पंजाब के मोहाली स्थित निजी चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में कई छात्राओं का आपत्तिजनक वीडियो बनाने और उसे अन्य लोगों को भेजने की जो घटना सामने आई है, वह कई स्तर पर दुखी और हैरान करने वाली है। प्रथम दृष्टया यह ऐसा करने के नतीजों की फिक्र किए बिना सिर्फ बेहद हल्केपन की वजह से की गई खुराफात लगती है, लेकिन किसी भी स्थिति में की गई ऐसी हरकत पीड़ित लड़कियों के सम्मान और यहां तक कि उनकी जिंदगी से भी खिलवाड़ है।
अब तक जैसी खबरें आई हैं, उस संदर्भ में यह समझना मुश्किल है कि वहां पढ़ने वाली एक लड़की ने ही कई अन्य लड़कियों के नहाने के क्रम में चुपके से वीडियो बनाया तो उसके पीछे उसकी कौन-सी मंशा काम कर रही थी। अगर उसने अपने किसी दोस्त के कहने पर ऐसा किया तो उसका अपना विवेक क्या कर रहा था! विडंबना यह है कि इस घटना के उजागर होने के बाद जहां समूचे विश्वविद्यालय परिसर में सभी विद्यार्थी आक्रोश से भर गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे, वहीं दबाव और तनाव की वजह से कई छात्राओं की हालत बिगड़ने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर सरकार तक ने मामले को हल्का बना कर पेश करने की कोशिश की।
विचित्र यह है कि एक समांतर वीडियो में आरोपी छात्रा के अपनी गलती स्वीकार करने की बात सामने आने के बावजूद प्रशासन की ओर से यह कहा गया कि घटना जैसी बताई जा रही है, वैसी नहीं है। जबकि दबाव बढ़ने पर पुलिस ने आरोपी लड़की का मोबाइल और अन्य उपकरण जब्त कर फोरेंसिक जांच के लिए भेजा तो इसके पीछे कुछ न कुछ आधार तो होगा? इसके अलावा, इस मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर अदालत में भी पेश किया गया, जहां से उन्हें सात दिन के रिमांड पर भेजा गया।
अगर इसके पीछे कोई और व्यक्ति या समूह है तो उसे भी कानून के कठघरे में लाया जाना चाहिए। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की यह मांग होगी कि अगर ये आरोप साबित होते हैं तो कानून के मुताबिक दोषियों को सख्त सजा मिले। लेकिन सवाल यह भी है कि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए जो छात्रावास बनाए गए हैं, उसमें नहाने की वह कैसी व्यवस्था है कि किसी छात्रा या अन्य व्यक्ति को चुपके से वीडियो बना लेने का मौका मिल जाता है?
अगर इस तरह की असुरक्षित और लापरवाही भरी परिस्थिति में छात्राओं को रहना पड़ता है तो इसकी जिम्मेदारी किस पर आती है? इस तरह की व्यवस्था से जुड़े प्रश्नों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासतौर पर जब ऐसी घटना होने की खबर आ चुकी है। यह छिपा नहीं है कि हमारे सामाजिक परिवेश में आजकल बहुत सारे लोगों के हाथ में कैमरे से लैस स्मार्टफोन तो आ गए हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल और इसके जोखिम को लेकर बहुत कम लोग जागरूक हैं। फिर युवाओं के भीतर उम्र या अन्य वजहों से जो मानसिक-शारीरिक उथल-पुथल होती है, उससे संतुलित तरीके से निपटने और खुद को दिमागी रूप से स्वस्थ और संवेदनशील बनाए रखने में कई आधुनिक तकनीक बाधा बन रही है।
अगर ऐसी प्रवृत्तियां कभी किसी अपराध के रूप में सामने आती हैं तो निश्चित रूप से कानूनी तरीके से निपटना एक प्राथमिक उपाय होगा, लेकिन इसके दीर्घकालिक निदान के लिए इन आधुनिक तकनीकों या संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर विवेक और संवेदना का खयाल रखने के साथ-साथ सामाजिक प्रशिक्षण भी जरूरी है। फिलहाल उस विश्वविद्यालय परिसर में विद्यार्थी, खासतौर पर छात्राएं और उनके अभिभावक परेशान हैं तो उनकी स्थिति समझी जा सकती है। जरूरत इस बात की है कि घटना पर पर्दा डालने की कोशिश के बजाय पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन स्थिति साफ करे।