कुछ साल पहले तक सैनिक स्कूलों में पढ़ाई करना लड़कियों के लिए बस सपना भर था। लेकिन जब से सैनिक स्कूलों में लड़कियों के दाखिले की व्यवस्था शुरू की गई, उसके बाद बदलती तस्वीर ने फिर यही दर्शाया है कि अगर महिलाओं को अवसर मिले तो वे हर मोर्चे पर अपनी काबिलियत साबित कर सकती हैं।
सैनिक स्कूलों में अब लड़कियों ने खासी संख्या में दाखिला लेना शुरू कर दिया है और एक तरह से इसे मुख्य रूप से पुरुषों की धारा में महिलाओं के एक और ठोस हस्तक्षेप के तौर पर देखा जा सकता है। दरअसल, सरकार ने एक सवाल के जवाब में सोमवार को राज्यसभा में यह जानकारी दी कि देश में तैंतीस सैनिक स्कूलों में बारह सौ निन्यानबे छात्राएं पढ़ रही हैं।
इसके अलावा, विभिन्न संस्थानों की साझेदारी में खुले सैनिक स्कूलों में तीन सौ तीन अन्य छात्राएं भी पढ़ाई कर रही हैं। जिस दौर में विभिन्न कारणों से सामान्य स्कूलों में लड़कियों के बीच में पढ़ाई छोड़ने के मामले समाज और सरकार के लिए चिंता का कारण बन रहे हैं, उसमें सैनिक स्कूलों में छात्राओं की बढ़ती संख्या को निश्चित रूप से एक सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ते कदम के रूप में देखा जा सकता है।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले सरकार ने एक प्रायोगिक परियोजना के तहत सैनिक स्कूलों में लड़कियों के प्रवेश को मंजूरी दी थी, तब इसे लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने की ओर एक ठोस पहलकदमी माना गया था। दरअसल, सैन्य क्षेत्र में महिलाओं के आगे बढ़ने को लेकर समाज में कई स्तर पर पूर्वाग्रह कायम रहे हैं और इसका असर भी सेना में बेहतर भविष्य का सपना देखने वाली लड़कियों पर पड़ता रहा है।
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कुछ वर्ष पहले तक महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन को लेकर कई स्तर पर अड़चनें मौजूद रहीं। लेकिन समय के साथ सेना में महिलाओं की उपस्थिति और उनकी काबिलियत एक जरूरत के तौर पर उभरी। इस क्षेत्र में काम करने के अमूमन हर मोर्चे पर महिलाओं ने अपनी क्षमता साबित की और उन्हें जो जगह मिल सकी, उसे उन्होंने अधिकार के तौर पर लिया।
सैनिक स्कूलों में भी लड़कियों के दाखिले को लेकर अगर एक आग्रह बना हुआ था, तो उसका कोई ठोस आधार नहीं था। यह इससे भी साबित हुआ कि पिछले कुछ सालों में ही सैनिक स्कूलों में भारी तादाद में लड़कियों ने दाखिला लिया और अब यह संख्या सोलह सौ से ज्यादा पहुंच गई है।
दरअसल, लोकतंत्र में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने के सूत्र पर काम करने वाली सरकार को यह ध्यान रखना पड़ता है कि समाज का कौन-सा हिस्सा किसी क्षेत्र में मुख्यधारा से वंचित है और किसे किस तरीके से सशक्त बनाया जा सकता है। इस लिहाज से देखें तो हर क्षेत्र में विकास के बीच आज भी महिला सशक्तीकरण और इसके जरिए लैंगिक समानता कायम करना वक्त का तकाजा है।
खासतौर पर उन क्षेत्रों में महिलाओं की गैर-मौजूदगी या फिर बेहद कम संख्या को लेकर चिंता जताई जाती रही है, जिन्हें आमतौर पर केवल पुरुषों के लिए अनुकूल बताया जाता रहा है। जबकि सच यह है कि पुरुषों के लिए सहज माने जाने वाले हर क्षेत्र में जब महिलाओं को भी अवसर मिले, तब दायित्वों के सभी स्तर पर बेहतर नतीजे ही सामने आए।
सैनिक स्कूलों में लड़कियों के दाखिले की शुरुआत करने के पीछे भी महिला सशक्तीकरण का उद्देश्य ही काम कर रहा था। इन स्कूलों में बढ़ती संख्या से यही पता चलता है कि इस ओर बढ़े कदमों के नतीजे सकारात्मक आए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इन स्कूलों से पढ़ाई करके निकलने वाली लड़कियां देश के बेहतर भविष्य में अपना योगदान दे पाएंगी।