एक बार फिर आतंकवाद को सियासी रंग देने की कोशिश हो रही है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरदासपुर में हुए आतंकवादी हमले के संदर्भ में कहा कि कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल कर दहशतगर्दी से लड़ने के प्रयासों को कमजोर किया है। इस पर कांग्रेस अपने बचाव में तर्क पेश कर रही है। उसका कहना है कि भाजपा यह मुद्दा उठा कर आतंकवाद के मसले पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती है। पिछले दो हफ्ते से ललित मोदी और व्यापमं घोटाले को लेकर संसद में गतिरोध बना हुआ है।
इसलिए यह कयास अनायास नहीं है कि सरकार विपक्ष को दूसरे मुद्दों में उलझाना चाहती है। वरना क्या वजह हो सकती है कि गृहमंत्री ने इस मौके पर दहशतगर्दी के रंग को लेकर बहस छेड़ दी। आतंकवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इससे निपटने के लिए मुस्तैदी की जरूरत है, राजनीतिक पैंतरे की नहीं।
गृहमंत्री की यह बात बिल्कुल सही है कि अतिवाद का कोई धर्म नहीं होता। पर अतिवाद को महज सीमा पार से मिल रही दहशतगर्द चुनौतियों तक सीमति करके नहीं देखा जाना चाहिए। इस हकीकत पर परदा नहीं डाला जा सकता कि लगातार दहशतगर्दी को एक समुदाय विशेष से जोड़ कर देखने की कोशिश होती रही है। इससे बहुत सारे अल्पसंख्यकों को बेवजह सुरक्षा बलों की ज्यादतियां सहन करनी पड़ती हैं। साथ ही धर्म के आधार पर राजनीति करने की कोशिशों के चलते इस समुदाय के लोगों को हमेशा शक के घेरे में डाले रखा जाता है। इस तरह एक अलग ढंग का अतिवाद पनपा है। भाजपा इस तथ्य पर परदा नहीं डाल सकती कि धर्मांतरण को लेकर कैसे हिंदुत्ववादी संगठनों ने देश भर में तनाव भरा माहौल बनाने का प्रयास किया है।
कांग्रेस ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगांव जैसे विस्फोटों में उजागर तथ्यों के आधार पर अतिवाद के दूसरे रंग की तरफ अंगुली उठाई थी। पर उसके पीछे भी उसके सियासी मकसद से इनकार नहीं किया जा सकता। वोट की राजनीति में अल्पसंख्यकों को रिझाने की कांग्रेस की कोशिश छिपी नहीं है। इस तरह दहशतगर्दी को राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बांट कर देखने से निस्संदेह इससे लड़ने की तैयारियां शिथिल होंगी। बहुत सारे बेकसूर नाहक ज्यादतियों के शिकार होंगे।
ऐसे में उन वजहों पर गंभीरता से विचार होना चाहिए, जिनके चलते अतिवाद पर अंकुश लगाना कठिन बना हुआ है। खुफिया एजंसियों और स्थानीय सुरक्षा तंत्र के बीच उचित तालमेल न हो पाने और उन्हें माकूल तकनीकी प्रशिक्षण के अभाव में दहशतगर्दी के ठिकानों पर नजर रख पाना चुनौती बना हुआ है। इसे दुरुस्त करने के बजाय अगर आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास होगा तो स्थितियों पर काबू पाना कठिन बना रहेगा। सरकार को भाजपा के आनुषंगिक संगठनों की ऐसी गतिविधियों के खिलाफ भी सख्त कदम उठना होगा, जिनके चलते अतिवाद के नए रास्ते खुलते हैं।
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