जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की है, आए दिन कोई न कोई नेता, अभिनेता, मंत्री, बड़ा अफसर हाथ में झाड़ू लिए सड़क बुहारते फोटो खिंचाता देखा जाने लगा है। इसका मकसद अखबारों में अपनी तस्वीर छपाना और यह दिखाना होता है कि वे प्रधानमंत्री के चलाए अभियान को लेकर कितने गंभीर हैं। यह बात पहले से कही जा रही थी कि पहले कूड़ा बिखराया जाता है, फिर मंत्री महोदय, नेताजी, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री या सरकारी साहब वहां बुहारी देते हैं। अब इसके एक नमूने की तस्वीरें भी लोगों ने देख लीं। भाजपा के दिल्ली-अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने राजधानी के संभ्रांत और आमतौर पर साफ-सुथरे लोदी रोड इलाके में झाड़ू लगाई तो उसकी तस्वीरें हर कहीं मीडिया में आर्इं। पर अब उसी मौके की तस्वीरें ही बता रही हैं कि उनके वहां झाड़ू लगाने से पहले कूड़ा लाकर बिखेरा गया था। सफाई के इस नाटक में शाजिया इल्मी भी शामिल थीं, जो कभी आम आदमी पार्टी में होती थीं। यह सफाई करना है या लोगों की आंखों में धूल झोंकना? इस तरह का यह पहला वाकया नहीं है। पिछले महीने भाजपा के ही एक वरिष्ठ राजनीतिक ने लालकिले के पास इसी तरह पहले कूड़ा फैलवाया, फिर झाड़ू लगाई। तब भी सफाई अभियान को लेकर सवाल उठे थे। ताजा खुलासे के बाद तो भाजपा को जवाब नहीं सूझ रहा। ऐसे समय, जब दिल्ली विधानसभा भंग की चुकी है और फिर से चुनाव की गहमागहमी शुरू हो गई है, भाजपा को इस किरकिरी से नुकसान उठाना पड़ सकता है।
दरअसल, स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत ही जिसे तरीके से हुई, लगा कि इसमें प्रचार पाने पर ज्यादा जोर है। हर जगह साफ-सफाई रहे, यह कौन नहीं चाहेगा? पर सफाई का काम हमारे समाज में समाज के सबसे कमजोर तबके के जिम्मे रहा है और यह कहना गलत नहीं होगा कि इसे हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है। आखिर इतनी पुरानी मानसिकता एक झटके में कैसे टूट गई, कि नेताओं और अफसरों से लेकर फिल्मी सितारों तक सभी सफाई के लिए आकुल हो गए! इस चमत्कार का सच आखिर सबूत के साथ सामने ही गया। देश भर में इस तरह के न जाने कितने किस्से घटित हुए होंगे। प्रचार पाने के अलावा, यह खुशामद का भी एक परोक्ष तरीका है। जो भाजपा से सीधे नहीं जुड़े हैं, उनके लिए सत्ता से नजदीकी बनाने का जरिया भी। पिछले दिनों जिन रसूख वाले लोगों की झाड़ू लिए तस्वीरें मीडिया में आती रही हैं, उन्होंने शायद ही कभी सफाई की हो। कई जगह सरकारी सफाईकर्मी अपनी ड्यूटी के बजाय अधिकारियों की निजी सेवा में लगा दिए जाते हैं। इसका एक ताजा उदाहरण हरियाणा के भिवानी का है। एक स्वयंसेवी संगठन ने अपने सर्वेक्षण में बताया है कि वहां की नगरपालिका में सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई के लिए नियुक्त चालीस में से पैंतीस कर्मचारियों को साहब लोगों के घरों में तैनात किया गया है। अगर राजनेता और अधिकारी सचमुच सफाई को लेकर संजीदा होते तो उनकी नजर अपने घर की चारदीवारी तक सिमटी न रहती। फिर, जो लोग सिर्फ प्रधानमंत्री या अपने ऊपर के नेता या अधिकारी को खुश करने के मकसद से झाड़ू उठाते हों, उनसे यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे गली-मुहल्लों में सड़ रहे कचरे, नदियों के किनारे जमा हो रहे मलबे, हवा और पानी के प्रदूषण को लेकर चिंतित होंगे?