इसका मकसद युवाओं में मानवीय मूल्यों और पेशेवर आचार-व्यवहार पर पाठ्यक्रम तैयार करने, केंद्र स्थापित करने और इसके लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती करने की योजना है। यह उसी तरह है जैसे स्कूलों में बच्चों को अनिवार्य रूप से नैतिक शिक्षा दी जाती है।
इस दौर में जिस तरह युवाओं में नैतिक मूल्यों का ह्रास देखा और माना जा रहा है कि उन्हें नैतिक मूल्यों और पेशेवर आचार-व्यवहार की ठीक से शिक्षा न दिए जाने की वजह से उनमें धन लोलुपता, भ्रष्टाचार, बेईमानी, अनैतिक जीवन जीने की आदतें विकसित हो रही हैं, उसमें मूल्य शिक्षा योजना का सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद की जा रही है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भौतिकतावादी जीवन जीने की होड़ ने युवाओं को पारंपरिक भारतीय मूल्यों से विमुख कर दिया है। तड़क-भड़क और दिखावे की जिंदगी जीना उन्हें पसंद आता है, दूसरों के प्रति सहानुभूति, परोपकार आदि के भाव कमजोर पड़ते गए हैं। मगर मूल्य शिक्षा की योजना इसमें किस हद तक प्रभावी साबित होगी, ठीक-ठीक दावा करना मुश्किल है।
कोई भी समाज तब तक उन्नत नहीं माना जा सकता, जब तक कि वह मानवीय मूल्यों की रक्षा नहीं कर पाता। यह ठीक है कि बदलती स्थितियों के अनुसार समाज खुद अपने मूल्यों में बदलाव कर लिया करता है, नए मूल्यों को आत्मसात कर लेता है, मगर बुनियादी मानवीय मूल्यों में बदलाव की बहुत गुंजाइश नहीं रहती।
कोई समाज अपने यहां भ्रष्टाचार, हिंसा, असहिष्णुता, बेईमानी, दूसरों का हक छीन कर समृद्धि हासिल करना, गलत तरीके से संपत्ति जमा करना आदि व्यवहारों को पसंद नहीं करता। भारत तो श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की वजह से ही दुनिया भर में जाना जाता रहा है, अगर वहीं अब इन मूल्यों में तेजी से ह्रास होता दिख रहा है, तो चिंता स्वाभाविक है।
मगर फिर सवाल वही है कि क्या इसकी रक्षा पुस्तकों में अलग से पाठ शामिल कर देने या कालेजों, विश्वविद्यालयों में इससे जुड़ी गतिविधियां करा देने भर से हो पाएगी। पाठ्यक्रमों में जो भी पाठ शामिल किए जाते हैं उनके पीछे यह उद्देश्य रहता ही है कि उन्हें पढ़ कर विद्यार्थियों का संपूर्ण व्यक्तित्व विकास होगा और वे अपने समाज और देश के विकास में योगदान को तत्पर होंगे। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी उनसे जुड़े नैतिक मूल्यों को स्पष्ट किया ही जाता है।
इसके बावजूद अगर युवाओं में कथित रूप से नैतिक मूल्यों का ह्रास देखा जा रहा है, तो इसके पीछे की वजहों को जानना जरूरी है। नैतिकता का आकलन करते वक्त सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, व्यावसायिक आदि पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जब तक व्यवस्था के स्तर पर मानवीय मूल्यों की स्थापना नहीं होती, तब तक केवल मूल्य शिक्षण से सामाजिक बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती।
मुनाफे की होड़ में बाजार जो भौतिकतावादी मूल्य युवाओं में भर रहा है, राजनीतिक आचार-व्यवहार जिस प्रकार दूषित हुआ है और किसी भी तरह अधिक से अधिक धन कमाना ही सफलता का पैमाना बन गया है, उसमें मूल्य प्रवाह 2.0 जैसी योजनाएं कितनी कामयाब हो पाएंगी, समझा जा सकता है। नैतिकता का वातावरण बनाने का प्रयास शीर्ष से शुरू होता है, इसके लिए क्या उपाय हो सकते हैं, इस पर भी विचार होना चाहिए।