिया जाता है और इसके लिए शायद ही किसी की जिम्मेदारी तय की जाती है। जबकि ऐसी घटनाएं सीधे-सीधे संबंधित महकमों के दायित्वों के निर्वहन में बरती गई घनघोर लापरवाही का नतीजा होती हैं और इसके लिए पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए। आम रास्तों या लोगों की आवाजाही वाले इलाकों में नागरिक सुविधाएं मुहैया कराने के साथ-साथ उनके रखरखाव के लिए एक पुख्ता तंत्र होता है।
लेकिन आमतौर पर ये कागजों में ही शोभा पाते रहते हैं और इसका खमियाजा आम लोगों को उठाना पड़ता है। जरूरत इस बात की है कि ऐसी हर घटना के बाद जिम्मेदारी तय की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में हादसे के नाम पर ऐसे मामलों को पूरी तरह रोका जा सके।